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न स्वर न व्यंजन

*न स्वर न व्यंजन हैं सक्षम सत्य ये बताने में* *चांद से सुंदर कुछ भी तो  नहीं है इस जमाने में* *चौदहवीं का चांद हो, या चांद हो फिर दूज का मधुरम मधुरम सी लगती है चारु चितवन,रंग हो जैसे प्रीत का* *काली मावस के बाद जैसे  चांद होता है पूनम का* *हर गलियारा हो जाता है रोशन, हल होता हो उजियारा जैसे गहन अंधकार का*