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फकीरी

तप तप thought by sneh premchand

तप तप सोना बनता है कुंदन, जग सारा जाने ये सुंदर सी बात। सींचने पड़ते हैं खून पसीने से, सारे सपने सारी ख़्वाईशात। विषमता भरा है ये संसार, कभी उष्ण शीत,कभी सूखा बरसात।। कतरा कतरा बनाता है सागर, ज़र्रे ज़र्रे से बनती कायनात।। सब ज़रूरी है इस जग में, सूईं से तलवार तक।। कुछ भी मिलना नहीं असम्भव धरा से आकाश तक।।               स्नेहप्रेमचन्द