Skip to main content

Posts

Showing posts with the label एक हो जाते थे

वो बचपन कितना प्यारा था

*वो बचपन कितना प्यारा था* जहाँ लड़ते ,झगड़ते, फिर एक हो जाते *वो सच में कितना न्यारा था* *जब कुछ भी उलझन होती थी तब माँ की होती गोदी थी* *पिता का सर पर साया था न लगता कोई  पराया था* *औपचारिकता की बड़ी बड़ी सी चिन ली सबने दीवारें हैं* "पार भी देखना चाहें अगर हम बेगानी सी मीनारें है* *तब तेरा मेरा न होता था सब का सब कुछ होता था* *जहान हमारा सारे का सारा था* *वो बचपन कितना प्यारा था* कोई द्वंद ना था कोई द्वेष ना था कोई कष्ट ना था कोई क्लेश ना था कोई अवसाद ना था कोई विषाद न था जो दिल में होता वही जुबान पर था मस्ती की होली होती थी दीवाली पर खूब सफाई होती थी मां  ईंटों को रगड़ कर बोरी से लाल लाल बनाया करती थी भैंसों की भी विविध रंगों की गलपट्टी बड़े धीरज से सिला करती थी।। *वो खेल खिलोने दीवाली के* *वो पापड़ स्वाली तीजो के* "वो चोट मूसल की उखल में* *वो  कुंडी सोटे की चटनी* *वो खद खद रधती कढ़ी* *वो हारे का लाल लाल सा दूध* *वो चने बिनोले हारे पर* *वो कढ़ावनी की लस्सी* ,वो आलू गोभी की सब्जी* *वो बैंगन का भरता वो तंदूर की रोटी* सब लगता कितना न्यारा था वो बचपन कितना प्यारा था *माँ इंतज़ार करत