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महा समर विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

महासमर महा मंथन की इस बेला में धुआं धुआं सा मन, अब करने लगा है चीत्कार। बहुत हो गया,अब तो रोक लो,मौत का तांडव मचा रहा है हाहाकार।। उठो पार्थ,गांडीव संभालो,करो हनन  करोना का इस बार। चला दो सुदर्शन फिर से एक बार माधव, करोना के शिशुपाल को मिले करारी हार। हे राघव! उठाओ फिर से धुनुष इस वैश्विक महामारी का कर दो संहार।। हे बजरंगी! लाओ फिर कोई संजीवनी, जिंदगी मौत से रही है हार।। हे भोले! फिर पी ले गरल तूं। अमृत दान का दे उपहार। सागर मंथन सा कल रहा है, निर्भयता का करा दे दीदार।।        स्नेह प्रेमचंद