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योग महिमा भाग 1 by snehpremchand

योग प्राथमिक है जीवन में, श्वाशों की माला में सुमरें प्रभु का नाम। व्याधि विकार नष्ट हो जाएं सारे, योग आए अब जन जन के काम।। मन्ज़िल बिन कहाँ जाए मुसाफिर, बिन तेल कैसे जले बाती?? बिन नीर मीन का जीवन कैसा, बिन दिन कैसे आए राती??? बिन योग के जीवन भी, निर्जीव नीरस सा पड़ता है जान। आकर इसकी शरण मे इंसा को, योग शक्ति का होता है भान।। तन मन दोनों की शुद्धि, सर्वशक्तिमान होने का होता भान। योग प्राथमिक है जीवन में, श्वाशों की माला में सुमरें प्रभु का नाम।। सकारात्मक दृष्टि और वैश्विक सृजन, हैं,दोनों ही योग के अदभुत वरदान। योग बनाये हमें स्वावलम्बी आत्मनिर्भर, यही योग की सच्ची पहचान। व्याधि विकार नष्ट ही जाए सारे, योग आए अब जनजन के काम।। योग का अर्थ है जागरूकता,विवेकशीलता और दायित्यों का निर्वहन करना। आरोग्य है जन्मसिद्ध अधिकार हमारा, नही रोगों को हमे सहन करना।। रोगमुक्त हो जीवन गर तो, चिंतामुक्त हो हर भोर और शाम।। योग प्राथमिक है जीवन।में----- रोगों को समूल मिटाता है योग, जीवन मे आनन्द बढ़ाता है योग, आत्मा को पावन बनाता है योग, तमस में उजियारा लाता है योग, निराशा में आशा लाता है योग, अवसाद विषाद क