अंजु — एक मिसाल” *उम्र छोटी पर कर्म बड़े* जैसे जीवन ने जल्दी से हो राह दिखाई हर चित में करती थी वो बसेरा हर रिश्ते की प्रीत बड़े दिल से निभाई वो आई ज़िंदगी में जैसे कोई दुआ, छोटे लफ्ज़ों में बड़ी बातें कहती रही सदा उम्र भले ही कम थी उसकी, पर समझ उसकी बुद्धिमत्ता की पराकाष्ठा चेहरे पर मुस्कान, दुख सहकर भी, जैसे ईश्वर ने हिम्मत की मूरत गढ़ी मित्र, परिवार, सबको प्यार दिया, हर दिल से जुड़कर, अपना सब कुछ वार दिया क्रम में छोटी पर कर्मों में बड़ी हर मुस्कान उसकी, जैसे दुःख से इनकार, हर आंसू, औरों के लिए, खुद का ना कोई भार हर रिश्ता निभाया उसने दिल खोलकर, चाहे अपना हो या कोई राह गुजर। वो चलती रही, थामे सबका हाथ, हर मोड़ पर देती रही अपनेपन का साथ। जैसे फ़रिश्तों का कोई रूप थी जिसे देख लगे, परमात्मा का स्वरूप थी । मैं बड़ी थी उम्र में, पर वो थी बड़ी हर रूप में, उसकी बातें, उसकी सोच, जैसे कोई गहन छाया कड़कती धूप में कभी मेरी छाया, कभी मेरा साया बनी, रिशते में छोटी बहन पर समझ में गुरु सी लगी। उसकी सहज मुस्कान अब भी आंखों में है, हर पल, हर याद, बस उसी की बातों में है। कभी मे...