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हैरानी सी होती है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**हैरानी सी होती है मुझे***  जब देखती हूं मां बाप के होते हुए भी बेटियां पीहर   नहीं जाना चाहती। कैसे भूल सकती हैं मात पिता का वो ठंडा साया जिसके तले बचपन महफूज,सहज और उल्लास से भरा था???? कैसे भूल सकती हैं?????  वो आंगन जहां जिंदगी की कोंपल खिली थी, जहां शिक्षा के भाल पर संस्कारों का तिलक लगा था, जहां जिंदगी का परिचय संज्ञा,सर्वनाम और विशेषणों से हुआ था, जहां हर क्यों,कैसे,कब,कहां का  संतोषजनक जवाब मिला था, जहां नयनों ने सपने देखना सीखा था, जहां हसरतें और हैसियत बेशक मेल ना खाती हों, पर मां बाप ने उन हसरतों को पूरा करने में जी जान लगा दी थी, जहां मतभेद बेशक हुए हों, पर मनभेद कभी नहीं होते थे, जहां हर बेटी अपने मां बाबुल के कालजे की कौर होती है, धड़कन होती है। फिर उस आंगन में दस्तक देने में कैसी उदासीनता??? देखो धूलिरत बैग को झाड़ कर जाने की तैयारी करो, ** का वर्षा जब कृषि सुखाने** उनके बाद गए भी तो क्या गए।। समय नहीं है का रोना रो कर किसी बात को टालना कभी सच्चा सुख नहीं देता,जब समय होगा तब वे नहीं होंगे।। अपनी दिनचर्या में इतना मसरूफ कैसे हो जाती हैं कि जेहन की चौखट पर पीह