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और परिचय क्या दूं तेरा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

और परिचय क्या दूं तेरा, अतिशयोक्ति नहीं,गर कहूं वरदान। आस भी तूं,विश्वास भी तूं, तूं ही हर समस्या का समाधान।। मेरा निगम महान!मेरा निगम महान।। मैं ही नहीं, कह रहा है पूरा जहान।। सुरक्षा,संरक्षा और समृद्धि, सीधा सरल निगम का वरदान। समाधान हेतु आगमन, संतुष्टि सहित प्रस्थान।। *सामाजिक सुरक्षा,दायित्व हमारा* एल आई सी का है ये नारा। माझी है मजबूत तो, नाव को मिल ही जाता है सहारा।। इसी भाव से ओत प्रोत है मूल में इसके जनकल्याण।। और परिचय क्या दूं तेरा, अतिशयोक्ति नहीं गर कहूं वरदान।। निगम के झूले में झूलते हैं सपने भविष्य के चिंतारहित, होते हैं पूरे जाने कितने ही अरमान। भरोसा है इसका, सबसे विश्वसनीय परिधान।। सकारात्मक सोच के पंख लगा कर, भरी है इसने सदा ऊंची उड़ान। हर वर्ग की समझी जरूरत, हर वर्ग का रखा है ध्यान। और परिचय क्या दूं तेरा, अतिशयोक्ति नहीं,गर कहूं वरदान।। हर पॉकेट में हो एक पॉलिसी, इस लक्ष्य को निगम ने लिया है जान। सबकी भलाई की सोची है तूने, परमार्थ ही है तेरी पहचान।। *योगक्षेम व्याम्यम*यही रहा सदा से ही   परम ध्येय ये तेरा। मूल में तेरे यही भाव है, हो सबके जीव