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Showing posts from September, 2022

एक ही वृक्ष के हैं हम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ,अंकुर और हरी भरी शाखाएँ,विवधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें, हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई, हैं सब आपस में भाई  भाई,एक खून है,एक ही तन है,इंसा ने ही है ये जात पात बनाई,वसुधैव कुटुम्बकम की भावना काश की हमने होती अपनाई, फिर ना बनाता जश्न कोई किसी की मौत का,न हमने सरहद समझी होती परायी,जीयो और जीने दो के सिद्धांत की,क्यों नही हमने घर घर अलख जलाई,आतंकवाद का हो जाये  खात्मा,ईद दिवाली हो सब ने संग मनाई,सुसंस्कारों की घुट्टी पीले अब हर इंसा, बदल दे अपनी सोच की राहें, धरा बन जायेगी स्वर्ग फिर बंध,ूअपने लाल को खो कर किसी माँ की नही निकलेंगी आहें,एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएँ

हमारा प्यार हिसार खास नहीं अति खास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 **सांझी प्रगति सांझे प्रयास*" इस भाव से लबरेज समूह अति खास।। तारों की छांव में भी,  उगती भोर से हैं आप सबके प्रयास। छोटे बड़े सब भरे ऊर्जा से, अंतस में हो आपके जैसा उजास।। निशब्द सा कर देते हो आप, हो घने तिमिर जैसे प्रकाश।। धन्य हैं हम हिसार वासी, आप जैसा संगठन करता है इन गलियारों में वास।। संस्कारों की शिक्षा का महाविद्यालय है समूह ये, सबका साथ सबका विकास।। धन्य हुई धरा हरियाणे की, है जोश जज्बा और जुनून इन नागरिकों के पास।। उच्चारण नहीं आचरण में है  आप सब का विश्वाश।। कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का, नाम से कभी नहीं कोई बन सकता है खास।। *बूंद बूंद बनता है सागर लम्हा लम्हा बनती है जिंदगानी* एक एक करके बना कारवां, सत्कर्मों की जगह जगह निशानी।। कभी रुके नहीं,कभी थके नहीं, ना शिकन माथे पर,लबों पर हास परिहास।। *सांझी प्रगति सांझा प्रयास* यही भाव समूह को बनाता है खास।। सत्कर्मों की होती है बड़ी तेज आवाज, कण कण में होता है इसका वास।। सो रहा है शहर,जाग रहे हैं आप, मधुरम मधुरम आप सब से प्रयास।। **सांझी प्रगति सांझा विकास** इसी भाव से लबरेज समूह अति खास।।         स्नेह प्रे

संकल्प से सिद्धि तक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक अक्षर के

तेरे अस्तित्व से तो हिंदी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तेरे अस्तित्व से तो हिंदी  दमक रहा है हिंदुस्तान। और परिचय क्या दूं तेरा?????? तूं हीं राष्ट्र का गौरावगान।। साहित्य का आदित्य है तूं, आर्यवर्त का है अभिमान।। उच्चारण से आचरण तक, हिंदी तेरा नहीं कोई भी सानी। सरल सहज सुबोध है तूं, सच में भाषाओं की महारानी।। ह्रदय की भाषा है तूं, हर हिंदुस्तानी का स्वाभिमान। जैसे दिल में धड़कन होती है, ऐसा तेरा अस्तित्व महान।। हर भाषा को कर आत्मसात, बनी तुम्हारी अलग पहचान।। एकता सूत्र में बांधे है तूं, जान कल्याण का करे आह्वान। तेरे अस्तित्व से तो हिंदी चमक रहा है हिंदुस्तान।। 14 सितंबर तक ही सीमित न रह जाए हिंदी का प्रयोग ताउम्र गर्व से हिंदी अपनाकर, निज भाषा की उन्नति में करें सहयोग।। हिंदी हिंदी सब करे, करे न कोई हिंदी में काम। अंग्रेजी को अपनाया क्यों इतना पराई भाषा से मानसिकता भी होती है गुलाम।। निज भाषा का प्रयोग ही करते हैं जग में चीनी और जापानी। फिर इंग्लिश इंग्लिश क्यों करते हैं हम हिंदुस्तानी??? मां मातृभूमि और मातृभाषा को सदा मिले जग में सम्मान। वहीं राष्ट्र छूता है बुलंदियां,होता उसी का गौरवगान।। एकता और अखंडता है हिंदी की पहचान। हैं हम सच्चे

जय माता दी

प्रेम प्रेम सब करे

प्रेम प्रेम सब करें,प्रेम न जाने कोय प्रेमवृक्ष की नन्ही डाली का आज जन्मदिन होय।। प्रेम ही राज है चारु चितवन का, प्रेम से सब कुछ स्नेहमय सा होय।। प्रेमभरी हर बात लगती है आली कितनी सुहानी। पावनी सी बयार बह जाती सर्वत्र है,सब का सुमन होय।। इंदु चमक रहा अनन्त गगन में, जैसे बड़ा जोश से कोई परी स्वपन हिंडोले में सोय।। माँ सावित्री की कृपा से, यथार्थ सपनो से आलिंगनबद्ध होय।। आनंद प्रकाश पसार रहा है अपनी लम्बी बाहें दुआओं का ही स्थान है आज,सो जाएं सब आहें।।

आज जन्मदिन है इनका

आज जन्मदिन है इनका,आए इनके जीवन मे सदा बहार। मिले खुशी,सफलता,सुख,समृद्धि और मिले हम सब का प्यार।। रोहिल्लास और कुमार्स की नन्ही कली तुम,तुमसे घर का आँगन गुलज़ार। करते थे,करते है,करते रहेंगे तुम्हे प्यार हम सब बेशुमार।। कबूल करो आज दुआएँ हमारी,देखो दुआओं से भर रहा संसार। देख तुम्हारी मोहिनी सूरत,लगते है सुंदर दीदार।। करता है मन करें प्रकट,ऊपरवाले का आभार। आयी जो तुम आँगन में हमारे,समा हो गया गुलज़ार।। महकती रहना,चहकती रहना,प्रेम ही जीवन का आधार। समय तो निश्चित रूप से लेगा अँगड़ाई,कभी पनपे न कोमल चित्त में कोई कुविकार।। ओ मेरी लाडो बिटिया रानी,खिले ऐसा पौधा मन मे तुम्हारे,जाने जो करुणा,सहयोग,अहिंसा और परोपकार। लेखनी ने तो कह दी दिल की,बस कर लेना इसको स्वीकार।। आज मस्ती करना,पार्टी करना, मिलेंगी दुआएं तुम्हे बेशुमार। जो गिफ्ट मिले वो हमे भी दिखाना हम करेंगे इंतजार।। बार बार ये दिन आए,दोहराएंगे हम बार बार।।       हैप्पी वाला bday once again

जीवन बीमा व्यवसाय वृद्धि में डिजिटल माध्यमों का योगदान विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

 **जीवन बीमा व्यवसाय वृद्धि में डिजिटल माध्यमों का योगदान** जीवन बीमा व्यवसाय वृद्धि में अद्भुत,अभूतपूर्व,सराहनीय और विश्वसनीय है डिजिटल माध्यमों का योगदान। त्वरित और त्रुटिरहित सेवा अब मिलती है ग्राहक को, हर समस्या का शीघ्र ही मिल जाता है समाधान।। *नया परिवेश है नया है दृष्टिकोण* मिले ग्राहक को बेहतरीन सेवा संग मधुर मुस्कान।।            महीनों में होने वाला काम इन डिजिटल माध्यमों से कुछ क्षणों में ही घर बैठे बैठे ही होने लगा है।कार्यालय जाने की परेशानी से छुटकारा मिलता है और समय की बचत होती है।जीवन बीमा के विभिन्न उत्पादों की समग्र जानकारी ग्राहक घर बैठे बैठे ही गुगल पर पढ़ सकता है तुलनात्मक अध्ययन कर श्रेष्ठ उत्पाद अपने बजट अनुसार खरीद सकता है।। फ्रंट एंड एप्लिकेशन पैकेज लागू करके वाइड एरिया नेटवर्क द्वारा निगम की सभी 2048 शाखाओं तथा 1570 उपग्रह कार्यालयों को एक साथ जोड़ दिया गया है।। कितनी बड़ी डिजिटल उपलब्धि,कितने अधिक सार्थक प्रयास।। निगम की वेबसाइट जिसमे कोई भी ग्राहक निगम के किसी भी उत्पाद संबंधित नियम,फार्म या प्रपत्र,निगम के कार्यालयों के पते, ई मेल आईडी,दूरभाष नंबर आदि सब देख

भगत सिंह विशेष

कई बार

कई बार हम बहुत पास हो कर  भी बहुत दूर होते हैं, और कई बार बहुत दूर होकर भी बहुत पास,सारा खेल सोच का है,हमारी सोच में,हमारी प्राथमिकताओं में कोई कितना ज़रूरी है,इसके चयन का विकल्प खुदा ने हमे दिया है,दुर्योधन गोविन्द का शांति प्रस्ताव मान लेता,मात्र पाँच गाँव पांडवों को दे देता,तो महाभारत का युद्ध न होता,रावण राम द्वारा भेजे गए शांतिदूत अंगद की बात मान लेता,तो इतना बड़ा युद्ध न होता,विकल्पोंं का चयन ही भाग्य निर्धारित करता है,ऐसे में विवेक के सहारे की ज़रूरत होती है,उसे काम में लेना चाहिए

फितरत

कई बार

कई बार हम बहुत पास हो कर  भी बहुत दूर होते हैं, और कई बार बहुत दूर होकर भी बहुत पास,सारा खेल सोच का है,हमारी सोच में,हमारी प्राथमिकताओं में कोई कितना ज़रूरी है,इसके चयन का विकल्प खुदा ने हमे दिया है,दुर्योधन गोविन्द का शांति प्रस्ताव मान लेता,मात्र पाँच गाँव पांडवों को दे देता,तो महाभारत का युद्ध न होता,रावण राम द्वारा भेजे गए शांतिदूत अंगद की बात मान लेता,तो इतना बड़ा युद्ध न होता,विकल्पोंं का चयन ही भाग्य निर्धारित करता है,ऐसे में विवेक के सहारे की ज़रूरत होती है,उसे काम में लेना चाहिए

ज़रूरी है

ज़रूरी है,ज़रूरी है जब हम कुछ अच्छा करें,तो उसकी सराहना जरूरी है,कुछ गलत करें,तो उसकी आलोचना ज़रूरी है,अहसासों की सही समय पर अभिव्यक्ति ज़रूरी है,रिश्तों के पौधों को मुलाकातों के जल,मधुर वाणी की वायु से सींचना ज़रूरी है,हर ह्रदय में संवेदना ज़रूरी है,मैं के स्थान पर हम का भाव ज़रूरी है,ये सब ज़रूरी है, मानो चाहे न मानो।।

Daughtets day special कोई भी दिन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोई भी दिन बिन बेटी के  कैसे हो सकता है खास??? मुझे तो ये मदर्स डे बेटी डे कतई नहीं आते हैं रास।। मां और बेटी तो लम्हा लम्हा होते हैं जेहन में, जैसे पुष्प में होती है सुवास।। *घर आंगन दहलीज है बेटी* *शिक्षा संस्कार तहजीब है बेटी* *लिहाज मान गौरव शान नसीब है बेटी* *हमे हमसे बेहतर जानती है बेटी* *हमे दिल से अपना मानती है बेटी* सुनने में बेशक अच्छा लगता है *बेटा हुआ है* पर जीने में बेटी से बेहतर कोई नहीं अहसास। सही मायनो में धनवान होते हैं वे होती है बेटी जिनके पास।। थाली तो हम बेटा होने पर बड़े जोर जोर से बजाते हैं। पर जीवन को झंकृत बेटी होने से पाते हैं।।

पत्थर संग पानी

पानी पत्थर

दिल से निकला

एक ही वृक्ष के हैं हम

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और हरी भरी  शाखाएँ,  विविधता है,बेशक,बहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें।।  एक चमन है,एक सुगंध है,है एक ही हम सब का माली, सांझे सुख हों,सांझे दुःख हों, हो न किसी की झोली खाली।। कतार में खड़ा अंतिम व्यक्ति भी न वंचित रहे बुनियादी जरूरतों से,ऐसी हो हम सब की सोच निराली, समर्थ थाम ले हाथ असमर्थ का,पनपे आपस में भाईचारा ,न कोई सरहद,न कोई  सीमा हो कभी परायी,कुविकारों से हर कोई कर ले किनारा फिर यही धरा धीरे धीरे प्यारा सा स्वर्ग बन जायेगी,मानवता करेगी श्रृंगार करुणा और प्रेम का,यह सृष्टि प्रेममयी हो जायेगी, सब संभव है,गर हर कोई इस भाव को दिल से अपनाए,  विश्व प्रेम की भावना ही है सर्वोपरि,बस दानव नही मानव  कहलाए,।। एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और हरी भरी शाखाएँ।।

ये जो पीहर से जाती हैं बेटियां

कुछ एहसास

प्यारी पावनी

दिल के बहुत ही होते हैं अच्छे

मंजिल

अति सरल सीधा सहज मधुर विज्ञान

अति सरल सीधा सहज मधुर है  हिंदी का स्पष्ट विज्ञान दस्तक दिल पर,चित में बसेरा, जेहन मे इसके चित के निशान।। हिंदी कविता की गहरी सरिता, हिंदी मनोभावों का सुंदर परिधान। सरलता की सरसता से सगाई है हिंदी बोधगम्य हिंदी,भाव प्रधान।। हिंदी भाषी ही जब हिंदी का करते हैं अपमान। कोई और क्यों देगा फिर महता इसको, कैसे कहेंगे हम भारत महान???? साहित्य का आदित्य है हिंदी, है आर्यवृत का हिंदी अभिमान और परिचय क्या दूं हिंदी का हिंदी ही राष्ट्र का गौरवगां।। जो मुख मोड़ रहे हैं हिंदी से उन्हें सम्मति करना प्रदान। तेरा परिष्कृत और प्रांजल रूप आए सबके सामने, सच में भाषा तूं बड़ी महान।। मातृभाषा कहीं रह ना जाए मातृभाषा हम सबको इसका रखना होगा ध्यान जिस भाषा में आते हैं विचार दिल में उसी में पहनाएं शब्दों का परिधान।। सागर सी गहरी तूं हिंदी तेरा अस्तित्व बड़ा विशाल भावों की सुनामी बहती है उर में तेरे, एहसासों की अभिव्यक्ति तुझ में कमाल।। मां,मातृभूमि और मातृभाषा हैं तीनों ही सम्मान की पूरी हकदार एक खुशहाल राष्ट्र अपनाता है ये सत्य सच में हिंदी भाषा दमदार।। बहुत सो लिए अब तो जागें हो हिंदी से हम सब को प्यार।। सच मे

एल आई सी में आधुनिक डिजिटल माध्यम_उपयोगिता एवं महत्व((विचार

*बेहतर सेवा से होगा बेहतरीन बीमा* होगा शीर्ष पर फिर वित्तीय संस्थान। *सर्वोपरि है ग्राहक हमारा* हो उसकी हर सुविधा और हर जरूरत की हमें पहचान।। आधुनिक डिजिटल माध्यम की मुख्य भूमिका है इसमें, नई तकनीक अपनाकर,  आए समझ इसका विज्ञान।। *नया परिवेश नया दृष्टिकोण*  है मांग समय की, मिले ग्राहक को सेवा संग मुस्कान।। भरोसे का होगा फिर पालन और होगा निश्चित ही मूल्यों का निर्माण।। ग्राहक,निगम की रीढ़ है।*ग्राहक देवो भव* यह भी सर्वविदित है।एक संतुष्ट ग्राहक हमें 100 से भी अधिक ग्राहकों से जोड़ता है और एक नाराज ग्राहक 100 से भी अधिक ग्राहकों को तोड़ता है।।बेहतर नहीं बेहतरीन ग्राहक सेवा के लिए एल आई सी में आधुनिक डिजिटल माध्यम *मील का पत्थर* साबित हुए हैं।अनेक डिजिटल एप अपनाकर ग्राहक को सुविधा मिलती है और उसके समय की बचत होती है।। *गुगल पे*और *फोन पे*से घर बैठे ही अपना प्रीमीयम जमा करवा सकते हैं। *एलआईसी पे डायरेक्ट एप*  तो ग्राहक के लिए वरदान है।लोन,ब्याज,आंशिक लोन,पेमेंट की स्टेटमेंट और पॉलिसी का स्टेटस देखा जा सकता है।अब तो ऑनलाइन एड्रेस भी बदला जा सकता है।ग्राहक कंसोलिडेटेड प्रीमियम भी भर सकता है।ऑ

सुकून और बैचैनी

सुकून और बेचैनी जब मिले किसी मोड़ पर,होने लगी दोनों में कुछ ऐसी बात,जिसे सुन कर सब ने सीखा कुछ न कुछ,उनका वार्तालाप औरों के लिए था सौगात,बेचैनी ने कहा,कैसे इतने शांत और मोहक हो तुम,आज बतलाओ मुझे इसका राज,मैं रहता हूँ सच्चे दिलों में,जहां लोभ,मोह,क्रोध और हिंसा का नही होता वास,जहां दर्द उधारे लेते हैं कुछ लोग,जहां सुख दुःख सांझे हो जाते हैं, जहां एक रोटी और चार जने हो,पर टुकड़े कर चार वो खाते हैं, माँ के आंचल में हूँ,पिता के प्रेम में हूँ,सच्ची आस्था में हूँ,मैं लेकर नही देकर खुश हो जाता हूँ,संचय में नही विश्वास है मेरा,में बाँट कर हर्षित हो जाता हूँ,मैं के स्थान पर हम को में अपने जीवन में ख़ास बनाता हूँ,यही राज है मेरे अस्तित्व का,आज ये सच्चाई मै आप सब को बताता हूँ,बेचैनी सिर्फ और सिर्फ सुकून का मुँह तकती रह गयी

फलसफे जिंदगी के(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ज़िन्दगी के फलसफे समझ नही आये,कई बार अपने ही लगने लगते हैं पराये,कई बार परायों में मिल जाते है अपनेपन के साए,कोई तो बहुत दूर हो कर भी होता है मन के बहुत ही पास,कोई पास होकर भी क्यों नही बन पाता खास,अजब तराना है,अजब फ़साना है,सफर ज़िन्दगी का है अद्भुत,सब को पूरा कर के जाना है,एक दिन माटी मिल  जायेगी माटी में,जग कर देगा हमे सुपुर्द ए ख़ाक,क्या कुछ सार्थक सा हमे किया इस जग में,बनने से पहले अग्नि की राख,क्या कर्म तरु पर सत्कर्मो की बेलों को सही समय पर हम चढ़ा पाये,यही तो विचार करना है बंधू,फिर पाछे क्या होता पछताये

सर्वोपरी है ग्राहक

जगत के सात आशचर्य

जगत के सात आशचर्य, माँ का असीम प्यार,माँ की ममता,माँ का स्पर्श,माँ की लोरी,माँ का समर्पण,माँ का त्याग,माँ की चिंता,माँ के विचार,माँ के कृत्य,हैं न

निश्चित

रामायण,महाभारत, गीता,बाइबल,गुरु ग्रंथ साहिब और कुरान, सबके निश्चित पृष्ठ अध्याय हैं, पर मा ग्रंथ को कभी लग ही नही सकता विराम।।

हौले हौले

*हौले हौले शनै शनै*  दिन,ये एक दिन आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र से हो निवृत्त इंसा, लौट फिर घर को आता है।। ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक  इंसा पल-पल बदलता जाता है। जाने कितने ही अनुभव तिलक जिंदगी भाल पर लगाता है।।  कभी खट्टे कभी मीठे अनुभव,  हर एहसास से गुजरता जाता है। हर घड़ी रूप बदलती है जिंदगी  धीरे धीरे समझ में आता है।।  जीवन की इस आपाधापी में  पता ही नहीं चलता,  कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का,  व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है।।  जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में घुस तो जाता है अभिमन्यु सा,  पर बाहर निकलना उसे नहीं आता है।।  *शो मस्ट गो ऑन* इसी भाव से आगे बढ़ता जाता है।।  शिक्षा, शादी,बच्चे,परवरिश, जिम्मेदारी मात-पिता की,  सब हंसते हंसते सहज भाव से निभाता है।  *कुछ बंधन भी होते हैं मीठे*  इन बंधनों में बधने में आनंद ही उसको आता है।।  पल, पहर,दिन,महीने, साल बीत कर एक दिन यह दिन आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र में कार्यकल हो जाता है पूरा, समय अपना डंका बखूबी बजाता है।।  हौले हौले, अनेक अनुभव अपने आगोश में समेटे इंसा,  60बरस का हो जाता है।  हो सेवानिवृत्त कार्य क्षेत्र से, कदम अगली डगर पर फिर से ब

कितनी नादानियों को

कितनी नादानियों को हमारी,माँ अपने दिल में सहजता से समा लेती है,कितनी भूलों को हमारी,माँ क्षमा का तिलक लगा देती है,कितने अपशब्दों को हमारे,माँ यूँ ही भुला देती है,हमारी इच्छाओं की पूर्ति हेतु,माँ अपनी ख्वाशिओं को बलि चढ़ा देती है,हमारे उज्जवल भविष्य हेतु,माँ अपना वर्तमान कर्म की वेदी पर चढ़ा देती है,माँ हमे क्या क्या देती है,क्या क्या करती है,शायद हम ये समझ भी नही पाते,पर हम माँ जो क्या देते हैं,ये विचार भी जेहन में लाने से हैं कतराते,कड़वा है,पर सच है

अपने ही जब

हिंदी दिवस विशेष (अति सरल सहज सीधा सा हिंदी का विज्ञान विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*अति सरल,सहज सीधा सा  हिंदी का विज्ञान* दस्तक दिल पर,दिमाग में बसेरा, जेहन में, इसके चित के निशान।। *हिंदी माथे की बिंदी*  है,हिंदी से हमारी पहचान।  सरल सरल सहज बोधगम्य हिंदी, *हो हिंदी पर हमको अभिमान** *साहित्य का आदित्य है हिंदी*  *हिंदी आर्यव्रत का अभिमान*  और परिचय क्या दूं हिंदी का??  हिंदी राष्ट्र का गौरव ज्ञान।। *अनुराग की मधुर परिपाटी है हिंदी* * सहजता की सौंधी सी माटी है हिंदी* *ह्रदय तल की गहरी गहराई है हिंदी*  *सत्यम शिवम सुंदरम की शहनाई है हिंदी* * साहित्य जगत की अरुणिम आभा है हिंदी*  *हिंदी विचारों का आफताब*  *हिंदी जिंदगी की सुंदर किताब* * हिंदी चंद्रमा की छिटकी ज्योत्सना*   *हिंदी ध्रुव तारे की स्वर्णिमआभा*   *हिंदी भक्ति भाव की जैसे परिभाषा*    *हिंदी आत्मा हिंदुस्तान की* *उद्गारों की सुंदर आशा है हिंदी*  *कबीर सूर की भाव अभि व्यक्ति है हिंदी* *हिंदी प्रसाद की कामायनी* *हिंदी मानस की चौपाई*  *अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है हिंदी*  *जिंदगी की मधुर सी  शहनाई हिंदी*  *हिंदी इजहार के गले का हार* *है हिंदी भावों का सच्चा श्रृंगार*   *है हिंदी सुमन में पराग*   *संगीत में राग ह

भावों का सुंदर परिधान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हिंदी कविता की गहरी सरिता  हिंदी मनोभावों का सुंदर परिधान।  सरलता की संस्था से सगाई है हिंदी बोधगम्य है हिंदी, है भाव प्रधान।।  हिंदी भाषी है जब हिंदी का करते हैं अपमान  कोई और क्यों देगा फिर महता इसको  कैसे कहेंगे हम भारत महान???  मां मातृभूमि और मातृभाषा हैं तीनों ही सम्मान के पूरे हकदार।  एक खुशहाल राष्ट्र अपनाता है यह सत्य,  होता है उन्हें पूरा सरोकार।।  बहुत सो लिया  अब तो जागने को हिंदी से हम सबको क्या किसी ने  सही कहा है कुछ तो जग में अक्षम्य  होते हैं अपराध । मां मातृभूमि और मातृभाषा को ना रखना याद।। साहित्य का आदित्य है तू, आर्यव्रत का तू अभिमान।।  और परिचय क्या दूं तेरा तू राष्ट्र का गौरव गान।।  मातृभाषा कहीं रह ना जाए मातृभाषा हम सबको इसका रखना होगा ध्यान।।  जिस भाषा में आते हैं विचार दिल में उसी में पहना दें शब्दों का परिधान।। सागर से गहरी तू हिंदी तेरा अस्तित्व बड़ा विशाल।।  भावों की सुनामी बहती है उर में तेरे, एहसासों की अभिव्यक्ति तुझ में कमाल।  ओ हिंदी!जो मुख मोड़ रहे हैं तुझ से, उन्हें सम्मति करना प्रदान..  तेरा परिष्कृत और प्रांजल रूप आए सबके सामने,  सच में भाषा तू बड

घूमर

*घूमर*  पारंपरिक राजस्थानी सामूहिक नृत्य है,जो सहेलियों और परिवार के सदस्यों जैसे बाई सा और भाभी सा के साथ मिल कर किया जाता है। इसे महिलाएं घूंघट निकाल और घाघरा पहन कर करती हैं।। इसकी शुरुआत भील जाति द्वारा मां सरस्वती की पूजा के लिए हुई थी।।1986 में इसे राजस्थान का राज्य नृत्य घोषित किया गया। गणगौर पूजा में इसका विशेष महत्व है।। राजस्थान संस्कृति की सौंधी सौंधी महक लिए होता है घूमर। शादी ब्याह के उत्सव पर विशेष रूप से बहु,बेटियां और सहेलियां इस नृत्य को करती हैं। घूमर मां बेटी के बीच का संवाद है।अति मनोरम और दिल छूने वाला संवाद जब गायन का रूप ले लेता है और संग नृत्य होता है ऐसा घूमर सबका मन मोह लेता है।। *बेटी मां से यह कहती है* 1 हमें घूमर राजस्थानी पारंपरिक नृत्य करने के लिए "काजल और बिंदी* ला दे मां! *हम घूमर करने जाएंगे* हम घूमर करने जाएंगे मां।। 2 हमें राठौड़ों (राजपूतों) की भाषा बहुत अच्छी लगती है मां! हमें राजपूतों की बोली बहुत प्यारी लगती है मां! *हम घूमर करने जाएंगे* हम घूमर करने जाएंगे मां।। 3 हमें "राठौडों की भाषा हीरे जैसी कीमती* लगती है। हमें राठौड़ो

लोभ ईर्ष्या निंदा लालसा

लोभ,ईर्ष्या,निंदा,लालसा और अहंकार,देनी है तो दो इनकी कुर्बानी, हैं ये समस्त मानव जीवन में कुविकार,बेजुबान जीवों पर किस पाषाण हृदय से, चला देते हो ,हे मनुज कटार, क्यों बन्द हो जाते है कर्ण पटल,जब कटते हुए ये सब करते है चीत्कार,किसी प्राणधारी का जन्म कभी भी ऐसे मरण के लिए नही होता,क्यों कुतर्कों से इंसा बीज पाप के है बोता, सोचो,विचारो,और खुद को सुधारो,मात्र जिह्वा के स्वाद की खातिर,बन्द क्र दो ये पापाचार,जब जागो है तभी सवेरा,अभिनव पहल होगी बन्धु सब को स्वीकार

twinkle twinkle little star

हर आने वाला पल जाने वाला है,सब जानते हैं,सब मानते हैं,पर यह नही जानते आने वाला पल किस घटना को जन्म देने वाला है,वर्तमान को आगोश में ले लेता है अतीत,भविष्य वर्तमान बनने वाला है,हम बस सत्कर्मों की कावड़ में जल भरते रहें प्रेम का,यही जल आकंठ तृप्त करने वाला है

क्यों नजर हमे नहीं आता????

क्यों नज़र हमे नही आता,कोई तो गुब्बारों में साँसे डाल कर है बेचने को मजबूर,किसी के पास है इतना,वो है इस इतना होने पर मगरूर,क्यों हमे नज़र नही आता,होनी चाहिए कलम और किताब जिन हाथों में,वो सर्दियों की ठिठुरन में ढीठ बर्तनों की कालिख उतारने में अपना बचपन खो देते हैं,फिर कैसे उम्मीद करें इनसे एक अच्छा इंसान बनने की,गहरी आर्थिक विषमता के बीज हम खुद बो देते हैं,क्यों हमे नज़र नही आता,कहीं दावतों में हज़ारों की थाली  छपन भोगों से परोसी जाती है,कहीं होती है लड़ाई आधी रोटी के टुकड़े के पीछे,जैसे भूख ज़िन्दगी को चिढ़ाती है,क्यों हमे ये आर्थिक विषमता की गहरी सी खाई,आज तलक भी नही देती दिखाई,ज़रा सोचिए,हमे क्यों ये नज़र नही आता?

मात्र भीति चित्र ही नहीं

किसी का बल किसी का दिमाग(( विकार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

किसी का बल अच्छा होता है  किसी का अच्छा होता है दिमाग दोनों ही हों अच्छे जिसके हमारा प्यार हिसार समूह है उसका जवाब।। कर्मों का हर्फ अगर हों सुंदर, फिर सुंदर बन जाती है जिंदगी की  किताब।। एक संज्ञा से नवाजा जाए इस समूह को तो होगी वो निश्चित ही आफताब कर्मों की आवाज कभी शब्द नहीं आचरण होता है चाहे लगा कर देख लो हिसाब।। बहुत सारी सकारात्मक शक्तियां जब कुछ भी करने का लेती हैं ठान। सफलता बिन बुलाए दस्तक दे देती है जिंदगी की चौखट पर,मान चाहे या ना मान।। कला जीने को सुंदर बनाती है उदास चेहरों पर मुस्कान ले आती है कला जिजीविषा को गले लगाती है कला इंसान को पशु से अलग बनाती है। कला उस जगत में ले जाती है हमको, जहां रचनात्मकता  का मिलता है उपहार नायाब।। साहित्य,संगीत और कला के बिन मानव अधूरा है,हमारा प्यार हिसार समूह है इस कथन का जवाब।। मेरी तो यही अनुभूति है, मुझे आपका नहीं पता जनाब।।            स्नेह प्रेमचंद

धन्य है कला धन्य है कलाकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*धन्य है कला,धन्य है कलाकार* बिन अल्फाजों के भी बहुत कुछ कह देता है चित्रकार।। कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का,वरना एक ही नाम के व्यक्ति तो होते हैं हजार।। हर रंग हर चित्र कुछ कहता है अनुभूति को मिल जाता है इजहार।। खास नहीं अति खास बन गया है ये समूह *हमारा प्यार हिसार* जनकल्याण है मूल में इसके, अहम से वयम की चलती है इसमें बयार।। स्वच्छ धरा हो स्वच्छ हो अम्बर कर्म का सदा समूह ने किया श्रृंगार।। अपना घर तो सब चमकाते हैं, पर पूरा शहर जो नित नित चमका रहा है वो *हमारा प्यार हिसार* उच्चारण नहीं आचरण में है विश्वास इसका, सुंदर सोच से रंग दी शहर की हर दीवार। धन्य है कला और धन्य है कलाकार।।      स्नेह प्रेमचंद

साबू भी चाचा चौधरी भी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

We is always better than I(( thought by Sneh Premchand))

We is always better than I We is always better than I It’s a hard fact, not a fun, not a lie. We are not supposed to live forever, certainly one day we have to die. We is always better than I Life is like a hotel, we have to stay for a little and then we have to go from here. When nothing is permanent in this temporary world, then from whom one needs to scare? For a fixed span of time, we have a certain part to play. When our role is over, we are not allowed for a second to stay. When everything is so clear to us then why don’t we learn to share. May sorrows and joys embrace each other, and everyone should learn the lesson of love and care. Whole world will be well, when love will touch the limit of time. Love knows no boundaries of caste,creed,religion and place.  To each other Real lovers always give space. Greed, ego, jealousy and selfishness will automatically die. Heavan will permanant stay  from earth to sky. we is always better than I We is always better than I.

रूह ने एक दिन कहा तन से

रूह ने एक दिन कहा तन से,एक नियत समय के लिए बंधू होता है जग में तेरा बसेरा,तुझे तो ये भी नही पता,कब आ जायेगी साँझ जीवन की,कोण सा होगा तेरा अंतिम सवेरा,फिर भी मोह माया में रहता है लिप्त तू,करता है अपने माटी के पुतले पर गुमान,तेरी सुंदरता तो है चार दिनों की,है तू भी चन्द दिनों का मेहमान,कीचड़ में कमल की तरह साथी,क्यों तुझको रहना नही आया,अपने रूप और यौवन पर तू जाने कितनी बार इतराया,बार बार जा मुक्तिधाम भी,क्यों तुझ को सत्य समझ नही आया?रूह के तन से पूछे गए इस प्रश्न का जवाब क्या आप के पास है,कोशिश कीजिये

मां तुझे सलाम

माँ तुझे सलाम क्या भूलें,क्या याद करें माँ तेरे काम। जाने कैसे बनाया होगा तुझ को न देखा होगा दिन,न देखी होगी शाम। तुझे बना कर खुद पर बहुत इतराया होगा भगवान। फिर कोई प्राणी नही बना पाया तुझ जैसा,अपनी ही रचना पर हो  गया होगा हैरान। माँ तुझे सलाम जननी,जन्मभूमि स्वर्ग से भी बेहतर है सुना था,पढ़ा था पर तुझ से जब मुलाकात हुई कथन को सच का मिल गया अंजाम। युग आएंगे,युग जाएंगे आने वाली हर पीढ़ी को किस्से तेरे सुनाएंगे। तू ऊपर से सुनना माँ हम बार बार दोहराएंगे। माँ तुझे सलाम। हर शब्द पड़ जाता है छोटा जब करने लगती हूँ तेरा बखान। कर जोड़ हम सब देते हैं माँ श्रद्धांजलि तुझको शत शत करते है परनाम। माँ तुझे सलाम। माँ देख ये तीज फिर से आई है। नश्वर तन तेरा ले गयी ये पिछले बरस पर यादों के झरोखों को कभी नही लगा सकेगी विराम।। शोक नही,संताप नही हम गर्व से माँ तुझ को  सदा यूँ ही करते रहेंगे याद। सोचना भी सम्भव नही था कभी कैसा लगेगा माँ के जाने के बाद।। हर अहसास में माँ तू ज़िंदा है। सोच में तू,विचार में तू,आचार में तू व्यवहार में तू फिर कैसे हम तुम जुदा हुए। ज़र्रा ज़र्रा कर रहा माँ तुझ को सलाम।

और परिचय क्या दूं तेरा????

कोकून(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)(

रेशम के कीड़ों की भांति अपने चारों ओर बनाया हुआ है हमने एक कोकून। खुद के इस कोकून को तोड़ मुक्त आत्मा के रूप में तितली जैसे बाहर आओ तुम,अकेले ही फिर सच्चाई के हो जाएंगे दर्शन,बस हो मन में ऐसा जुनून।। ये कहना था स्वामी विवेकानंद जी का,बात उनकी सबको भाती थी।। तुझे आता था इस कोकून से बाहर निकलना,यही कारण था जो अपने परायों सब से जुड़ जाती थी। देस की हो या फिर धरा हो परदेस की,सबको अपना बनाती थी।।

कह दिया बस कह दिया

कह दिया हमने बरस लो बादलों जितना बरस सकते हो,हमारी आँखों में अब आंसू सूख गए हैं,कह दिया हमने सागर से,ला सकते हो जो सुनामी ले आओ ,हमारी सुनामी तो आयी,और सबसे अनमोल खजाने को बहा ले गयी,कह दिया हमने परिंदों से,उड़ना है जितना उड़ लो अनंत गगन में,अब हमें तो उड़ने की ज़ुस्तज़ु ही न रही

सबकी खास

धडधडाती ट्रेन से तेरे वजूद की सबसे खास बात जो थरथराते पुल से मेरे अस्तित्व को समझ में आती है कि सबको लगता था कि तूं उसकी सबसे अधिक खास थी।। तेरे आगे तो 5g network भी फीका है।कनेक्टिविटी तेरे चरित्र की बहुत बड़ी खासियत थी।।  करुणा,प्रेम और परवाह तो सदा के लिए तेरे चित में बसेरा किए हुए थे।।संयम और ज्ञान से तेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी।जिजीविषा और मेहनत तो जननी से विरासत में पाई थी।।अहम से वयम का शंखनाद बजाना तुझे बखूबी आता था।  तेरे जाने से मुझे तो बस यही समझ में आता है। हानि धरा की लाभ गगन का यही भाव जेहन में शोर मचाता है।। और परिचय क्या दूं तेरा????????

बिन मां की बच्ची ने पूछा

aaz ka vichar........bin ma ki bachhi ne bap se puchha...papa ma kya hoti h,bap ne kha...chot lge ger bachhe ko,to ma merham ban jati h,bhukh lge ger bachhe ko,to ma bhojen ban jati h,dhup lge ger bachhe ko,to ma shital chhayya ban jati h,pyas lge ger bachhe ko ,to ma jal nirmal ban jati h,rah bhtak jaye ger bachha,to ma manzil ban jati h,aati h jab koi samasya,to ma hal ban jati h,jeb hoti h ger jab khali hmari,to ma dolat ban jati h,ma hi hoti h sabse bdi dolat hmari,ye bat hme der se samaj aati h,bhul jate hein hum hi prathmikta hmari,per ma aaker kbhi nhi yaad dilati h..........sach aise hoti h ma ,bachhi heiran thi,preshan thi,ki uske paas ma kyon nhi h

सबसे बड़ा कौन????

वैज्ञानिक से पूछा गया, सबसे बड़ा कौन??? जवाब,ब्रह्माण्ड भूगोलविद से पूछा गया,जवाब,जल थल नभ गायक का जवाब था सुर और संगीत, कवि का जवाब था , कल्पनाशक्ति,प्रकृति सुनार का जवाब,सोना, फिलॉस्फर का जवाब,आवागमन का रहस्य,परमपिता की एकरूपता, चित्रकार से पूछा गया सबसे बड़ा कौन??? सोच,आकार,कल्पनाशक्ति रंगरेज से पूछा गया सबसे बड़ा कौन?? रंग,कूची और कला बच्चे से पूछा गया,सबसे बड़ा कोन?बच्चे ने तपाक से उत्तर दिया,माँ,और कौन?????

यूं हीं तो नहीं बनता गुलकंद( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

यूं हीं तू नहीं बनता गुलकंद,  जाने कितने पुष्पों को देनी पड़ती है कुर्बानी।  जिंदगी और कुछ भी नहीं  है,सच तेरी मेरी कहानी।।  इस धरा पर कोई देवात्मा सी तूं, लगती थी तेरी  हर बात और हरकत रूहानी।  तेरे होने का एहसास ही है तेरी सबसे बड़ी निशानी।। * केसर प्यारी* सी महकती रही तू प्रेम चमन में,  तेरी ही तो परछाई हैं ये पावनी और सुहानी।।  कुछ नहीं,बहुत कुछ खास रहा होगा तुझ में,  यूं ही तो नहीं दुनिया होती किसी की इतनी दीवानी।।  दिल कितना बड़ा था तेरा,  सच में तू रही ताउम्र बड़ी ही दानी।।  फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाली, कभी ना हुई तू अभिमानी।  किस किस संज्ञा से नवाजे तुझे,  रानी नहीं तू तो थी महारानी।।  कितनी शीतल कितनी पावन पारदर्शी सी रही तू जैसे हो निर्मल पानी।   उम्र भले ही छोटी रही हो तेरी  पर थी बड़े बड़े बड़े कर्मों की जिंदगानी ।। खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताने वाली,  आने वाली पीढ़ियां भी नहीं भूलेंगे तेरी कहानी।।  यूं ही तो नहीं बनता गुलकंद,  जाने कितने पुष्पों को देनी पड़ती है कुर्बानी।। *करुणा संयम मधुर्य संतोष कर्मठता जिजीविषा और अनुराग*  इन सात भावों से रंगा था इंद्

दास्तान

पता ही नहीं चला(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पता ही नही चला,और बीत भी गए 11साल, पापा हमसे बिछड़े हुए,सुनाएं किसको अब हाल??? एक सहजता  का आंगन बाबुल का कहलाता है, बच्चों की मुस्कान हेतु,वो उनकी हर परेशानी सहलाता है।। नही जगह ले सकता कोई मात पिता की,ईश्वर उनकी रूह को एक नए साबुन से ही नहलाता है, फिर भेज देता है पास हमारे,वो जन्मदाता पिता कहलाता है।। बरगद की घनी छाया है पिता, सबसे घना सुरक्षा साया है पिता, सहजता का पर्याय है पिता, अपनत्व के मंडप में प्रेमअनुष्ठान है पिता, हर समस्या का समाधान,,हर सवाल का जवाब है पिता,माँ की तरह उसे प्रेम का करना नही आता इज़हार,ऊपर से कठोर, भीतर से नरम,वाह रे पिता का अदभुत प्यार।। *मैं हूँ न*कहने वाला होता है पिता, सबसे अच्छी जीवन मे राय है पिता, पता ही न चला,कब बीत गए 11 साल, कोई नही पूछता अब क्या है हमारे दिल का हाल। करबद्ध हम कर रहे परमपिता से यह अरदास, मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को,है प्रार्थना ही हमारा प्रयास, सबकी इस जहां में हैं गिनती की ही शवास, जितना तेल दीये में होता,उतना ही जीवन प्रकाश।।। वो बाजरे की खिचड़ी,वो लहुसन की चटनी वो मिस्सी रोटी की सौंधी सौंधी महक वो सरसों का साग,वो हलव

शिक्षा ही नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

शि---क्षा ही नहीं, शिक्षक शिष्य को देता है संस्कार।। क्ष--मा कर देता है उसकी अनेकों गलतियाँ, मकसद, उसका बस शिष्य सुधार।। क---भी नही चाहता बुरा शिष्य का, गुरु,दिनोदिन कर देता उसका परिष्कार।। हौले हौले आ जाता है उसके व्यक्तित्व में अदभुत सुधार।। गुरु का स्थान है गोविंद से भी ऊँचा,  है गुरु शिष्य के आदर और प्रेम का हकदार।। आज शिक्षक दिवस हमे सिखा रहा यही, शिष्य चित्त में आए न कभी अहंकार।। गुरु और सड़क हैं राही एक ही सफर के, बेशक खुद रहते हैं वहीं,पर शिष्य को   आगे बढ़ने का बना देते हैं हकदार।।

हमारा प्यार हिसार सच्चा शिक्षक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मात्र अक्षर ज्ञान देने वाला ही शिक्षक नहीं होता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वक्त के हाथ से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वक्त के हाथ से फिसल गया लम्हा कोई और बन गई ऐसी दास्तान। यकीन नहीं कर पाएंगी आने वाली पीढ़ियां,ऐसे वजूद से कितना धनवान था ये जहान।। हर हर्फ पड जाता है छोटा, जब करने लगती हूं तेरा बखान। जब भरी भीड़ हो और बस एक नजर आए,यही सच्चे प्रेम की है पहचान।। कई लोग भीड़ का हिस्सा नहीं होते, उनके पीछे भीड़ के होते हैं कदमों के निशान। इस फेरहिस्त में नाम तेरा आता है बहुत ही ऊपर,तूं हमारा गर्व तूं हमारा अभिमान।। *संकल्प से सिद्धि तक* *सफर से मंजिल तक* *उच्चारण से आचरण तक* *सोच से परिणाम तक* का सफर ही तो बनाता है पहचान तूं रुकी नहीं तूं चलती रही, असंख्य हैं तेरे कद्रदान।। क्रम में छोटी पर कर्म में बड़ी सबसे  अधरो पर सजी रही सदा मुस्कान।। अभाव का तुझ पर प्रभाव ना था। गिले शिकवे शिकायत करना तेरा स्वभाव ना था।। खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताती थी। बोल मेरी मां जाई तूं इतनी हिम्मत कहां से लाती थी???? नहीं होता यकीन,तूं ही नहीं, लगता है है यहीं कहीं आस पास। ना रुकी कभी ना थकी कभी, महकती रही ज्यों सुमन में सुवास।।

सागर ने एक दिन कहा साहिल से

सागर ने एक दिन कहा साहिल से,मौजें रहती तो मुझ में हैं,पर मिलती तुझ से हैं,वो तुम्हारी हैं या मेरी?????? बहुत सोच कर बोला साहिल," मौजों का उन्मुक्त है सागर व्यवहार। कोई सीमा,कोई सरहद,कोई परिधि बांध नहीं पाती उनको, ऐसा ही है उनका संसार।। जैसे प्रेम भी नहीं जानता  कोई भी दीवार। चाहे भाषा की हो,धर्म की हो, जाति की हो,प्रेम तो बस है स्नेह आधार।। ऐसी ही तो तूं रही सदा मां जाई! परदेसी भी तुझे उतना ही करते थे प्यार।।  इजरायल से विशेषकर आए  पिता पुत्र हों,या हो स्पेन की पिलार।। दिल पर दस्तक देना बखूबी आता था तुझे, नहीं किसी औपचारिक निमंत्रण की थी तुझे कभी दरकार।। *कुछ करती रही दरगुजर, कुछ करती गई दरकिनार* वैवाहिक जीवन का ही नहीं है ये मूलमंत्र,ये तो हर रिश्ते का आधार।। तेरा आभामंडल ऐसा वायुमंडल था जिसकी आक्सीजन का एक ही नाम था और वो नाम है डॉक्टर अंजु कुमार।। किसी का ज्ञान अच्छा होता है किसी का अच्छा होता है व्यवहार। दोनों ही अच्छे हों जिसके, नाम है उसका अंजु कुमार।। कर्म ही सच्चा परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का, वरना एक ही नाम के तो व्यक्ति होते हैं हजार।। एक किसी के ना होने से

हानि धरा की लाभ गगन का

*हानि धरा की लाभ गगन का* यही तेरे बिछोड़े का है सार। जानती भी थी तूं मानती भी थी,प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।। सुन गगन के चंद्रमा!! बहुत मधुर रहा सदा उसका व्यवहार।। क्रम में सबसे छोटी पर कर्म में सबसे बड़ी, निभा गई अपना हर उम्दा किरदार।। नजर ही नहीं नज़रिया बदलना जिसे आ जाए, वो अच्छा शिक्षक कहलाने का है हकदार। इस फेरहिस्त में तेरा नाम शीर्ष पर आता है मेरी दिलदार।। बचपन में तुझे कहते थे उपदेश न,तूं शुरू से कुछ ना कुछ सिखाती थी। हैरानी को भी हो जाती थी हरनी,इतना ज्ञान कहां से मां जाई तूं लाती थी।। उम्र अनुभव और संस्कारों की कभी नहीं होती मोहताज। तुझे जान यह सत्य सिद्ध हो जाता है मां जाई। सबको तो नहीं आता करना दिलों पर राज।। प्रतिबिंब कहूं तुझे तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी। सबको अक्स नजर आता था तुझ में,तुझ सी मां जाई कोई और ना होगी।। तूं जाने क्या क्या सिखा गई?? कथनी से नहीं ओ लाडो!  तूं करनी से समझा गई।।