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Showing posts from May, 2023

मुंह मीठा

मिठाई खिला कर ही किसी का मुंह मीठा नही किया जाता। किसी से दो मीठे बोल बोल लो मिठास पूरे समा में घुल जाएगी।

काले बालों

काले बालो में सफेदी की चमक आते हमने देखी है। बचपन की ज़िद समझौते में बदलती हमने देखी है।

अपना

जिन्हें समझा था अपना हमने उन्होंने ही हमको रूसवा किया। कैसे टूटे तार रिश्तों के गलतफहमियों ने सब कुछ गलत कर दिया।।

पता ही नहीं चलता

उलझनों के धागे सुलझाते सुलझाते, कुछ बेगानों को अपना बनाते बनाते, ज़िम्मेदारियों के चूनर का घूंघट बनाते , ज़िन्दगी पूरी हो जाती है।

धागे सुलझाते सुलझाते

उलझनों के धागे सुलझाते सुलझाते, कुछ बेगानों को अपना बनाते बनाते, ज़िम्मेदारियों के चूनर का घूंघट बनाते , ज़िन्दगी पूरी हो जाती है।

अहंकार,ईर्ष्या, क्रोध

ममता भरा आपका व्यवहार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जल ही सृष्टि का मूलाधार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*जल है तो जीवन है* जल ही सृष्टि का मूल आधार  अस्तित्व मानव का जल पर निर्भर *आओ करें हम जल से प्यार* *जीवनदायिनी जल बूंदों को,  सुरक्षित संरक्षित रखना है जिम्मेदारी हमारी* *बच पाएंगी तभी आगामी पीढ़ियां  सत्य जाने यह दुनिया सारी* जल संजीवनी बूटी है हर प्राणी के लिए,जल से ही चलता है संसार जल है तो जीवन है जल सृष्टि का मूलाधार  हो वर्षा जल का समुचित संग्रहण,  कर पाए नियंत्रित हर जलधारा*  *जल से ही मिलता है खाद्यान्न   जीवन जल पर निर्भर हमारा* *जल से ही लहलहाती हैं फसलें, प्यासे कंठों को मिलता है सहारा* *जल है तो कल था,आज है, कल होगा इस सत्य को भला किसने है नकारा?? *नीरव, निर्जन भूमि ने जल से ही तो ओढ़ी है हरियाली की चादर*  *कब तक बंद करेंगे आंखें  आओ देना सीखे जल को आदर*  *जल से ही वन्य जीवन संभव,  पशु,पक्षी,कीट,पतंगे प्रजातियां ना जाने कितनी हजार   *जल है तो जीवन है  जल ही है सृष्टि का मूल आधार* *प्राकृतिक वन उपवन और अभ्यारणों ने ही पर्यटन के खोले हैं द्वार* *मूल में छिपा है जल ही इनके, इस तथ्य को करें स्वीकार* *प्राणदायिनी शक्ति है जल प्रकृति की, निर्मम  दोहन से बचना सीखें हम

ये रंग हैं कर्मठता के

ये रंगरेज(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

उठो वतन के सच्चे नागरिक

उठो वतन के सच्चे नागरिक! कुछ कर्तव्य कर्मों ने  जिंदगी की चौखट पर दी है दस्तक  मातृभूमि के लिए है जो जिम्मेदारी *आओ निभाएं कर ऊंचा मस्तक*

ख्वाब

शक्ति

इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो न हम चलें नेक रास्ते पर ऐसे भूल कर भी कोई भूल हो न इतनी सोच हमे देना दाता हम किसी का दिल अनजाने में भी न दुखाएं इतनी समझ हमे देना दाता खुशियां किसी के चेहरे पर लाएं इतनी करुणा हमे देना दाता  एक रोटी और चार जने हों तो रोटी के टुकड़े चार ही कर के खाएँ

घर आंगन दहलीज है बेटी

प्रेम है जीवन का आधार

प्रेम है जीवन का आधार, माँ सावित्री की कृपा हो सब पर,बहे सर्वत्र प्रेम की गंगधार।। स्नेहसुमन हम कर रहे अर्पित,इन्हें कर लेना स्वीकार।। आरुषि के आने से ज्यूँ उजला हो जाता है संसार, एक अभिनव पहल करें हम सारे,लें लोगों के दर्द उधार।। यही राज है हर चारु चितवन का,करे इंदु की शीतलता तन मन का परिष्कार।। कोई परी आए उतर मेघों से पूरे जोश से,कर दे मन से दूर समस्त विकार।।

मां और बेटी

एक ही औरत माँ की बेटी और बेटी की माँ भी होती है। समय बीतने के साथ साथ वो माँ की बेटी कम और बेटी की माँ अधिक बन जाती है। पर इसका मतलब यह कतई न समझना कि वो अपनी माँ को भूल जाती है,उसकी माँ तो उसमें सदा सदा के लिए जीवित रहती है,उसकी बातों में,ख्यालों में,सोच में,उसके क्रियाकलापों में,उसकी जीवनशैली में,उसके संस्कारों में। यहाँ पर मौत का भी वश नही चलता, जितना गहरा नाता या लगाव औरत का अपनी माँ से होगा,उसी का दूसरा रूप उसकी बेटी में उसे दिखाई देगा,यह सत्य है।।

कोशिश है मेरी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोशिश है मेरी  माँ बाप के विषय में लिख कर एक सामाजिक चेतना लाने की कोशिश है मेरी। जो चले गए उन्हें शत शत नमन, और भावभीनी श्रद्धांजलि है मेरी,पर जो इस जहाँ में हैं,उन्हें सम्मान ,तवज्जो,प्रेम,और मीठे बोल दिलवाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। वो जो नही जानते कि वे क्या नही जानते,उन्हें कुछ जन वाने की कोशिश है मेरी। सब जानते हैं,सब मानते हैं,बस हनुमान की तरह याद दिलाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। सबसे अमीर है वो ,जो माँ बाप के संग में रहता है,उस अमीर को उसके ख़ज़ाने को पहचान करवाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। माँ बाप के संग बिताये गए पल अनमोल होते हैं,उन अनमोल पलों को हर कोई सहेजे,बस ये छोटी सी कोशिश है मेरी। हर कोई श्रवण कुमार नही बन सकता, पर इस सोच का अंकुर पल्लवित करने की छोटी सी कोशिश है मेरी। बाद में मन मे न रह जाये मलाल कोई, सहज बनाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। हम से ही सीखती है हमारी अगली पीढ़ी,इस सुसंस्कार की अलख जगाने की  छोटी सी कोशिश है मेरी। संसार मे ही न रहे कोई वृद्धाश्रम,हर आशियाने के मंदिर में माँ बाप के अस्तित्व को स्वीकार कराने की छोटी सी कोशिश है मेरी। मैं कोई ज्ञानी नह

राधा कान्हा

हिंदी भावों का सुंदर परिधान(( vichar Sneh premchand)

निशब्द सा कर देती हो हर बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा चित्र ऐना द्वारा))

योग प्राथमिक है जीवन में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अनुशासन ज़रूरी है

जैसे कूलर में पानी ज़रूरी है जैसे गुब्बारे में हवा ज़रूरी है जैसे दिल मे धड़कन ज़रूरी है जैसे मा में ममता ज़रूरी है जैसे बीमारी में दवा ज़रूरी है जैसे सूरज में तेज ज़रूरी है जैसे प्रकृति में हरियाली ज़रूरी है जैसे सांस लेने के लिए पवन ज़रूरी है जैसे चोट पर मरहम ज़रूरी है जैसे गाड़ी में पेट्रोल ज़रूरी है जैसे किताब में अल्फ़ाज़ ज़रूरी है जैसे मटके में मिठास ज़रूरी है जैसे सावन में बरखा ज़रूरी है जैसे पलँग पर तकिया ज़रूरी है जैसे मा के लिए बेटी ज़रूरी है जैसे पिता में सुरक्षा ज़रूरी है जैसे प्राणी में करुणा ज़रूरी है वैसे ही रिश्ता बनाये रखने के लिए संवाद ज़रूरी है।।।।।

प्रेम ज़रूरी है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जैसे कूलर में पानी ज़रूरी है जैसे गुब्बारे में हवा ज़रूरी है जैसे दिल मे धड़कन ज़रूरी है जैसे मा में ममता ज़रूरी है जैसे बीमारी में दवा ज़रूरी है जैसे सूरज में तेज ज़रूरी है जैसे प्रकृति में हरियाली ज़रूरी है जैसे सांस लेने के लिए पवन ज़रूरी है जैसे चोट पर मरहम ज़रूरी है जैसे गाड़ी में पेट्रोल ज़रूरी है जैसे किताब में अल्फ़ाज़ ज़रूरी है जैसे मटके में मिठास ज़रूरी है जैसे सावन में बरखा ज़रूरी है जैसे पलँग पर तकिया ज़रूरी है जैसे मा के लिए बेटी ज़रूरी है जैसे पिता में सुरक्षा ज़रूरी है जैसे प्राणी में करुणा ज़रूरी है वैसे ही रिश्ता बनाये रखने के लिए प्रेम ज़रूरी है।।।।।

मर्यादा ज़रूरी है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जैसे कूलर में पानी ज़रूरी है जैसे गुब्बारे में हवा ज़रूरी है जैसे दिल मे धड़कन ज़रूरी है जैसे मा में ममता ज़रूरी है जैसे बीमारी में दवा ज़रूरी है जैसे सूरज में तेज ज़रूरी है जैसे प्रकृति में हरियाली ज़रूरी है जैसे सांस लेने के लिए पवन ज़रूरी है जैसे चोट पर मरहम ज़रूरी है जैसे गाड़ी में पेट्रोल ज़रूरी है जैसे किताब में अल्फ़ाज़ ज़रूरी है जैसे मटके में मिठास ज़रूरी है जैसे सावन में बरखा ज़रूरी है जैसे पलँग पर तकिया ज़रूरी है जैसे मा के लिए बेटी ज़रूरी है जैसे पिता में सुरक्षा ज़रूरी है जैसे प्राणी में करुणा ज़रूरी है वैसे ही रिश्ता बनाये रखने के लिए  मर्यादा ज़रूरी है।।।।।

संवाद ज़रूरी है(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

जैसे कूलर में पानी ज़रूरी है जैसे गुब्बारे में हवा ज़रूरी है जैसे दिल मे धड़कन ज़रूरी है जैसे मा में ममता ज़रूरी है जैसे बीमारी में दवा ज़रूरी है जैसे सूरज में तेज ज़रूरी है जैसे प्रकृति में हरियाली ज़रूरी है जैसे सांस लेने के लिए पवन ज़रूरी है जैसे चोट पर मरहम ज़रूरी है जैसे गाड़ी में पेट्रोल ज़रूरी है जैसे किताब में अल्फ़ाज़ ज़रूरी है जैसे मटके में मिठास ज़रूरी है जैसे सावन में बरखा ज़रूरी है जैसे पलँग पर तकिया ज़रूरी है जैसे मा के लिए बेटी ज़रूरी है जैसे पिता में सुरक्षा ज़रूरी है जैसे प्राणी में करुणा ज़रूरी है वैसे ही रिश्ता बनाये रखने के लिए संवाद ज़रूरी है।।।।।

बेटी मां को परछाई

विविधता में एकता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक ही वृक्ष के हैं  हम फल,फूल,पत्ते हरी भरी शाखाएं* *विविधता है बेशक  बाहरी स्वरूपों में हमारे, ,पर मन की एकता की  मिलती हैं राहें* *अलग खान पान है  अलग है पहनावा" *पर मूल से हम सब भारतीय ही हैं, नहीं करते कभी कोई कहीं दिखावा* बोली बेशक अलग हो हमारी, पर दिल के भाव एक हैं एक साथ खड़े होते हैं इसलिए, क्योंकि दिल के भाव नेक हैं।। *कला ना जाने सरहद कोई* *संगीत ना जाने मजहब कोई* *साहित्य ना जाने कोई दीवार* *विविधता में भी एकता है हम में* *प्रेम ही हर रिश्ते का आधार* *परदेसी को भी बना लेते हैं अपना यही हमारी शिक्षा,यही हमारे संस्कार*

तेरा होना

[ तेरा होना ] जैसे सावन में बारिश का होना, जैसे गीता में कर्मसंदेश होना, जैसे रामायण में सुशिक्षा होना, जैसे गंगोत्री से गंगा का बहना, जैसे कुसुम में महक का होना, जैसे गन्ने में मिठास का होना, जैसे हलधर की खेती का होना, जैसे साहित्य में कबीर की रचनाएं, जैसे राही के लिए हों राहें, जैसे पार्थ के लिए था अचूक निशाना, जैसे एकलव्य की गुरुनिष्ठा का ताना बाना, जैसे कोयल के लिए कूक का होना, जैसे मन्दिर में घंटी का होना, जैसे रामायण में चौपाइयों का होना, जैसे माधव के लबों पर बांसुरी का होना, जैसे राघव के लिए वचन का पालन करना, जैसे माँ में ममता का होना, जैसे पिता में सुरक्षा भाव का होना, जैसे कूलर में पानी का होना, जैसे नयनों में ज्योति का होना, जैसे चिराग में बाती का होना, जैसे लेखनी में लेखन का होना जैसे दिल मे धड़कन का होना, जैसे चूल्हे में ईंधन का होना, जैसे हल्दी में पीलापन होना, जैसे दिनकर में तेज का हो होना, जैसे इंदु में शीतलता होना, जैसे हीरे में चमक का हो होना, जैसे थकान के बाद निंदिया का होना, जैसे भगति में श्रद्धा का होना, जैसे अपने ईष्ट में विश्वास का होना, जैसे तरुवर पर प

प्रकृति भी दे जाए तुझे उपहार(( दुआ जन्मदिन पर मां स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मैं ही नहीं प्रकृति भी दे जाए  तुझे तेरे जन्मदिन पर उपहार* दिनकर दे जाए तुझे तेज अपना , चंदा बहाए सदा शीतलता की बयार।। *तारे बिखेर दें छटा अपनी, अपनी खिलावट से जीवन  तेरा कर दें गुलजार* *बूटा बूटा प्रकृति का भर दे  ताजगी तेरी शख्शियत में, हो औरा,और भी सुंदर तेरा हर बार* पुष्प दे जाएं महक और सौंदर्य अपना,तितली समझा जाए क्षणभंगुर जीवन का सार किसी खुले झरोखे से छनती धूप में नर्तन करते धुलिकण कर जाएं चेतना का संचार बारिश के बाद की धूप में निखरी निखरी सी हरियाली बस जाए तेरी नजरों में बेशुमार कागज की किश्ती और बारिश का  टिप टिप पानी ,यादों में सदा रहे शुमार  *पर्वत दे जाएं तुझे अडिगता अपनी, गहन सागर, दे जाए अपना अनंत विस्तार* *जुगनू अपनी चमक से रोशन कर दे वजूद तेरा,  रोम रोम हो पुलकित तेरा बेशुमार* *कोयल दे जाए तुझे स्वर पंचम अपना, कतार बद्ध पंछी समझा जाएं एकता का सार* *मोर अपना नृत्य दे जाएं, दे जाएं हंस ,अपनी सफेदी का आधार* *हरी दूब दे जाए कोमलता अपनी, सुंदरता दे जाएं वृक्ष देवदार* ओस दे जाए सौंदर्य अपना, विशालता दे जाए कचनार प्रकृति से बड़ा नहीं होता कोई शिक्षक, प्रकृति एक कैनवास,ईश्वर क

शिक्षा और संस्कार

गंगोत्री

Suvichar.......bhagti ki gangotri se jab bhajno ki ganga nikalti h,sab paavan or nirmal ho jata h.jaise tej gti se behta pani sab kuda kerkat sang  le jata h,yun hi bhajan man se sare dushit vichar ,ahenkaar,irshya sab nikal ker sadbhavon ko janm dete h.permanand ISSI ka to naam h,yhi sachhi khushii h,insaan man se sunder ho jata h,zruri h bhajan.bhajano ke sabun se man ka maeil bhag jata h..........h na aisa

सत में सावित्री(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सत्य में सावित्री मन्त्रो में गायित्री* *धर्मयुद्ध की गीता रामायण की सीता* *वात्सल्य की मूरत* सबसे प्यारी सी सूरत *सुर में जैसे सरगम दिल में जैसे धड़कन" *रामायण में राघव सी गीता में जैसे माधव सी* *पवन में गति सी दिमाग में मति सी* *तबले में थाप सी गायन में जैसे अलाप सी* *माटी में महक सी चिड़िया में चहक सी* *आंखों में नूर सी हीरों में कोहिनूर सी* *प्रकृति में हरियाली सी पर्वों में दीवाली सी* *सावन में मल्हार सी बागों में बहार सी* *दिनकर में उजियारे सी शांति में गुरुद्वारे सी* *पिता में परवाह सी चकव्यूह में राह सी* *मंदिर में मूरत सी आईने में सूरत सी* *कोयल में कूक सी यादों में हूक सी* *सागर में नीर सी भोजन में खीर सी* *राधा चित में शाम सी जानकी की सोच में राम सी* *फलों में मीठा आम सी कर्मठता में काम सी* *कविता में भाव सी बच्चे में चाव सी*   *मीरा में भगति सी मां काली में शक्ति सी* *संगीत में अनहद नाद सी वृक्षों में जैसे खाद सी* ऐसी ही होती है माँ *है मां की यही एक परिभाषा* पूरब,पश्चिम,उत्तर ,दक्षिण *मा बच्चों के जीवन में  सबसे सुंदर आशा*

गलती और गुनाह(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बार बार कहती है शिक्षा

सोच कर्म परिणाम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सोच कर्म परिणाम तीनों की त्रिवेणी युगों युगों से  युगों युगों तक  संग संग बहती आई है* *मैं भी जानू तू भी जाने,  समय की धारा ने ,  बात यही समझाई है**  हम जो सोचते हैं, वैसा ही करते हैं, और जैसा करते हैं उसी का परिणाम हमें भुगतना पड़ता है। हमारे किए कर्म ही एक दिन हमसे मुलाकात करने आ जाते हैं, उस समय हैरानी नहीं होनी चाहिए।  सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारी सोच कैसी हो??? इसमें एक नहीं, अनेक कारक है जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं हमारा परिवेश परवरिश,नाते, मित्र, हमारी प्राथमिकताएं,हम से जुड़े हुए लोग, हमारा कार्यस्थल,हमारे संवाद, हमारे संबंध,हमारे बचपन से लेकर आज तक के अनुभव, हमारे मात पिता से संबंध,हमारी विफलताएं और हमारी उपलब्धियां और सबसे महत्वपूर्ण हमारी शिक्षा और उससे भी महत्वपूर्ण हमारे *संस्कार* क्या हमारे संस्कार इतने ताकतवर हैं जो हमारी सोच को प्रभावित कर पाएं और हम उसी के अनुसार अपने कर्म करें।कहीं आधुनिकता की अंधी भागदौड़ में हम वो देख ही नहीं रहे जो हमे देखना चाहिए *सुख सुविधाएं* शांति और सच्ची खुशी की गारंटी नहीं ले सकती। अधिक की कोई सीमा नहीं।महत्व इस बात का है क

पहली बारिश सी

पहली बारिश की सौंधी माटी की खुशबू सी मा, घर के गीले चूल्हे में सतत ईंधन सी जलती मा, चिमटे,बेलन,थापी, झाड़ू में सदा ही लगती सी रहती मा, हर घाव का मीठा से मरहम बनती मा, हर मसले का हल बनती सी सीधी साधी न्यारी मा, घर के झगड़ों पर समझौते का जाने कितनी बार तिलक लगाती मा, बच्चों की खातिर अपनी इच्छाओं को हौले हौले दबाती मा गिले शिकवे औऱ शिकायतों से अपना पीछा छुड़ाती मा।।

Poem on Mother s day

लोग कहते हैं आज मातृ दिवस है कौन सा दिवस है जो बिन मां के हो??? **स्नेह,समर्पण,सुरक्षा,सहयोग जिस एक ही गांव में रहते हैं मेरी छोटी सी समझ को आता है समझ,उसे मां की ठंडी छांव कहते हैं** **तेरी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा सी अधिक तो नहीं आता कहना तूं रही कौओं में हंसा सी** 11स्वर और 33 व्यंजन भी कम हैं जो तेरे बारे में बता पाऊं मां तेरे जैसी कर्मठता और जिजीविषा बता दे कहां से लाऊं???? *जिंदगी की किताब के हर किरतास पर नजर मां तूं हीं तूं नजर आती है जैसे एक सांस आती है  एक सांस जाती है* कहां से लाऊं वो बारह खड़ी जो तेरे बारे में कह पाऊं नहीं सामर्थ्य मेरे लफ्जों में जो भावों को मैं बता पाऊं

जननी जन्मभूमि समान

बेसन की सौंधी रोटी पर

नहीं भूलूंगी आजीवन

POEM ON MOTHERS DAY (जिस गांव में बड़े प्रेम से रहते हैं विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*स्नेह,समर्पण,सहयोग सुरक्षा* जिस गांव में बड़े प्रेम से रहते हैं मेरी नजर में तो बस एक जगह है *उसे मां की ठंडी छांव ही कहते हैं* *संयम,संतोष,सौंदर्य,सहजता* जहां चारों का है पूरा अधिकार एक मात्र जगह वो जहां में* *सिर्फ और सिर्फ मां का प्यार* *समझ,प्रेरणा,साथ,विश्वास* सबको है जहां सच्ची आस तूं भी जाने मैं भी जानूं* *जहां होता है मां का वास* 🌞 Sun, shadow winter rain हर मौसम में होता जहां gain *मां के आंचल की ठंडी छाया  सोच को बस यही समझ में आया* *एकांत,महफिल,विश्व,समाज* एक छत्र जिसका होता राज तूं भी जाने मैं भी जानूं* *मां कंठ तो हम आवाज* *दिल,दिमाग,चित,चेतना* बिन कहे जो पढ़ लेती है वेदना *जग में होती वो महतारी जान गई ये दुनिया सारी* *गीता,बाइबल,वेद,कुरान* इनसे उपर मां है महान *भले ही हो ना अक्षर ज्ञान पढ़ लेती है मनोविज्ञान* *अंबर,धरा,चांद,आफताब* मां से सुंदर नहीं कोई किताब मातृप्रेम का तो ईश्वर भी, आज तलक नहीं लगा पाए हिसाब *ग्रीष्म,पतझड़,शिशिर,बसंत* हर रुत में मां का प्रेम अनंत मां वात्सल्य की अद्भुत बारह खडी, *मां सा नहीं होगा कोई भी संत* *स्वर,व्यंजन,भाव,अलंकार* मां जीव

मां की ठंडी छांव

जिम्मेदारी संग अधिकार

ऐसे मित्र सा इत्र कहां

कौन सा दिवस है बिन मां के????

Poem on Mother सिमटा हुआ है पूरा जहान( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

 **धरा सा धीरज उड़ान गगन सी  मां से तो हरे हो जाते हैं रेगिस्तान** *एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान* न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान।। वो कभी नही रुकती थी, वो कभी नही थकती थी, किस माटी से खुद ने उसका किया था निर्माण? उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी था उसको बरकत का वरदान!! धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी, *मां से तो हरे हो जाते हैं रेगिस्तान* धूप धूप सी जिंदगी में, मां छांव छांव सी, *मां से खिल जाते हैं गुलिस्तान* *कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का,हम सब को मां तूने आकंठ तृप्त करवाया* *कर्म के मंडप में अनुष्ठान कर दिया ऐसा मेहनत का, सब का रोम रोम हर्षाया* हारी नहीं कभी कर्म से, मेहनत को अपना शस्त्र बनाया *कर्म आनंद है* ऐसे संस्कारों का शिक्षा भाल पर तिलक लगाया* जिंदगी के इस चमन की,  *मां सबसे   प्यारी बागबान* *हर कली, बूटे,पत्ते का  रखती अपनी क्षमता से पूरा ध्यान बिन फल के वृक्ष के लिए भी खाद,पानी,धूप, हवा का करती प्रावधान* *बहुत छोटा शब्द है मां को कहना केवल महान मां की गोद में तो हुए आनंदित खुद राघव और माधव भगवान* *मातृऋण से कभी उऋण नही हो पाएंगे तिनके सा

दस्तावेज

Poem on Mother's day मां हम जुगनू तूं दिनकर है(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

मां कैसे करूं तुझे परिभाषित 11 स्वर और 33 व्यंजन भी कम हैं  हम जुगुनू तू आफताब है मां हम हर्फ तूं किताब है मां सौ बात की एक बात है, जीवन का सबसे सरल हिसाब है मां मां जीवन की सबसे मधुर है लोरी मां रिश्तों की मजबूत सी डोरी  हम तारे तूं चांद है मां हम वर्णमाला तूं संवाद है मां हर संबोधन और उदबोधन मां अति मधुर होता है तेरा पहर में से देना हो जो नाम तेरा कहूंगी इतना तूं मधुर सवेरा हर धूप छांव में संग खड़ी हो जीवन में जैसी भी घड़ी हम बहके कदम मां मजबूत छड़ी माँ हम प्यासे तो तू जल है, माँ हम जिज्ञासा तो तू हल है, मां हम समस्या तू समाधान है, मां ही श्रद्धा मां ही विगान है मां तू कुदरत का वरदान है, माँ हम धरा तू आसमान है, माँ हम दिल तो तू धडकन है, माँ हम सुर तो तू सरगम है, माँ हम बून्द तूं सागर है, माँ हम नीर तू गागर है, माँ हम पंख तू परवाज़ है, माँ तू पर्व,उत्सव,रीति,रिवाज़ है, मां हम पतंग तो डोर है तूं मावास के बाद की भोर है तूं माँ तू ही शिक्षा,तू संस्कार है, माँ तुझ से होता परिष्कार है, माँ हम शब्द तू भाव है, माँ तू मांझी और हम नाव है, माँ हम अक्षर तू पूरी किताब है, माँ से बढ़ कर न

एक अक्षर के छोटे से शब्द में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान* न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान।। वो कभी नही रुकती थी, वो कभी नही थकती थी, किस माटी से खुद ने उसका किया था निर्माण? उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी था उसको बरकत का वरदान!! कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का,हम सब को मां तूने आकंठ तृप्त करवाया, कर्म के मंडप में अनुष्ठान कर दिया ऐसा मेहनत का,सब का रोम रोम हर्षाया।। मातृऋण से कभी उऋण नही हो पाएंगे तिनके सा अस्तित्व  है हमारा तेरी महान हस्ती के आगे,तुझे आजीवन माँ जेहन में लाएंगे।। आज भी तू मन के हर अहसास में है, ऐसा लगता है जैसे मेरे पास में है, तू कहीं नही गयी,तू तो माँ हर जगह में है समाई कौन सी ऐसी शाम है माँ,जब तू न हो हमे याद आई, हमारे आचार में तू,व्यवहार में तू,हमारी सोच में तू,हमारी कार्य शैली में भी नज़र आती है तेरी परछाईं, बस एकमातृदिवस तक ही सीमित नही अस्तित्व तेरा,तू तो हर पल इस इस मे है समाई। एक अर्ज़ सुन लेना दाता, हर जन्म में मेरी माँ को ही मेरी माँ बनाना वो कितनी अच्छी थी,कितनी प्यारी थी,थी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत सा  तराना।।

माना

माना रिश्ते तोडने नही चाहियें, पर जहां न हो कदर हमारी, कैसे उस रिश्ते को निभाया जाए एकतरफा रिश्ता नही चलता अधिक देर तक ये किस किस को कैसे समझाया जाए, प्यार लो,प्यार दो, सीधा सा ज़िन्दगी का ये समीकरण क्यों लोगों को समझ नही आता। जो देते है तवज्जो हमको, उनका ही साथ हमे नही भाता।।

मां रोटी बन जाती है

मदर्स डे स्पेशल भूख अगर लगती है बच्चे को,तो मै रोटी बन जाती है।  Aप्यास लगे गर उसको तो ,मा नदिया बन जाती है। समस्या हो गर कोई उसे,मा समाधान बन जाती है। शायद तभी ईश्वर की सर्वोत्तम कृति कहलाती है।।

खुशी बांटने से दूनी

अहसास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

कब है बदल जाता है था में हो ही नही पाता अहसास ये कब,क्यों,कैसे हुआ लगाते ही रह जाते हैं कयास वो बैठ जाते है फ्रेम में कुछ ऐसे फिर लौट कर नही आते पास मा बाप नही मिलते जग में दोबारा होता है उनके सानिध्य में जन्नत का वास नही आता समझ समय रहते चुग जाती है खेत चिड़िया देर से होता है आभास

मां कंठ तो हम आवाज

धरा ने धीरज गगन ने विस्तार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

 *प्रकृति ने  ही कर के भेजा है  मां का अदभुत,अनोखा,अद्वितीय श्रृंगार* *चित में ममता,चेतना में धीरज, मां ही आकृति,मां ही आकार * *मां ही शब्द है,मां ही भाव है मां से होता हर सपना साकार* *वेद पढ़े न हों बेशक मां ने, वेदना पढ़ने में न मानी कभी हार* *कुछ कर दरगुजर  कुछ कर दरकिनार* यही करती रहती है ताउम्र मां, हर नाते के जोड़ती रहती तार प्रकृति ने तो कर के ही भेजा है मां का अदभुत अनोखा अद्वितीय श्रृंगार *हम पर शुरू हम पर ही खत्म हो जाता है मां का संसार* हर समस्या का समाधान है मां मां सम्मान की पूरी हकदार *गणित में थोड़ी कमज़ोर होती है मां, दो रोटी मांगने पर देती है चार* *मनोविज्ञान में आती है अव्वल सबसे सुंदर जग में मां का किरदार* *9 महीने कोख में,2 बरस गोद में, आजीवन दिल मे बसाए रखने का सिलसिला चलता रहता है लगातार* *कभी नहीं थकती,कभी नहीं रुकती मां से ही मोहक ये संसार* ऐसी देवी स्वरूपा मां को , शत शत नमन और वंदन बारंबार प्रकृति ने तो करके ही भेजा है मां का अदभुत अनोखा विलक्षण श्रृंगार हम कंठ तो आवाज है मां मां है तो मुस्कुराते हैं अधिकार हम जुगनू तो भास्कर है मां मां के उजियारे से होते चमत्

कब है बदल जाता है था में

कब है बदल जाता है था में हो ही नही पाता अहसास ये कब,क्यों,कैसे हुआ लगाते ही रह जाते हैं कयास वो बैठ जाते है फ्रेम में कुछ ऐसे फिर लौट कर नही आते पास मा बाप नही मिलते जग में दोबारा होता है उनके सानिध्य में जन्नत का वास नही आता समझ समय रहते चुग जाती है खेत चिड़िया देर से होता है आभास

बारिश हो और धरा नम ना हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शिक्षा जरूरी है,संस्कार अधिक जरूरी है

शिक्षा बहुत ज़रूरी है, संस्कार शिक्षा से भी ज़रूरी है, संगति भी व्यक्ति के जीवन मे बहुत मायने रखती है। संगठन के बिना तो सब निराधार है, व्यक्तिगत पहचान जीवन मे बहुत ज़रूरी है,कोई भी रचनात्मक काम चाहे साहित्य,कला,समाजसेवा,विज्ञान किसी भी क्षेत्र में हो।

क्या लिखूं तेरे बारे में

जैसे शादी में शहनाई

हो नहीं सकता

एक ही हैं हम

लगती है जब गर्म हवा

Suvichar... .lagti h jab garm hwa roti ki,jaan si jaise nikal jaati h.kisi ki jaan kaise le sakte h ham,ye nirmamta hme kaise bhati h.ek nhi perkerti me hme khane ko diye h deron uphaar,matr jihvaa me swaad ki khatik,ham kaise kisi jeev per chla dete h ktaar,keh sakta to WO keh deta,usse  kitni peeda hoti h,tan hi nhi ,aatma nhi uski bhiter se roti h.......ahsaas kro iska

न स्वर न व्यंजन

*न स्वर न व्यंजन हैं सक्षम सत्य ये बताने में* *चांद से सुंदर कुछ भी तो  नहीं है इस जमाने में* *चौदहवीं का चांद हो, या चांद हो फिर दूज का मधुरम मधुरम सी लगती है चारु चितवन,रंग हो जैसे प्रीत का* *काली मावस के बाद जैसे  चांद होता है पूनम का* *हर गलियारा हो जाता है रोशन, हल होता हो उजियारा जैसे गहन अंधकार का*

थी बहुत बुरी बात

लम्हों का सफर

लम्हों ने तो सफर करना ही है, किरदार तो अपना घटनाओं ने निभाना है। काल के कपाल पर सदा के लिए चिन्हित हो जाती हैं कुछ घटनाएं, मुश्किल उन्हें भुलाना है।। जहां से जाने वाले जिक्र और जेहन से भी चले जाएं, ये होता नहीं है,अब तो तेरी यादें हीं जीवन का खजाना है।। कुछ लोगों को जाने किस मिट्टी से बनाता है विधाता, उसी मिट्टी की सौंधी सौंधी महक से महक रहा ये ज़माना है।।

बड़े कौन होते हैं

aaz ka vichar.....BDE kon hote hein.....umr bdi hone se bde bde nhi hote,kam bde kerne se bde bde hote h,bdapn lambi umr ka mohtaz nhi,choti umr ke log bhi achhe kam ker sakte h,jaise vivekanand,budh....bde wo hote h jo bdi batein kam,kaam zyada kerte h,bde aisa saya hote h jinke jane ke baad tapish lagne lagti h,sukun aur sahajta ka pryaay h bde,aur inn bdon ke jane ke baad ham achanak hi bde ho jate h.................h na

चूनर मर्यादा है