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राधा रुक्मणि( भगति भाव उद्गार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पूछन लागी जब रुक्मणि राधा से," कहो राधा!  कैसा है तुम्हारा कृष्ण से नाता??? *राधा ने जो फरमाया*  वह युगों युगों से युगों युगों तक, जन जन को तहे दिल से भाता।। बोली राधा,* मेरी तो सांस सांस में कान्हा,मेरी रूह को आज भी कान्हा की बंसी देती है सुनाई* पल पल होता है अहसास मुझे उनके होने का, नहीं हुई मेरी आज तलक भी उनसे विदाई।। *प्रेम कावड़ में कान्हा ने  मुझे ऐसा अमृत पिलाया है* युगों युगों से,युगों युगों तक मेरा अंतर तृप्त हो आया है।। *बिन स्पर्श जो छू ले मन को, है *प्रेम* वही प्यारा सा अहसास* खुद को खुद की नजरों में भी बना देता है *आम से अति खास* *तन के भूगोल को नहीं  मनोविज्ञान को जानता है प्रेम, ब्रेल लिपि नहीं, सांकेतिक भाषा का प्रेम में सार* बिन कहे ही समझ आता है जो, यही  होता है प्रेमआधार।। मात्र कुछ मीठे शब्दों से ये, आंखों से ह्रदय में खुद को लेता है उतार। *धड़कन धड़कन संग लगती है बतियाने,  हर शब्दावली अर्थहीनता की चला देती है बयार किसी देह किसी स्पर्श की प्रेम हो होती नहीं दरकार* जीवित रहती है ये प्रेम अनुभूति युगों युगों तक ह्रदय में स्पंदन जैसी, जैसे

मौन और शब्द

मेहनत और आलस्य(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आत्मसात

संबंधों को पॉलिसी

प्रेम आधार

लक्ष्मण रेखा

कई बार

जुड़ाव thought by snehpremchand

गर मुलाकातें ही प्रेम या दोस्ती का होते एकमात्र आधार होते तो पीर जग आज भी शाम से पहले राधा का नाम न लेता। कृष्ण के द्वारकाधीश बनने के बाद तो राधा की उनसे मुलाकात ही नही हुई। रूह से जुड़ाव तन के जुड़ाव से ज़्यादा ज़रूरी है।।         स्नेहप्रेमचंद