धीर धरा सा,उड़ान गगन सी, कितनी प्यारी,कितनी अच्छी होती मां।। सहरा में बन जाती है गुलिस्ता, तपिश में होती ठंडी छां है मां।। गति पवन सी,मर्यादा राम सी, अडिग गिरी सी होती मां। तेज़ रवि सा,मधुर चंद्र सी, पावन गंगा सी होती मां।। गंभीर सिंधु सी,नयनाभिराम इंदु सी, बोली कोयल सी,कितनी निश्छल होती मां।।। खिली बसंत सी,महकी सुमन सी, चहकी चिड़िया सी,हरी हरी जंगल सी मां, हर तुलना पड़ जाती है छोटी, जब मां का करने लगो बखान। न कोई था,न कोई होगा,मां से बढ़ कर कभी महान।।