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पल,पहर,दिन, महीने,साल(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**पल,पहर,दिन,महीने साल बीत कर,एक दिन ये आ ही जाता है** **कार्यक्षेत्र में कार्यकाल हो जाता है पूरा, समय अपना डंका बखूबी बजाता है** **हौले हौले अनेक अनुभव अपनी आगोश में समेटे,बरस 60 का इंसा हो जाता है*" **हो सेवा निवृत्त कार्यक्षेत्र से, कदम अगली डगर पर वो फिर बढ़ाता है** पल,पहर,दिन,महीने-------------आ ही जाता है।। **ज़िzन्दगी की आपाधापी में कई बार कोई शौक धरा रह जाता है* *जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ, ज़िम्मेदारियों में खुद को फंसा हुआ इंसा पाता है** पर अब आयी है वो बेला, जब साथी हमारा खुशी से कार्यमुक्त हो कर अपने घर को जाता है, शेष बचे जीवन में, उत्तरदायित्व बेधड़क सहज भाव से निभाता है। पल,पहर,दिन,महीने,साल-------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी का *स्वर्णकाल* माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं, पर शेष बचा जीवन होता है *हीरक काल*यह क्यों समझ नही लेते हैं।। *सेवानिवृत्त होने का तातपर्य कभी नही होता, क्रियाकलापों पर पूर्णविराम* किसी अभिनव पहल, या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।। यादों के झरोखों से जब झांकोगे,तो जाने कितने अनुभव अहसासों को पा जाओगे, कितनो को ही न जाने मिली ही न होगी अभि