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Showing posts from August, 2022

भारतीय जीवन बीमा निगम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भा---रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है सुरक्षा,समृद्धि और विश्वास।। र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से,तभी निगम है अति खास।। ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है,इसी सोच से हुआ है सतत विकास।। य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने,अपने अस्तित्व का इसे आभास।। जी--वन के साथ भी,जीवन के बाद भी,निराशा में भी आशा का किया है वास।। व---नचित न रहे कोई भी उत्पादों से, इसके,यथासंभव किया हर प्रयास।। न---भ सी छू ली हैं ऊंचाईयां, आता है धरा के भी रहना पास।। बी---च भंवर में जब कोई चला जाता है, छोड़ कर,होती है निगम से फिर आस।। मा---हौल बनाया निगम ने ऐसा,जैसे कुसुम में होती है सुवास। *सेवा संग मुस्कान के* इसी भाव को कर पोषित निगम बना है अति खास।। नि---यमो को नही रखा कभी ताक पर,हर वर्ग को जोड़ कर खुद से,सतत किया जिसने प्रयास।। ग---रिमा अपनी रखी बनाई,सबको जीवन मे राह दिखाई,दिनकर से तेज का इसमे वास।। म---जबूत हौंसला,बुलंद इरादे,जनकल्याण की भावना का न हुआ कभी ह्रास।। आज एल आई सी के 66 वें जन्मदिवस पर हो सबको बहुत बहुत बधाई। सुरक्षा,संरक्षा और समृद्धि की त्रिवेणी   सदा निगम ने दिल से बहाई।।            

सर्वोपरी है ग्राहक

प्रतिभा

मुझे कुछ कहना है

मुझे कुछ कहना है,मुझे ये कहना है कि माँ को  सच्ची श्रदांजलि क्या होगी?माँ को याद कर के आंसू बहाना, नहीँ, पुराने वक़्त को रोते रहना,नहीँ, बचपन के हिंडोले में झूले लेते रहना, नहीँ, इनमे से कोई माँ को सच्ची श्रदांजलि नही होगी,माँ की कर्मठता को अपनाना,बिना रुके चलते रहना,ऊँचे सपने देख उन्हें पूरा करने का हर यथासंभव प्रयास करना,न किसी से दुश्मनी,सबसे हिल मिल कर चलना,आगे बढ़ कर आना,क्रिया पर प्रतिक्रिया करना,स्वस्थ है परिहास,जिजीविषा से भरपूर रहना,हार न मानना,प्रेम से परायों को भी अपना बनाना,ये सब सीखना ही माँ को  सच्ची श्रधांजलि होगी,है न

हो बात जो उनके जाने की(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

किसी का काम अच्छा होता है किसी का अच्छा होता है व्यवहार।  दोनों ही अच्छे हो जिसके,  रीना मैडम का नाम है इसम शुमार।।  दिल की बात नहीं हुआ करती सबसे,  पर आप से हो जाती थी जाने कितनी ही बार।  बहुत अच्छे से आप जानते भी हो, मानते भी हो,  प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।   अधरों पर आपके खिली रहे  यूं ही यह मोहक मुस्कान।  *मधुर वाणी और मधुर व्यवहार* दिए ईश्वर ने आपको दोनों ही वरदान।।  आज एक पारी पूरी हुई आपकी, दूसरी पारी का भी खिले गुलिस्तान।  *कर्म ही असली परिचय पत्र हैं व्यक्ति का*  वरना एक ही नाम से तो व्यक्ति होते हैं हजार। कर्म का शंखनाद बजाया आपने सदा लगन से,  कर्तव्य कर्मों से ना मानी कभी हार।। * कर्म और व्यवहर यही तो है मानव जीवन का सार* दोनों ही श्रेष्ठतम रहे आपके,  निभाया उम्दा हर किरदार।। अच्छी बहू, बेटी, पत्नी, मां, ननंद कार्यकर्ता  हर नाते का नाम है इस में शुमार। * जिंदगी हर कदम एक नई जंग है* आजमाईशों से भी ना मानी कभी हार।  धूप छांव सी इस जिंदगी में किया, कर्म का सदा श्रृंगार।।  *हो बात जो उनके जाने की,  ये नयन सजल तो होने थे*  बहन से साया गर छिन जाए,  ताने-बाने मन के तो

मुबारक मुबारक जन्मदिन मुबारक

करवट

परिवार से बढ़ा कोई नहीं

बीत गई

कितना प्यारा

ऊंची उड़ान

अभिव्यक्ति

राज लेखन का

हाथ

हरियाणा

रेत के घरौंदे

समय ही मरहम होता है

मां याद आती है मुझे

वो लहुसन की चटनी

अनहद नाद से भी मधुर

अनहद नाद से मधुर है माँ की लोरी,छप्पन भोग से स्वादिष्ट है माँ के हाथ की चटनी रोटी,त्रिलोक से अधिक सुकून है माँ के आंचल में,कोयल से मीठी है माँ की आवाज़,हर दिन उत्सव है माँ के साथ,माँ प्रेम की वो किताब है जिसे पढ़ना तो सब को आता है,पर सहेजना नही,संगीत के सात सुर है माँ,गीता ,कुरान ,रामायण है माँ,अधिक तो कहना नही आता,बस बहुत ज़रूरी है माँ

बहुत ऊंची होती है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

चलो मन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*चलो मन* चलते हैं वहां, होती हो जहां  उजली सी भोर।। *चलो मन* जहां रचनात्मकता का होता हो मधुर सा शोर।। *चलो मन*  जहां एक और एक होते हों ग्यारह, है,जोश, जज्बे और जुनून का जो ठौर।। *चलो मन*  जहां कोई राग नहीं कोई द्वेष नहीं कोई कष्ट नहीं,कोई क्लेश नहीं, कोई अवसाद नहीं,कोई विषाद नहीं, जहां स्नेह सरगम का बजता हो *अनहद नाद* सा इसके जैसा समूह नहीं कोई और।। *हमारा प्यारा हिसार* समूह का नाम आता है मेरे जेहन में तो, नाम ही नहीं काम भी इनका कर देता है भाव विभोर।।

नन्हे फरिश्ते

मधुर मनोहर

हर परिंदे को मिले उड़ान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तीन परिंदे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मात्र भीति चित्र ही नहीं

धड़कन

यूं हीं नहीं

बीते पल

नन्हीं मिलता

कई बार

हंसते हंसते

आ चल के तुझे

जिंदगी और कुछ भी नहीं

जी चाहता है

कमल

मां से बेहतर कोई नहीं

सहज होने की कोशिश

कोई रिश्ता नहीं ऐसा

रुकने का नहीं लेती नाम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज लेखनी रुकने का  सच में ही नहीं ले रही है नाम। खास नहीं,अति खास नहीं,अति अति खास को शत शत प्रणाम।। मोह नहीं,प्रेम नहीं तुझ से तो सच में था इबादत का नाता। जग से बेशक चला जाए पर जिक्र और जेहन से तुझ सा कभी नहीं जाता।। एक बरस कैसे बीता तुझ बिन, समझ को भी समझ नहीं आता।। तूं धार ही नहीं नदिया की, तूं तो थी री सागर, तुझ से नाते को जीवन में कोई बार बार नहीं पाता।। तूं तो फेविकोल का गहरा जोड़ थी री, तेरा टूट कर यूं अचानक चले जाना आज तलक भी समझ नहीं आता।। मैं भाव लिखती हूं,लोग शब्द पढ़ते हैं जो कहना चाहती हूं,वो आप सब तक पहुंच नहीं पाता।। हर भाव की शब्दावली बनी हो ज़रूरी तो नहीं,हर शब्द हर भाव की मांग नहीं सजा पाता।। शब्द नहीं भाव थी तूं, प्रेम सुता! सच में प्रेम भरा था तुझ से नाता।।        स्नेह प्रेमचंद

उखड़ता है जब कोई वृक्ष

कला का सृजन