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खुशी नहीं मिलती बाहर से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का एहसास।  कोई तो कुटिया में भी खुश है  किसी को महल भी नहीं आते रास।।   *शुक्रिया* या *शिकायत* दोनों में से हम जिसका भी करते हैं इंतखाब।  *खुशी* और *गम* का इनसे ही होता है सरल,सीधा सा स्पष्ट हिसाब।। शुक्रिया है *सच्चा मित्र*खुशी का, शिकायत है *गम की साकी* जिसने समझ ली बात ये दोनों,  फिर अधिक समझना नहीं रहता बाकी।।  खुशी *रामबाण*है जीवन का,  खुशी है सबसे खूबसूरत एहसास।  सबसे धनवान वही है जीवन में,  *संजीवनी बूटी*खुशी होती है जिसके पास।। खुशी नहीं मिलती बाहर से,  खुशी है भीतर का एहसास।  कोई तो कुटिया में भी खुश है  किसी को महल भी नहीं आते रास।।  खुशी *लेने* में नहीं *देने*में मिलती है,  लेकर तो देखो किसी के दर्द उधारे।  खुशी दे देगी दस्तक जिंदगी की चौखट पर सांझ सकारे।। **कुछ कर दरगुजर, कुछ कर दरकिनार** खुशी जिंदगी की चौखट पर, दस्तक देने को हो जाती है तैयार।। *प्यार दो प्यार लो* हटा दो चित से झूठा अहंकार जाने कब आ जाए शाम जीवन की छोड़ो ये गिले शिकवे ये तकरार।।  खुशी सच में *अनमोल निधि* है खुशी धड़कन दिल की, खुशी एक सुखद आभास। और परिचय क्या