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Showing posts from September, 2020

गीत में सरगम thought by sneh premchand

रूह हो गई रेजा रेजा

रेजा रेजा thought by sneh premchand

रूह हो जाती है रेजा रेजा

फिर कोई दामन हुआ है दागदार thought by sneh premchand

फिर कोई दामन हुआ है दागदार

दिल में गर दूसरों की पीड़ा समझने का दर्द है

दिल में गर दर्द है

हिन्दी भाषा विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

हिंदी भाषा गौरव हमारा

फिर हुआ चीर हरण thought by Sneh premchand

फिर हुए हरण किसी सीता का

असत्य पर सत्य की thought by sneh premchand

अधर्म पर धर्म की,          असत्य पर सत्य की, पाप पर पुण्य की,         अत्याचार पर सदाचार की, विध्वंस पर निर्माण की,          अराजकता पर स्वराज की, अहंकार पर प्रेम की,           संदेह पर विश्वास की, क्रोध पर दया की,           विघटन पर एकता की, शत्रुता पर मित्रता की,           कुकर्म पर सत्कर्म की, पलायन पर कर्तव्य की,           भरम पर विश्वास की, अज्ञान पर ज्ञान की,           रावण पर श्रीराम की, विजय के प्रतीक विजयदशमी का आओ करें स्वागत।

पैमाने आधुनिकता के thought by sneh premchand

आधुनिकता के नही होते पैमाने,शराब,कबाब और शबाब। जो परोसते हैं हम बच्चों को  संस्कार की थाली में, उसी का हमे मिलता है जवाब।।          स्नेह आर्ट by एना

मांसाहारी Thought by sneh premchand

मत काट मुझे ओ इंसा, देख न चला मुझ पर कटार। आए हो गर प्राणी जगत में, फिर करो न हम सब से प्यार।।         स्नेह प्रेमचंद

खोजती रही

खोजती रही

कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार Thought by sneh premchand

कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार

अवसर Thought by sneh prem chand

एकांतवास भी देता है अवसर, करने को विचरण मन के गलियारों में। हम दस्तक ही नहीं देते मन के किवाड़ों पर, भरमाए से रहते हैं माटी के दरो दीवारों में।। उम्र बीत जाती है सारी,खुद की खुद से मुलाकात होने में, बिन लक्ष्य ही चलते रहते हैं मंज़िल की ओर,रहते हैं लगे अनमोल समय को खोने में।।        स्नेह प्रेमचंद

एक ही वृक्ष के हैं हम thought by sneh premchand

एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ,अंकुर और हरी भरी शाखाएँ,विवधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें, हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई, हैं सब आपस में भाई  भाई,एक खून है,एक ही तन है,इंसा ने ही है ये जात पात बनाई,वसुधैव कुटुम्बकम की भावना काश की हमने होती अपनाई, फिर ना बनाता जश्न कोई किसी की मौत का,न हमने सरहद समझी होती परायी,जीयो और जीने दो के सिद्धांत की,क्यों नही हमने घर घर अलख जलाई,आतंकवाद का हो जाये  खात्मा,ईद दिवाली हो सब ने संग मनाई,सुसंस्कारों की घुट्टी पीले अब हर इंसा, बदल दे अपनी सोच की राहें, धरा बन जायेगी स्वर्ग फिर बंध,ूअपने लाल को खो कर किसी माँ की नही निकलेंगी आहें,एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएँ।।          स्नेह प्रेमचंद

सोच बदलेगी तो बदलेगा ज़माना thought by sneh premchand

सोच बदलेगी तो बदलेगा ज़माना। आओ मिल कर गाते हैं ये तराना।।          स्नेह प्रेमचंद

हर द्रौपदी को नहीं मिलते कान्हा Thought by sneh premchand

हर द्रौपदी को नहीं मिलते कान्हा, दुशासन हर मोड़ पर मिल जाते हैं। होता है भरी सभा में चीर हरण, मौन से हम रह जाते हैं।। द्वापर से कलयुग तक कुछ भी तो नहीं बदला, फिर सबका साथ सबका विकास कैसे कह पाते हैं??? कोख में भी सुरक्षित नहीं वो, न ही बाहर समाज के रखवाले  उसकी हिफाज़त कर  पाते हैं। धिक्कार है गण और तंत्र दोनों पर, गर हम वतन की बिटिया को  नहीं बचाते हैं।। किसी भी जाति,मजहब से ऊपर है, इंसानियत का नाता। तभी सार्थक हैं शिक्षा के मायने, गर इस सोच को तहे दिल से,  निभाना हो सब को आता।। जब तलक शिक्षा के भाल पर, संस्कार का टीका नहीं लगेगा। तब तक सौहार्द और निर्भयता, का कुसुम नहीं खिलेगा।। प्रेम का माहौल नहीं, कामुकता के अंकुर जगह जगह  खत पतवार से उग आते है ।। हर द्रौपदी को नहीं मिलते कान्हा दुशाशन हर मोड़ पर मिल जाते हैं।।          दिल की कलम से            स्नेह प्रेमचंद आर्ट by Anna

यूं ही तो नहीं होता लेखन Thought by sneh premchand

यूं ही तो नहीं होता लेखन दिलोदिमाग को मशक्कत करनी पड़ती है भारी।। रूह विचरती है अंतर्मन के गलियारों में, अनहद नाद बजने की आ जाती है बारी।। निर्मल मन की स्याही से सृजन का बिगुल लगता है बजने। एहसासों की दुल्हन सज कर जजबातो  से,  चल पड़ती है इज़हार  के दूल्हे से मिलने।।       स्नेह प्रेमचंद        स्नेह प्रेमचंद

आओ सोच बदलें

दीप प्रज्वलन है भारतीय संस्कृति और संस्कार।।

ज़िन्दगी की किताब

ज़िन्दगी की किताब के,कुछ इतने मधुर होते हैं अल्फाज। झंकृत हो जाते हैं तार मन के,प्रेम का  बजने लगता है साज।। जिस्म रूह हो जाते हैं एकाकार, अहसास खुद ही बोलने लगते हैं  बिन आवाज़।।           स्नेह प्रेमचंद

महफ़िल Thought by sneh premchand

हर महफ़िल हो जाती है सूनी,  जहाँ ज़िक्र कभी उनका न हो। हर राह हो जाती है गुमराह, जहाँ से उनका जाना न हो।। हर परछाई पड़ जाती है छोटी, जब शीतल सा साया न उनका हो।। हर ख्याल हो जाता है बदगुमान जब तरुनम न ज़िन्दगी में उनकी हो।।        स्नेह प्रेमचंद

दृष्टिकोण

दृष्टि सबकी समान हो सकती है,पर दृष्टिकोण नहीं।। तन के भाग सबके समान हो सकते हैं, पर मन के विचार नहीं, यही कारण है हम सब अलग हैं।।       स्नेह प्रेमचंद

अच्छे मूढ़ में होगा

बहुत ही प्यारा नाता

गहराई

जितनी गहरी थी में

कभी कभी

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आया है

आज जन्मदिन है जिनका Thought by Sneh premchand

आज जन्मदिन है इनका,आए इनके जीवन मे सदा बहार, मिले खुशी,सफलता,सुख,समृद्धि और मिले हम सब का प्यार, रोहिल्लास और कुमार्स की नन्ही कली तुम,तुमसे घर का आँगन गुलज़ार, करते थे,करते है,करते रहेंगे तुम्हे प्यार हम सब बेशुमार, कबूल करो आज दुआएँ हमारी,देखो दुआओं से भर रहा संसार, देख तुम्हारी मोहिनी सूरत,लगते है सुंदर दीदार, करता है मन करें प्रकट,ऊपरवाले का आभार, आयी जो तुम आँगन में हमारे,समा हो गया गुलज़ार, महकती रहना,चहकती रहना,प्रेम ही जीवन का आधार, समय तो निश्चित रूप से लेगा अँगड़ाई,कभी पनपे न कोमल चित्त में कोई कुविकार, ओ मेरी लाडो बिटिया रानी,खिले ऐसा पौधा मन मे तुम्हारे,जाने जो करुणा,सहयोग,अहिंसा और परोपकार, लेखनी ने तो कह दी दिल की,बस कर लेना इसको स्वीकार।।        स्नेह प्रेमचंद

प्रेम प्रेम Thought by Sneh premchand

प्रेम प्रेम सब करें,प्रेम न जाने कोय प्रेमवृक्ष की नन्ही डाली का आज जन्मदिन होय।। प्रेम ही राज है चारु चितवन का, प्रेम से सब कुछ स्नेहमय सा होय।। प्रेमभरी हर बात लगती है आली कितनी सुहानी। पावनी सी बयार बह जाती सर्वत्र है,सब का सुमन होय।। इंदु चमक रहा अनन्त गगन में, जैसे बड़ा जोश से कोई परी स्वपन हिंडोले में सोय।। माँ सावित्री की कृपा से, यथार्थ सपनो से आलिंगनबद्ध होय।। आनंद प्रकाश पसार रहा है अपनी लम्बी बाहें दुआओं का ही स्थान है आज,सो जाएं सब आहें।। ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय प्रेम से सब हो जाता है सुंदर,सच्चा प्रेमी कभी न रोए।। स्नेह सुमन खिल जाते हैं प्रेम प्रांगण में, चहुं ओर स्नेह मय सब होय।। प्रेम से सुंदर नहीं कोई सुमन है,प्रेम प्रेम  घट घट में होय।।          स्नेह प्रेमचंद

क्या लिखूं तेरे बारे में thought by sneh premchand

 बारे में क्या लिखूं मैं, माँ तूने तो मुझे ही लिख डाला,कहाँ से लाऊँ वो स्याही और लेखनी,जो  कह पाएं सर्वसत्य,कैसे किन किन जतनो से होगा तूने हम सबको पाला।। तेरे बारे में कुछ लिख सकें, ये सामर्थ्य मेरी लेखनी में नही,बस एक अरदास है परमपिता परमेश्वर से,वो जहां भी है,उन्हें शांति मिले, उनके ऋण से उऋण तो हम कभी हो ही नही सकते,उनके कर्म,प्रयास,ऊंचे सपनो का बखान भी सम्भव नही,आज माँ का श्राद्ध है,उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं हम,माँ हमारे श्रद्धासुमन स्वीकार कर लेना।।

Thought on daughters by sneh premchand सबसे मीठा फ़ल बेटियां

सौभाग्य के दरख़्त पर सबसे मीठा फ़ल हैं बेटियां

Thought on daughters by Sneh premchand कैसी होती हैं बेटियां

जैसे आफताब की किरण जैसे इन्दु की ज्योत्स्ना जैसे साहित्य में कविता जैसे मरुधर में सरिता ऐसी होती हैं बेटियां।।

Thought on daughter by Sneh premchand जिजीविषा मुस्कुरा रही होती है।।

बिटिया को परिभाषित करने के लिए यदि एक ही पंक्ति मिले

Thought on daughter by Sneh premchand ईश्वर की सर्वोत्तम कृति

ईश्वर की अनमोल कृति बिटिया होती है।।

जेहन

जेहन में

जनकल्याण

जनकल्याण

भगत सिंह

जन्मदिन

क्यों नहीं

वक़्त भी वक़्त को वक़्त नहीं देता

नहीं देता

दरक

भुर भुरा गई हैं तेरे घर की दीवारें

नित नित

नित निखारना है

झगड़ा किस बात का

किस बात का

जख्म

जख्म दिया है तो मरहम भी देंगें हम

आस न टूटे साथ न छूटे

आस n टूटे,साथ n छूटे

मात्र जिह्वा के स्वाद की खातिर

मात्र जिह्वा के स्वाद की खातिर क्यों मुझ पर चलाते हो तुम कटार?? आए हो जो इस प्राणी जगत में, करो न हर प्राणी से प्यार।।।         स्नेह प्रेमचन्द

नहीं मिलते कान्हा Thought by Sneh premchand

कई बार

कई बार हम बहुत पास हो कर  भी बहुत दूर होते हैं, और कई बार बहुत दूर होकर भी बहुत पास,सारा खेल सोच का है,हमारी सोच में,हमारी प्राथमिकताओं में कोई कितना ज़रूरी है,इसके चयन का विकल्प खुदा ने हमे दिया है,दुर्योधन गोविन्द का शांति प्रस्ताव मान लेता,मात्र पाँच गाँव पांडवों को दे देता,तो महाभारत का युद्ध न होता,रावण राम द्वारा भेजे गए शांतिदूत अंगद की बात मान लेता,तो इतना बड़ा युद्ध न होता,विकल्पोंं का चयन ही भाग्य निर्धारित करता है,ऐसे में विवेक के सहारे की ज़रूरत होती है,उसे काम में लेना चाहिए।।

दफन Thought by Sneh premchand

झगड़ा क्यों????

माहिर ए जुबान Thought by Sneh premchand

क्षण क्षण Thought by Sneh premchand

क्षण क्षण तन तो होना है ही क्षीण