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चलो मन

चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है माँ की ममता जहाँ महके है। चिड़ियों से आंगन चहके है। सदभाव जहाँ डाले है डेरा न कुछ तेरा,न कुछ मेरा आती समझ जिसको जहाँ ये ऐसे घाट की ओर। जहाँ जात पात का भेद नही है मज़हब की जहाँ हो न लड़ाई ऐसी वसुंधरा क्यों न बनाई हो जाये मनवा विभोर।