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Showing posts with the label अनहद नाद

पुनरावृति

रामायण देखें चाहे सैंकड़ों बार हम, कितनी ही पुनरावृति हो, किसी अनहद नाद का जैसे होता है अहसास यही बात लागू होती है तुझ पर,एक ही बात कहूं चाहे हजारों बार,तूं हर बार लगती है उतनी ही खास कोई कुछ भी कहे होती है पुनरावृति,पर लेखनी को पसंद है सत्य का इंसाफ

बड़े प्रेम से

समझो तब होली आ गई

तबला प्रेम का thought by Sneh premchand

Radhe krishn

कह दिया हमने

कह दिया हमने तूफानों से,करनी है जो तबाही कर लो,हमने तो खामोशियों से कर लिया है याराना।। कह दिया हमने महफिलों की रौनकों से,हो जाओ गुलजार होना है जितना तुमको,हमने तो तन्हाइयों का गुनगुना लिया है फसाना।। कह दिया हमने हर उस धुंधले मंज़र को,मत ठहरो बन आँख का पानी,ऐसी लाओ सुनामी कि हो जाए वीराना।। कह दिया हमने खुशियों से,अब दो या न दो दस्तक ज़िन्दगी के दरवाजे पर,गम का हिया हो गया है दीवाना।। कह दिया हमने धड़कते दिल से,धड़कन से बेशक करो दोस्ती या दुश्मनी,है बड़ा मतलबी खुदगर्ज सा ज़माना।। कह दिया हमने ज़माने की खुदगर्ज़ी से,चाहे बजा लो तुम कितनी ही शहनाई,हमे नही सुनना भलाई का झूठा तराना।। कह दिया हमने उस परवरदिगार से, अपनी दया की कृपा सदा सिर पर रखना,हम तो कठपुतली सा अस्तित्व लिए जग में आए हैं।। कह दिया हमने संगीत की हर सरगम से,कैसा भी कोई भी सुर हो,तुम अब गाओ कोई भी गाना, हमे तो याद नही आता अब कोई भी तराना,, माँ की लोरी ही है अनहद नाद इस जग में, नही कर पा रहे सहन उसका अचानक यूँ चले जाना।। सिसकती है सिसकी,सिहरती है कसक,नयनो को आता है भीग जाना, मन धुआँ धुआँ, हर मंज़र धुंधला,गले मे किसी गोले