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what"Mother"means| poem by sneh premchand

माँ, किन किन यत्नों से तूने हमें पाला पोसा होगा, ये माँ बन कर माँ, मैंने है जाना।। किन किन रिश्तों के ताने बानो को तूने सुलझाया होगा, ये रिश्तों की भूल भुलैया में उलझ पुलझ कर, माँ मैंने है जाना।। किन किन तूफानों में डोलती नैया को माँ तूने साहिल तक पहुंचाया होगा, ये ज़िन्दगी की डगमगाती नाव में होकर सवार माँ।मैंने है जाना।। किन किन तपती जीवनराहों मेंअपने सफर को, तूने थके कदमों से पूरा लगाया होगा, ये उन तपती राहों पर चल कर माँ मैंने है जाना।। किन किन जख्मों पर तूने हँसी का लगा कर झूठा मरहम,बड़ी आसानी से हमसे छुपाया होगा, ये उन जख्मों को खा कर माँ मैंने है जाना।। किन किन लू के थपेडों को सहकर,  तूने ठंडक का इज़हार कराया होगा, ये खा कर लू के गहरे थपेड़े, माँ मैंने है जाना।। किन किन परेशानियों को भुला कर सहज होने के किरदार को माँ तूने कितनी सहजता से निभाया होगा, ये उन परेशानियों से गुजर कर,माँ मैंने है जाना।। किन किन अहसासों को माँ तूने न दी होगी अभिव्यक्ति, ,कितनों को ही तूने हिवड़े में दबाया होगा, उमड़े घुमड़े होंगे उन अनेक अहसासों के बादल, पर अपने लबों को माँ तूने न हिलाया होगा, ये उन अहसासों की