जैसे शक्कर पानी में घुल कर विलीन हो जाती है। जैसे सावन में कोयल मधुरम मधुरम सा गाती है जैसे कान्हा की मुरली चित में बस जाती है जैसे बजरंगी को भगति राम की भाती है जैसे शबरी प्रेम भाव से राम को झूठे बेर खिलाती है जैसे समय संग कली पुष्प बन जाती है जैसे नदिया नहीं रुकती बस बहती जाती है ऐसे ही सहज रूप से तूं जेहन पर दस्तक दे जाती है।।