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भारतीय जीवन बीमा निगम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भा---रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है *सुरक्षा और विश्वाश* र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से,तभी निगम है अति अति खास ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है,इसी सोच से हुआ निगम का सतत विकास य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने,अपने अस्तित्व का इसे बखूबी आभास जी--वन के साथ भी,जीवन के बाद भी,निराशा में भी आशा का किया है वास, व---नचित न रहे कोई भी उत्पादों से इसके, हर पॉकेट में हो एक पॉलिसी,यथासंभव किया हर प्रयास, न---भ सी छू ली हैं ऊंचाईयां, आता है धरा के भी रहना पास बी---च भंवर में जब कोई चला जाता है, छोड़ कर,होती है निगम से फिर सच्ची आस *जीवन के साथ भी,जीवन के बाद भी* रहा निगम का यही प्रयास मा---हौल बनाया निगम ने ऐसा,जैसे कुसुम में होती है सुवास नि---यमो को नही रखा कभी ताक पर,हर वर्ग को जोड़ कर खुद से,सतत किया जिसने प्रयास ग---रिमा अपनी रखी बनाई,सबको जीवन मे राह दिखाई,दिनकर से तेज का इसमे वास म---जबूत हौंसला,बुलंद इरादे,जनकल्याण की भावना का न हुआ कभी ह्रास।। *समाधान हेतु आगमन,संतुष्टि सहित प्रस्थान यही भाव निगम का रहा सबसे खास*              स्नेहप्रेमचंद