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प्रकृति thought by snehpremchand

प्रकृति गाती हैं। कभी हँसती औऱ कभी हंसाती है। कभी कभी उदास भी होती है ये,जब सूरज ढल जाता है। कभी कभी रोती भी है ये जब इंसा निरीह बेकसूर बेजुबान प्राणियों पर कतार चलाता है। भेदभाव नही करती प्रकृति,सबसे अच्छी शिक्षक है। अनुशासन सीखो प्रकृति से,इसकी गोद में कुदरत है।