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एक से भले चार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक,दो,तीन,चार* *बड़ा प्यारा मित्रों का परिवार* *सांझे गम और सांझी खुशियां* *कभी दोस्ती कभी तकरार* *निरस्त नहीं दुरुस्त करने में हैं यकीन इनका* *ऐसे इनके उत्तम विचार* *ना छोड़ते हैं ना तोड़ते हैं दोस्ती* *भरनी आती हैं इन्हें हर दरार* *एक,दो,तीन,चार* *बड़ा प्यारा मित्रों का परिवार* *सुख दुख दोनों में संग खड़े हैं,   आते हैं लेने इन्हें दर्द उधार* * लफ्ज़ नहीं  लहजे पहचान लेते हैं ये* *अच्छे मित्र  नहीं मिला करते बार बार* *हर दिन होली  हर रात संग इनके,  होती है दीवाली* *हर पल बन जाता है  उत्सव संग में* *पूनम बन जाती है  हर मावस काली* *हास परिहास  मगर संग सम्मान के* *यही मित्रता का  होता आधार* *एक,दो,तीन,चार* बड़ा प्यारा मित्रों का परिवार दो मित्र यहां,दो मित्र वहां यूं हीं चलता रहता है संसार जो बहुत खास होते हैं जग में मन चाहता है करना दीदार आवागमन तो दस्तूर ए जहान है समझाया दिल को जाने कितनी ही बार