कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार स्नेह,ख्याल,परवाह,अपनत्व ही, इस पर्व के मूलाधार नाराज़ हैं जो भाई बहन बरसों से, मिल कर मनाएं यह पावन त्यौहार क्यों बने हैं चट्टान से,पिघल जाएं मोम से,दुनिया में नहीं आना बार बार हमारी नाराजगियों की उम्र हमारी उम्र से लंबी ना हो, कुछ करना दरगुज़र कुछ करना दरकिनार हर प्रॉपर्टी के झगड़ों से ऊपर है यह नाता भाई का, बस चित में पनपे ना कोई विकार पहले झुकने वाला ही बड़ा होता है सदा, जाना जिसने जाना जिंदगी का सार नहीं झुकने वाले को पछतावा होता है एक रोज, पर कोई लाभ नहीं होता फिर झूठा लगने लगता है संसार कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार स्नेह,ख्याल,परवाह,अपनत्व ही इस पर्व के मूलाधार हर बहना को हर भाई से प्यार का मिलता रहे उपहार मां के बाद बहन का नाता ही होता है निस्वार्थ प्रेम का, मां सी ममता बहती रहती बहना चित में बेशुमार कुछ लेने नहीं देने आती हैं दुआएं बेटियां कर लेना दिल से उन्हें स्वीकार हंसते हंसते अपना आधा हिस्सा देने वाली बहनों के रहना सदा शुक्रगुजार कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त...