ओ मुसाफिर,ओ बटोही,ओ पथिक,ओ राही रे। बीती तेरी सारी उमरिया,क्या हुई मनचाही रे।। रैन बसेरा चार दिनों का,फिर तो निश्चित ही जाना है। हाँ, दिल नही मानता ये सच्चाई,पर बंधु ऊपर ही तेरा ठिकाना है। ज़िन्दगी एक किराये का घर है,क्यों समझ तुझे नही आई रे। सबने कैसे अपना समय बिताया,यही है सच मे सच्चाई रे।।