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पीहर से जाती हैं बेटियां(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**पीहर से जाती हैं बेटियां** दिलों से कभी नहीं जाती। कोई ऐसी भोर सांझ नहीं होती, जब वे याद नहीं आती।। कौन कहता है बेटियां होती हैं पराई?? मुझे तो बेटी से अपनी कोई भी नजर नहीं आती। जगह से दूर हो कर भी दिल के बहुत पास होती है बेटी, बेटी प्रेम की सरगम बन जाती। *भोर सी उजली,सांझ सी गहरी बेटी* हिना सी, धानी से श्यामल हो जाती। मेरी छोटी सी समझ,  मुझे बात बड़ी है समझाती।। बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं बेटियां, छोड़ बाबुल की गलियां, साजन की चौखट हैं खटखटाती।। बहुत मुश्किल से दहलीज पार कराता है बाबुल,  वे घर से जाकर भी जेहन से कभी नहीं जाती।। पीहर से जाती है बेटियां, दिलों से कभी नहीं जाती।। आज मिली को भले ही  मिल गया हो जीवन साथी, पर नेहर की यादें, कभी नहीं लाडो भुलाई जाती।। जा,बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझ को सुखी संसार मिले कोई कांटा कभी ना चुभे तुझे, प्रेम बगिया में सदा स्नेह सुमन खिले।। जिस बाग की तूं कोंपल है मैं भी उसी बाग की हूं एक डाली। एक ही है मेरा तेरा पीहर, फैले खुशबू सी, तूं बड़ी निराली।।  *महकती रहना, चहकती रहना* बेटी कभी भुलाई नहीं जाती। कोई भोर सांझ नहीं होती ऐसी, जब