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आष्टंगिक मार्ग ((( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा,बुद्ध चित्र आरुषि द्वारा)))

हर दुख का कारण है तृष्णा, हो बेहतर, अब तो सबको समझ   ये आए। ये दुख तभी मिटेंगे,जब आष्टांगिक मार्ग द्वारा तृष्णा को नियंत्रित किया जाए। सम्यक दृष्टि==हर दुख का कारण है तृष्णा,तृष्णा होगी कम तो होंगे दुख खत्म,यही होती है सम्यक दृष्टि,मतलब सीधा सा इसका समझ में आए।। सम्यक संकल्प==बहुत ज़रूरी है, हो, हमारा मानसिक और नैतिक विकास। इसी सोच से करें कार्य हम,अविलंब सतत सदा बेहिसाब।। सम्यक वाक==कभी असत्य न बोलें,और कभी अप्रिय बोलने के लिए न लब खोलें।। बोल कर न सोचें,सोच कर बोलें।। सम्यक कार्य==कभी कर्म न करें कोई ऐसा,जो दूजे को हानि पहुंचाए। ऐसी सोच का हो विस्तार, हमे दर्द उधारे लेने आएं।। सम्यक जीविका==किसी की आह और शोषण न हो हमारी आजीविका का आधार। कभी करें न हम कोई भी हानिकारक कमाई और व्यापार।। सम्यक प्रयास==आत्म मंथन के बाद हो आत्म बोध,उसके बाद हो आत्म सुधार। यही होता है सम्यक प्रयास, चित में पनपे न कोई विकार।। सम्यक स्मृति==स्पष्ट ज्ञान व देखने की मानसिक योग्यता पाने का प्रयास। इस भाव का होगा गर प्रादुर्भाव, होगा विकास नहीं होगा ह्रास।। सम्यक समाधि==तृष्णा हट जाएगी जब चित से,ज्ञान का फैलेगा स

दुख का कारण