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हर द्रौपदी को नहीं मिलते कान्हा Thought by sneh premchand

हर द्रौपदी को नहीं मिलते कान्हा, दुशासन हर मोड़ पर मिल जाते हैं। होता है भरी सभा में चीर हरण, मौन से हम रह जाते हैं।। द्वापर से कलयुग तक कुछ भी तो नहीं बदला, फिर सबका साथ सबका विकास कैसे कह पाते हैं??? कोख में भी सुरक्षित नहीं वो, न ही बाहर समाज के रखवाले  उसकी हिफाज़त कर  पाते हैं। धिक्कार है गण और तंत्र दोनों पर, गर हम वतन की बिटिया को  नहीं बचाते हैं।। किसी भी जाति,मजहब से ऊपर है, इंसानियत का नाता। तभी सार्थक हैं शिक्षा के मायने, गर इस सोच को तहे दिल से,  निभाना हो सब को आता।। जब तलक शिक्षा के भाल पर, संस्कार का टीका नहीं लगेगा। तब तक सौहार्द और निर्भयता, का कुसुम नहीं खिलेगा।। प्रेम का माहौल नहीं, कामुकता के अंकुर जगह जगह  खत पतवार से उग आते है ।। हर द्रौपदी को नहीं मिलते कान्हा दुशाशन हर मोड़ पर मिल जाते हैं।।          दिल की कलम से            स्नेह प्रेमचंद आर्ट by Anna