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शोक नहीं संताप नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शोक नहीं,संताप नहीं

शोक नही,संताप नहीं,  माँ   हम प्रेम से शीश झुकाएंगे। हमने पाया ऐसी माँ को बड़े गर्व से सब को बताएंगे। युग आएंगे  युग जाएंगे, होते हैं जो तुमसे इंसा, उनको लोग भुला नही पाएंगे। कर्म की स्याही से लिख दिया सफलता का इतिहास तूने, आने वाली पीढ़ियों को ये सब लेखनी के अल्फाज बताएंगे।। कथनी में नहीं,करनी में था यकीन तुझे,तुझ सा बुलंद हौंसला और कहां हम पाएंगे????? कभी न रुकी,कभी न थकी, ऐसी मां को हम अपना शीश झुकाएंगे।। मात पिता तो मात पिता ही होते हैं, उनके समकक्ष तो बस ईश्वर को ही पाएंगे।। मात पिता कहीं जाते नहीं हैं, रहते हैं आजीवन जेहन में हमारे, ये बरसते सावन भादों आज सब कह जाएंगे।।        स्नेह प्रेमचंद