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आजादी की पावन बेला पर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*आजादी की पावन बेला पर आओ मिलकर शीश झुकाएं*  *श्रद्धांजलि दें उन शहीदों को  हम जो लौट के घर नहीं आए*  *यूं ही नहीं मिली हमें आजादी  आओ इतिहास के पन्ने खोलें* जज्बा,जोशऔर जुनून हर वीर  की रग रग में था बोले* *आओ करें नमन उन  जांबाजों को, नयनों को आंसुओं से धो लें*  सहेजे अनमोल आजादी,रहें प्रेम से, सांप्रदायिकता का जहर अब और ना घोलें*  *15 अगस्त सन 47 को मिली थी देश को आजादी*  *मेहनत आखिर रंग लाई पर जाने कितनों ने अपनी जान गवा दी* *हुआ बंटवारा, बने मुल्क दो, मजहब के नाम पर बुराई ने हिंसा को हवा दी** *उजड़ा सुहाग जाने कितनी माओं का, ना जाने कितने नैना रोए*  मांओं ने खोए लाल तो बहनों ने अपने भाई खोए*   *एक बड़ा भारी मोल था आजादी का आओ सब को अवगत करवाएं* दें श्रद्धांजलि उन शहीदों को हम,  *जो लौट के घर नहीं आए*  * भारत माता के वीर सपूत थे जांबाज वे सही कहलाए*  *आजादी की पावन बेला पर, आओ मिलकर शीश झुकाए* * इस आजादी का मोल बहुत था दंश बंटवारे का झेल कर, मोल चुकाया*  *जर्रे जर्रे में धधकी क्रांति की ज्वाला ,गांधी ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया*  *किए आंदोलन और अनशन उन्होंने भारत को आजाद करव