Skip to main content

Posts

Showing posts with the label क्या भूलूँ क्या याद करूँ

My great great mother|इतना भी न याद आया कर माँ

इतना भी न याद आया कर माँ, बाकी झूठा ही लगने लगे संसार, एक तेरे न होने से,चमन से जैसे रूठ गई हो   अदभुत सी बहार।। चेतना में स्पंदन था,जिजीविषा का तेज चमकता था,मिलन को हिया रहता था बेकरार, झट तैयार हो जाता था बैग माँ, तेरा होना  ही नवजीवन का कर देता था संचार, इतना भी याद न आया कर माँ, और तो झूठे ही लगने लगे रिश्तों के तार, अब सब उधड़े उधड़े से लगते हैं,तुरपन से भी नहीं पाती हूँ सँवार।। कई मर्तबा पैबन्द लगाए,कर इस्री,प्रेम की, रिश्तों से सलवटें भी हटाई, पर बात बनी न पहले जैसी,हर अक्स में लगी ढूंढ़ने तेरी परछाई।। सब लोग तो पहले जैसे ही हैं,पर जब तूं थी,तो उन्हें देखना,जानना,समझना भी न लगा ज़रूरी, जब से गई है तूं ओ प्यारी माँ, पाटने पर भी नही पटती है दूरी।। चेतना ही नही देती दस्तक अब ज़िन्दगी की चौखट पर,दहलीज़ से ही लौट जाती है। यूँ लगता है जैसे हर शै,माँ तेरा ही नगमा गुनगुनाती है।। इतना भी न याद आया कर माँ, बाकी झूठा लगने लगे संसार। इंद्रधनुष भी थी तूं, रंगोली भी थी, प्रेम ही था जीवन आधार।। ज़िन्दगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली, हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली, पंखों क