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महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को

*महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,  वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*  *बात है जो भी दिल में उसके  वह बात तो खुलकर कहने दो*  *कहीं बन न जाए चित में कोई ग्रंथि  मन की पाती पढ़ने दो*  *ना सिद्ध करो उसे पुरुष से बेहतर  उसे जीवन अपना जीने दो*  *तुलना के भंवर में ना उलझाओ उसको,  उसे सहज भाव से रहने दो  उसे सहज भाव से रहने दो* *महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को, वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो* मत बांध बनाओ उसकी इच्छाओं के आगे, उसे नदिया धारा सा बहने दो अपना रास्ता खुद ही बना लेगी वो, अपने मानचित्र उसे स्वयं ही रचने दो  *स्वयं को सिद्ध न करना पड़े  उसे बार-बार  उसे स्वयं सिद्ध ही होने दो  उसे स्वयं सिद्ध ही होने दो* *महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,  वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*  *नारी तन के भूगोल को जानने की बजाय जानो मनोविज्ञान उसका  धारा प्रेम की बहने दो  धारा प्रेम की बहने दो*  *महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,  वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*  *करने दो उसे विचरण अंतर्मन के गलियारों में  एहसासों को अभिव्यक्ति देने दो एहसासों को अभिव्यक्ति देने दो*  *इतनी तो उसे दो आजादी  वह सोचे,समझ