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* हिंदी भावों का सुंदर परिधान*कविता स्नेह प्रेमचंद द्वारा

** हिंदी भावों का सुंदर परिधान** हिंदी,कविता की गहरी सरिता  हिंदी,मनोभावों का सुंदर परिधान। सरलता की सरसता से सगाई है हिंदी,  सरस,मधुर, बोधगम्य हिंदी भाव प्रधान।। हिंदी भाषी ही जब हिंदी का करते हैं अपमान।  कोई और क्यों देगा फिर महता इसको, कैसे कहेंगे भारत महान???? मां,मातृभूमि और मातृभाषा हैं,तीनों सम्मान की पूरी हकदार। एक खुशहाल राष्ट्र अपनाता है ये सत्य होता है उन्हे पूरा सरोकार।। बहुत सो लिए, अब तो जागें, हो हिंदी से हमे दिल से प्यार।। *मातृभाषा* न रह जाए कहीं  *मात्र भाषा* रखना होगा इस बात का ध्यान। जिस भाषा में आते हैं विचार चित में, उसी में पहनाएं शब्दों को प्रधान।। साहित्य का आदित्य है तूं हिंदी *आर्यवर्त का तूं अभिमान* और परिचय क्या दूं तेरा??? तूं हीं राष्ट्र का गौरवगान।। ओ हिंदी! जो मुख मोड़ रहे हैं तुझसे, उन्हें सन्मति करना प्रदान। तेरा परिष्कृत और प्रांजल रूप आए सबके सामने, सच में भाषा तूं बड़ी महान।। अभिभावक,मित्रगण और गुरुजन जब तक हिंदी को नहीं अपनाएंगे, कैसे अपेक्षा करें हम बच्चों से, उन्हें कैसे हिंदी सिखाएंगे।। गुड मॉर्निंग के स्थान पर हम सुप्रभात कब अपने अधरों पर लाएं