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ए मेरे वतन के लोगों(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ए मेरे वतन के लोगों!! जरा नहीं, भर लो, बहुत सारा सा आंखों में पानी। आज शहादत दिवस है जिनका, नाम है उनका, **कैप्टन विक्रम बत्रा बलिदानी** जेहन मे रखने वाली बात है ये, **नहीं भूली बिसरी कोई कहानी** बीत गए बरस 23, **हुआ लाभ गगन का, धरा की हानि** दिवंगत नायक के स्मरण दिवस पर जरा याद करो कुर्बानी। उठाए ना कोई नजर बुरी वतन की ओर,वतन के रखवाले ने सरहद की रक्षा करने की ठानी।। अनेक गोलियां खाई छाती पर, निर्भय,निर्भीक महान हिंदुस्तानी।। एक शिक्षक पुत्र सिखा गया पूरे जग को,दे दी वतन की खातिर कुर्बानी।। धन्य हुई धरा हिमाचल पालमपुर की, हुई आरंभ जहां इस जीवन की कहानी। जितनी बार भी सुनो इसको, लगती है पावन और सुहानी।। मां भारती के वीर सपूत, **शौर्य के सिरमौर** कहते थे विक्रम बत्रा  **ये दिल मांगे मोर** चोटी 5140 जीतने के बाद चोटी 4875 पर भी विजय पाई बत्रा जी ने,पर इस बार मां भारती की गोद में सदा के लिए सो गया ये अमर बलिदानी। अदम्य साहस का दिया परिचय, वाह री अमर हिंदुस्तानी।।  जग से बेशक चले जाएं, कुछ लोग जेहन से कभी नहीं जाते। किताब में हर्फ से,अम्बर में आफताब से हैं बस जाते।। इस फेरहिस्त