राघव ने सुग्रीव से, माधव ने सुदामा से सच्ची मित्रता निभाई जब जब हुआ जिक्र दोस्ती का, दोनों की दिल से याद आई *कह सकें हम जिनसे बात दिल की,वही मित्र हैं* स्नेह,सम्मान और स्थान जिन्हें देना आए,वही मित्र हैं *खामोशी की जो समझ लें जुबान, वही मित्र हैं* *हमारी जगह जो खुद को रख कर सोच सकें,वही मित्र हैं* *हर धूप छांव में जो संग खड़े हों, वही मित्र हैं* *जो हर राज़ का हो राजदार वही मित्र है* *स्नेह,सम्मान और स्पेस जिन्हें एक दूजे को देना आए,वही मित्र हैं* *मतभेद बेशक हो जाए पर मनभेद ना हो,वही मित्र हैं* *निरस्त न करके जो दुरुस्त कर दें, वही मित्र हैं* *सलाह,सुलह,समर्पण की नींव पर बसा हो जो रिश्ता,वही मित्र हैं* *संवाद और संबोधन हो मधुर जिनका,वही मित्र हैं* *मजाक और कटाक्ष के मध्य की महीन रेखा का जो ध्यान रखें, वही मित्र हैं* *बिन किसी पूर्वाग्रह के जो किसी भी मसले पर निष्पक्ष राय रखें, वही मित्र हैं* *गलत को गलत और सही को जो सही कह सकें वही मित्र हैं* *हमारे गलत और बहकते कदमों को जो रोक सकें, सही राह पर ले जाएं,वही मित्र हैं* *विकारों का शमन और सद्गुणों का जो कर दें विकास,वही मि