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Showing posts from May, 2021

पता ही नहीं चलता(((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)))

जिद्द समझौते में

ज़रूरी तो नहीं

न कोई था

हो जाती है पूरी

हूं भूली सी दास्तान((( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)))

सृजन है तो है संसार(( विचार स्नेह प्रेमचंद चित्र ऐना))

हर रंग कुछ कहता है (((विचार स्नेह प्रेम चंद चित्र आरुषि)))

होना ईश्वर का शुक्रगुजार ((विचार स्नेह प्रेमचंद चित्र ऐना))

हर रंग कुछ कहता है (((विचार स्नेह प्रेम चंद चित्र आरुषि)))

कर्म करना है धर्म हमारा ((विचार स्नेह प्रेमचंद चित्र ऐना))

हे भोले!!

हे भोले! फिर पी ले  गरल तूं; दे दे ना जीवन दान। सागर मंथन सा चल रहा है दे अमृत का भी दान।।

दिल और धड़कन

फितरत

मोहब्बत

शांति सरोवर

दर्जी नहीं मिलता

बुद्ध शरण

एक अक्षर के

धीरे धीरे

मां चाहिए

सजल हैं नयन

हूं भूली सी दास्तान

भूला हुआ ख्याल हूं मैं

भूली हुई दास्तान

करो ना।।

कोई नयन सजल न होय

कस्तूरी

पहले तो तुमने की नहीं बात

सहजता और चिंता ((विचार स्नेह प्रेमचंद,चित्र आरुषि धवन द्वारा))

जब सहजता से चिंता को गले लगाया चिंता के चित से हट गई चिंता,बन गई सहज,उसका तो स्वरूप ही बदल आया।।

मैं नहीं कहती

फैसले

उत्तर

यूं ही तो कुदरत नहीं होती नाराज ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज??? यूं ही तो कुदरत नहीं होती नाराज। यूं ही तो नहीं बजता  महामारी, भुख मरी, बाढ़,सुनामी का साज।। देख इंसान के काम घिनौने, हो जाते हैं सजल नयन। अथाह अनंत सुसमभावनाओं में से हम करते हैं ये कैसा चयन??? ईश्वर हमे सदा देता है विकल्प, हमारा चयन ही हमारा भाग्य निर्धारक होता है। वो चयन बन जाता है कर्म हमारा, मिलता है उसे हर परिणाम वही, वो बीज जैसे यहां पर बोता है।। फिर कहते हैं नाराज है कुदरत, अंतर्मन इंसा का यूं कैसे सोता है,???? निज रुधिर और सपनो से सींच कर होता है जग में औलाद जन्म। बेटा हो चाहे बेटी हो, उसकी अच्छी परवरिश करना है हमारा धर्म।। बेटा ज़रूरी है बेटी है,है ये कैसी रिवायत कैसा रिवाज??? कहां सो जाती है अंतर्मन की आवाज????? अपने सबसे बड़े खैर ख्वाह ही बेगानेपन की जब बजाते हैं शहनाई। कड़कने,फटने,गरजने लगते हैं ये बादल, कोलाहल करने लगती है तन्हाई।। क्यों नहीं फटा धरा का जिया, क्यों नहीं अनंत गगन डोला। त्याग किया जब किसी मासूम का उसके अपनों ने ही, क्यों सारा ज़माना मिल कर नहीं बोला????? कोई देखे न देखे,वो सब देखता है, वो सब जानता है।। फिर क्यों कठपुतली स

खूबसूरत ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अंतर्मन के दरवाजों को (((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)))

कोई नयन सजल न होय रे (((विचार स्नेह प्रेमचंद)))

तेरा मंगल,मेरा मंगल, सब का मंगल होय ये। आधरों पर मुस्कान खिले, कोई   नयन सजल न होय रे।। मिले न बेशक भोग रे छप्पन, दाल रोटी लिए न कोई रोए रे ।। तन पर सबके कपड़े होवें, सिर पर छत भी होए रे।। शिक्षा की अलख जले घर घर में, ऐसा सब कुछ होय रे।। सांझे सुख दुख, सांझा चूल्हा, सांझी धूप छांव होय रे।। स्नेह प्रेमचंद

कोशिश है मेरी

*कोशिश है मेरी*  माँ बाप के विषय में लिख कर एक सामाजिक चेतना लाने की कोशिश है मेरी। जो चले गए उन्हें शत शत नमन, और भावभीनी श्रद्धांजलि है मेरी,पर जो इस जहाँ में हैं,उन्हें सम्मान ,तवज्जो,प्रेम,और मीठे बोल दिलवाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। वो जो नही जानते कि वे क्या नही जानते,उन्हें कुछ जन वाने की कोशिश है मेरी। सब जानते हैं,सब मानते हैं,बस हनुमान की तरह याद दिलाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। सबसे अमीर है वो ,जो माँ बाप के संग में रहता है,उस अमीर को उसके ख़ज़ाने को पहचान करवाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। माँ बाप के संग बिताये गए पल अनमोल होते हैं,उन अनमोल पलों को हर कोई सहेजे,बस ये छोटी सी कोशिश है मेरी। हर कोई श्रवण कुमार नही बन सकता, पर इस सोच का अंकुर पल्लवित करने की छोटी सी कोशिश है मेरी। बाद में मन मे न रह जाये मलाल कोई, सहज बनाने की छोटी सी कोशिश है मेरी। हम से ही सीखती है हमारी अगली पीढ़ी,इस सुसंस्कार की अलख जगाने की  छोटी सी कोशिश है मेरी। संसार मे ही न रहे कोई वृद्धाश्रम,हर आशियाने के मंदिर में माँ बाप के अस्तित्व को स्वीकार कराने की छोटी सी कोशिश है मेरी। मैं कोई ज्ञानी नही,प्रवक्ता

बच्चों की सोच

Zra sochiye....  Ma baap bachhe ko her pal apne samne dekhna chahte h.bachpan me jab chota bachha kuch pal bhi ma ki nezron se ojhal ho jata h,ya bda hone per sham ko thoda der se lot ta h ,to ma ka dil dubne lagta h,kuch achha nhi lagta,phir budaape me vhi ma baap unn bachon ke liye boj kaise ban jate h,kyun vrida aashram bhre rehte h?or bachon ke gher khali.zra sochiye.khin aap bhi unn bachon me se to nhi.......

तालुकात

स्पीड ब्रेकर

गलत को गलत

कितना भी

समय की कोख से

कितने ही