Skip to main content

Posts

Showing posts with the label शाश्वत अनुराग

मां पुष्प का पराग है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माँ सब्ज़ी का नमक है। माँ दही का माखन है। माँ शाश्वत अनुराग है। माँ पुष्प का पराग है। माँ दिल की आवाज़ है। माँ परिन्दे का पँख है। माँ निजता है,माँ कोमलता है। माँ सहजता है। माँ उत्सव,पर्व,उल्लास है। माँ जीवन का सबसे सुंदर साज़ है। माँ सबसे प्यारी कविता है माँ सबसे न्यारी एक ऐसी किताब है,जिसका हर हर्फ़ ममता का है। माँ का व्यक्तित्व बेहिसाब है। माँ है तो सब सुंदर है। माँ है तो हर घर शिवाला और मंदिर है। माँ तीर्थ है,माँ पूजा है,माँ भगति है,माँ धाम है। माँ है तो थकान को मिलता आराम हैं। मां वात्सलय का बहता निर्झर है माँ प्रेरणा है,जिजीविषा है,स्नेह और साधना है। माँ चेतना है,सयंम है,समझौता है,संतोष है। माँ के बारे में जितना लिखो उतना कम है। माँ है तो लगता नही कोई गम है। माँ है तो गीत है,प्रीत है,शिक्षा है,संस्कार है। माँ हमारे बिखरे व्यक्तित्व को देती सुंदर आकार है।। माँ की आवाज़ ही सबसे मीठी लोरी है। माँ सारे रिश्तों को एकता के सूत्र में बांधने वाली डोरी है।। माँ है तो घर का आंगन महकता है। माँ है तो चमन में हर पुष्प चहकता है।। माँ रामायण,गीता,बाइबल और कुरान है। माँ है तो फिर सुंदर सार