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Showing posts from June, 2023

दूरियां

भोर होते ही

पिता है तो चिंता फिर किस बात की??( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

 पिता है तो चिंता  फिर किस बात की??? पिता तो हमारे हर दर्द  को  सहलाता है। *पिता बरगद सा शीतल साया* *मेरी समझ को तो  यही समझ में आता है।।  *बेहतर से बेहतरीन करने की  चाह में जो सारा जीवन बिताता है* पिता ही होती है वो शख्शियत, जो सदा मुस्कान बच्चों के  लबों पर लाता है। पिता है तो चिंता फिर किस बात की?? पिता तो हमारे हर जख्म पर  मरहम बन जाता है। पिता सा कोई हमारा *खैरख्वाह* नहीं, मेरी समझ को तो यही समझ में आता है।। *बच्चों को अपने से आगे बढ़ते हुए देख कर जो मुस्कुराता है* हर 🌞 सन शैडो में जो सदा बच्चों का साथ निभाता है।। ऐसा जग में होता सिर्फ और सिर्फ पिता का नाता है।। परिकल्पना से प्रतिबद्धता,प्रतिबद्धता से प्रयास तक का सफर पिता ही पूरा करवाता है।। पिता है तो चिंता फिर किस बात की???? पिता की गोद में तो सारा संसार सिमट जाता है।। *पिता है तो बाजार का हर सामान अपना है* *पिता है तो पूरा होता हर  सपना है* पिता है जब तक शौक होते हैं पूरे, हमारे शौक के लिए पिता अपनी जरूरतें भुलाता है।। संकल्प से सिद्धि तक के सफर में पिता अपना पूरा दायित्व  निभाता है। ख्वाब बन जाएं हमारे हकीकत, इसी

मरहम

जिस दिन

अति शुभ और मांगलिक

खुशी

राधे राधे

कृष्ण हैं पुष्प तो राधा सुगंध है।कृष्ण हैं दिल तो राधा है धड़कन।कृष्ण हैं पवन तो राधा गति है।अभिव्यक्ति है कान्हा तो राधा है अहसास।प्रेम है कान्हा तो राधा अनुराग है।कृष्ण है पपीहा तो राधा है कोयल।कृष्ण है अधर तो राधा है बांसुरी,नयन हैं कान्हा तो चितवन है राधा,स्वाद है गोविंद तो भोजन है राधा।गगन है राधा तो सूरज है कान्हा,सुर है मोहन तो सरगम है राधा,सागर है मोहन तो लहर है राधा,नदिया है कान्हा तो बहाव है राधा,मस्तक है कान्हा तो बिंदिया है राधा,मांग है कान्हा तो सिंदूर है राधा,राधा कृष्ण है,कृष्ण ही राधा है।दो नही एक ही है,यही कारण है आज भी राधा का नाम कान्हा से पहले लिया जाता है।राधे कृष्ण,राधे कृष्ण।

कृष्ण हैं पुष्प तो राधा सुगंध है

कृष्ण हैं पुष्प तो राधा सुगंध है। कृष्ण हैं दिल तो राधा है धड़कन। कृष्ण हैं पवन तो राधा गति है। अभिव्यक्ति है कान्हा तो राधा है अहसास। प्रेम है कान्हा तो राधा अनुराग है। कृष्ण है पपीहा तो राधा है कोयल। कृष्ण है अधर तो राधा है बांसुरी, नयन हैं कान्हा तो चितवन है राधा, स्वाद है गोविंद तो भोजन है राधा। गगन है राधा तो सूरज है कान्हा, सुर है मोहन तो सरगम है राधा, नयन हैं कान्हा तो नूर है राधा पवन हैं कान्हा तो गति है राधा दिल हैं कान्हा तो धड़कन है राधा माझी हैं कान्हा तो पतवार है राधा सागर है मोहन तो लहर है राधा, नदिया है कान्हा तो बहाव है राधा, मस्तक है कान्हा तो बिंदिया है राधा, मांग है कान्हा तो सिंदूर है राधा, राधा कृष्ण है,कृष्ण ही राधा है। आइना हैं कान्हा तो अक्स है राधा दो नही एक ही है, यही कारण है आज भी राधा का नाम कान्हा से पहले लिया जाता है।। **राधे कृष्ण,राधे कृष्ण**

अति शुभ और मांगलिक

भारतीय जीवन बीमा निगम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भा---रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है *सुरक्षा और विश्वाश* र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से,तभी निगम है अति अति खास ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है,इसी सोच से हुआ निगम का सतत विकास य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने,अपने अस्तित्व का इसे बखूबी आभास जी--वन के साथ भी,जीवन के बाद भी,निराशा में भी आशा का किया है वास, व---नचित न रहे कोई भी उत्पादों से इसके, हर पॉकेट में हो एक पॉलिसी,यथासंभव किया हर प्रयास, न---भ सी छू ली हैं ऊंचाईयां, आता है धरा के भी रहना पास बी---च भंवर में जब कोई चला जाता है, छोड़ कर,होती है निगम से फिर सच्ची आस *जीवन के साथ भी,जीवन के बाद भी* रहा निगम का यही प्रयास मा---हौल बनाया निगम ने ऐसा,जैसे कुसुम में होती है सुवास नि---यमो को नही रखा कभी ताक पर,हर वर्ग को जोड़ कर खुद से,सतत किया जिसने प्रयास ग---रिमा अपनी रखी बनाई,सबको जीवन मे राह दिखाई,दिनकर से तेज का इसमे वास म---जबूत हौंसला,बुलंद इरादे,जनकल्याण की भावना का न हुआ कभी ह्रास।। *समाधान हेतु आगमन,संतुष्टि सहित प्रस्थान यही भाव निगम का रहा सबसे खास*              स्नेहप्रेमचंद

मैं भी देखूं रंग दुनिया के

तूं इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है

तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी मे शामिल है, जैसे शक्कर में मिठास हो, जैसे राही को मन्ज़िल की तलाश हो, जैसे प्रकृति में हरियाली हो, जैसे तरूवर पर कोयल काली हो, जैसे दिल मे धड़कन होती हो, जैसे नयनों में ज्योति हो, जैसे माला में मोती हों, जैसे कुसुम में मीठी महक हो, जैसे चिड़िया की प्यारी चहक हो, जैसे माथे पर हो बिंदिया जैसे थकान के बाद हो निंदिया, जैसे कूलर में हो पानी, जैसे राजा के लिए रानी, जैसे माँ के लिए नानी, जैसे शवास के लिए है समीर, जैसे सागर में होता है नीर, जैसे रघुवर थे धीर गंभीर, जैसे पतंग के लिए होती है डोर, जैसे रजनी के बाद होती है भोर, जैसे दिनकर में होता है ताप, जैसे इंदु में शीतलता का राग, जैसे संगीत में हों सुर सात जैसे ज़िन्दगी के लिए है वात, जैसे माँ में ममता होती है, जैसे पिता में क्षमता होती है, जैसे गंगा की हो निर्मल धारा, जैसे शब्दों ने भाव को हो पुकारा।। जैसे गीता में माधव का गीता ज्ञान जैसे मानस में राघव का गौरव गान जैसे शिव का करना जग कल्याण जैसे समय का चलते रहना है काम

तुम भी आओ हम भी आएं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*जहां चेतना कर्मों से करती है श्रृंगार* *जहां जिजीविषा से आलिंगनबद्ध होते हैं सुविचार* *जहां संकल्प करता है वरण सिद्धि का बार बार* *जहां प्रतिबद्धता और प्रयास रहते हैं एक ही छत तले सपरिवार* *जहां खुशी बन जाती है उत्सव एक नहीं हर बार* *जहां मन में किसी के नहीं पनपते कभी विकार* *जहां जिम्मेदारी संग मुस्कुराते हैं अधिकार* *एक ही तो है वह स्थान हमारा प्यार हिसार परिवार*

हमारा प्यार हिसार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सार्थक सा करने आ जाते हैं हर इतवार* *पूरे सप्ताह मन में रहता है एक इंतजार* *कर्म ही असली परिचय पत्र हैं व्यक्ति का,  वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार* मात्र दीवारें ही नहीं आते रंगने ये रंगरेज हमारे, रंग देते हैं दिल सच में बेशुमार *मानो चाहे या ना मानो यहां चेतना करती है कर्मों का श्रृंगार* कर्म बन जाता है यहां मित्र आनंद का,कोई तनाव का नहीं होता शिकार स्वेच्छा से आते हैं यहां ये रंगरेज बाध्यता का नहीं यहां कोई प्रकार *मन प्रफुल्लित,तन आनंदित यही इनके परिचय का आधार* *नित नित इनकी कला का हो रहा यहां परिष्कार* *मातृभूमि से उन्हें प्रेम है सपने करने आते हैं साकार* *जोश जज्बा और जुनून* हर चित में है बरकरार *संकल्प से सिद्धि तक नहीं रुकते ये एक भी बार* *अलग परिवेश,अलग परवरिश* पर यहां एकता का संसार *मूल में उनके जनकल्याण है* शहर की भलाई सोच का आधार *न रुकते हैं कभी, न थकते हैं कभी* जैसे सब जानते हों *गीता का सार* *एक एक करके बना काफिला संगठन में शक्ति होती है अपार* अंतर्निहित शक्तियों को बाहर लाने का

Poem on father

Poem on Mother(( thought by Sneh Prem Chand)

*तन्हाई जब करती है कोलाहल, तब माँ याद आ जाती है* *आती हैं जब गर्मी की छुटियाँ, तब माँ याद आ जाती है* *ढलती है जब साँझ सुनहरी, तब माँ याद आ जाती है* *कौन सी ऐसी शाम है, जब माँ याद नही आती है? नही मिलता जब प्यार माँ सा कहीं, तब माँ याद आ जाती है दुखा देता है जब कोई दिल, तब माँ याद आ जाती है। *मां कहीं नहीं जाती* जग से जाने के बाद भी जीवित रहती है सदा,बन के सुंदर सार्थक विचार *हौले हौले अपना लेते हैं हम उसकी कार्यशैली और व्यवहार* *खोलती हूँ जब पट अलमारी के, तब माँ याद आ जाती है* माँ बाप ही एक ऐसा रिश्ता है जो किसी शर्त पर प्यार नही करता, हम उन्हें दुःख भी देते है,  तो भी प्रेम करते हैं।। *हमारे गुण और दोषों दोनों संग हमें जो अपनाते हैं* *कोई और नहीं मेरे प्यारे बंधु मात पिता कहलाते हैं**

कोई अपना

सत्यमेव सदा जयते

बरकरार

कटुता और मिठास

गलती और गुनाह

बार बार कहती है शिक्षा

प्रकृति गाती है मुस्कुराती है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*प्रकृति गाती हैं,चेतना में सपंदन कर जाती है" कभी हँसती औऱ कभी हंसाती है। जैसे होते हैं मनोभाव हमारे, वैसी ही नजर हमे आती है।। मन आहत है तो *सावन भादों* रोते रोते से नजर हमे आते हैं मन खुश है ये उमड़ते घुमड़ ते मल्हार मानों अनहद नाद सुनाते हैं।। कभी कभी उदास भी होती है ये, जब सूरज ढल जाता है। कभी कभी रोती भी है ये जब इंसा निरीह बेकसूर बेजुबान प्राणियों पर कटार चलाता है। फिर कहीं सुनामी,कहीं भू सखलन और कहीं कोई ज्वालामुखी फट जाता है।। भेदभाव नही करती प्रकृति, सबसे अच्छी शिक्षक है। अनुशासन सीखो प्रकृति से, इसकी गोद में कुदरत है।

एक पल का भी नहीं तेरा भरोसा

मां शाश्वत अनुराग है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*माँ सब्ज़ी का नमक है* *माँ दही का माखन है* *माँ शाश्वत अनुराग है* माँ पुष्प का पराग है। माँ दिल की आवाज़ है। माँ परिन्दे का पँख है। मां परीक्षा में अंक है। माँ निजता है,माँ कोमलता है। माँ सहजता है। माँ उत्सव,पर्व,उल्लास है। माँ जीवन का सबसे सुंदर साज़ है। माँ सबसे प्यारी कविता है माँ सबसे न्यारी एक ऐसी किताब है,जिसका हर हर्फ़ ममता का है। माँ का व्यक्तित्व बेहिसाब है। माँ है तो सब सुंदर है। माँ है तो हर घर शिवाला और मंदिर है। माँ तीर्थ है,माँ पूजा है,माँ भगति है,माँ धाम है। माँ है तो थकान को मिलता आराम हैं। माँ प्रेरणा है,जिजीविषा है,स्नेह और साधना है। माँ चेतना है,सयंम है,समझौता है,संतोष है। माँ के बारे में जितना लिखो उतना कम है। माँ है तो लगता नही कोई गम है। माँ है तो गीत है,प्रीत है,शिक्षा है,संस्कार है। माँ हमारे बिखरे व्यक्तित्व को देती सुंदर आकार हैं माँ की आवाज़ ही सबसे मीठी लोरी है। माँ सारे रिश्तों को एकता के सूत्र में बांधने वाली डोरी है। माँ है तो घर का आंगन महकता है। माँ है तो चमन में हर पुष्प चहकता है। *मां ही परिधि मां ही व्यास* सच में मां होती है बड़ी खास माँ रामा

आसान है खामियां निकालना

जीवन पथ हो जाएगा सहज पथ

सार्थक रविवार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हर रविवार (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हमारा प्यार हिसार

कितना प्यारा

अच्छा लगता है हर बार

कहां जा रहा है तूं ओ जाने वाले

Poem on father in hindi(( thought by Sneh premchand(

कैसा होता है पापा का न होना जैसे फूल में खुशबू का न होना जैसे सब्ज़ी में नमक का न होना जैसे पवन में गति का न होना जैसे रामायण में चौपाई का न होना जैसे गीता में कान्हा के उपदेश न होना जैसे चर्च में मोमबती न होना जैसे दीये में बाती का न होना जैसे साबुन में झाग का हो खोना जैसें माँ में ममता न होना जैसे बादल में बून्द का न होना जैसे कोयल में कूक का हो खोना जैसे पलँग पर तकिया न होना जैसे पकवान में मिठाई का न होना जैसे कान्हा के पास बांसुरी न होना जैसे लता का नगमा न गाना जैसे सुर में सरगम न होना जैसे मटके में पानी न होना जैसे दिल मे धड़कन का खोना ऐसा होता है पापा का न होना

Poem on Father's day

*फादर्स डे है पर फादर नही हैं* पापा का होना  होता है  कुदरत का बहुत बड़ा उपहार। सब्ज़ी में नमक होना खास बात नही,पर नमक न होना बहुत खास है,ऐसा ही होता है पापा का किरदार। सच मे पापा आप बहुत खास थे। जीवन मे सुरक्षा और अनकहे प्रेम का समुचित विकास थे। कोई भी आप की कमी कभी भी नही कर सकता पूरी। दिल चाहता ही नही कभी,पर एक दिन सहनी पड़ती है ये दूरी।।

ऐसा होता है पिता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मेरी इस रचना की खासियत यही है कि एल आई सी policies के नामों का सहारा ले कर जो कि स्टार कॉलम में हैं, पिता की खूबियों और हर पिता के चित चिंतन का वर्णन किया गया है।।  *आजीवन*बंदोबस्ती* और *धन वापसी*तीन प्रकार की एल आई सी पॉलिसी होती हैं,इसके बाद उनका वर्गीकरण होता है।।मेरी छोटी सी कोशिश शायद आपको पसंद आए।। *आजीवन* हमारी जिम्मेदारी लेने वाला होता है पिता "बंदोबस्त* करता है हमारे सुखद भविष्य का पिता *धन वापसी* मिलती रहे ताउम्र, ऐसा कुछ सोचता रहता है पिता *धनरक्षा* होती रहे सदा, इसी उधेड़बुन में लगा रहता है पिता हमारे *कोमल जीवन* को खानी पड़ी ना कभी कोई कठोर ठोकर,सोचता रहता है पिता *बाल विद्या*से वंचित न हों हम कभी शिक्षा संग संस्कार देता रहता है पिता *जीवन किरण*उम्मीद की से रहे रोशन सदा,दुआ करता है पिता *जीवन उमंग* रहे सदा बरकरार इसी कोशिश में लगा रहता है पिता कोई अवसाद विषाद ना आए चित में कभी,*जीवन तरंग* से हो सदा गुलजार,चाहता है पिता *जीवन शिरोमणी* हो हमारा, दुआ करता रहता है पिता *जीवन मंगल* मय रहे सदा बच्चों का यही पिता की मंशा होती है *भाग्य लक्ष्मी*का करे सदा वरण किसी बात से

Poem on Father's day(( thought by Sneh premchand)

*उपलब्ध सीमित संसाधनों में जो सामर्थ से अधिक कर जाते हैं* *कोई और नहीं मेरे प्यारे बंधु वे मात पिता कहलाते हैं* आपने हमारे लिए किया ही क्या है? *कभी न कहना अपने मात पिता से हम में से बहुत से ये गलती दोहराते हैं* क्या क्या कैसे किन हालातों में कैसे करते हैं,हम मात पिता बन कर ही समझ ये पाते हैं।। *सुधार और निखार की हर संभावित संभावना को टटोलना जिन्हें बखूबी आता है* कोई और नहीं मेरे प्यारे बंधु वो सिर्फ और सिर्फ मात पिता का नाता है।। *हर मसले मिसाइल  के धागों को जो   संयम से सुलझाते हैं चक्रव्यूह से इस जीवन में जो बाहर निकलना भी सिखाते हैं* *रिश्तों के ताने बाने की जो  सतत गांठें खोले जाते हैं बिन कहे ही उन्हें दिल के सारे भाव समझ में आते हैं* *अधिक शब्दों से नहीं मेरी दोस्ती वरना बता पाती वे हमारा परिचय हमसे करवाते हैं।। एक मात पिता ही होते हैं इस जग में   जो हमे हमारे गुण दोषों संग अपनाते हैं।। जीवन पथ को सहज पथ बनाने के लिए,अपना जीवन वे अग्नि पथ बनाते हैं।। हमे ना हो जाए कोई परेशानी, वे गम छिपा ऊपर से मुस्काते हैं।। मुझे तो इस धरा पर वे, ईश्वर के समकक्ष नजर आते हैं।।

Happy father's day(( thought by Sneh premchand))

बेहतरीन से बेहतरीन करने की चाह में जो सारा जीवन बिताता है, पिता ही होती है वो शख्शियत, जो सदा मुस्कान बच्चों के लबों पर लाता है। पिता है तो चिंता फिर किस बात की?? मेरी समझ को तो यही समझ में आता है।। बच्चों को अपने से आगे बढ़ते हुए देख कर जो मुस्कुराता है।। हर 🌞 सन शैडो में जो साथ निभाता है।। ऐसा जग में होता सिर्फ और सिर्फ पिता का नाता है।। *सुधार और निखार की हर संभावित संभावना को टटोलना जिसे बखूबी आता है* कोई नहीं मेरे प्यारे बंधु वो सिर्फ पिता का नाता है।। *पिता है तो बाजार का हर खिलौना अपना है* *पिता है तो पूरा होता है सपना है*  *पिता है तो जागते और मुस्कुराते रहते हैं अधिकार* *पिता है तो महफूज सा लगता है ये पूरा संसार* *बेशक पिता को करना नहीं आता  इजहार पर जग के इस मेले में, पिता से अधिक कोई कर ही नहीं सकता है प्यार* *आजीवन बच्चों की थाली में सजी रहे रोटी, यही हर पिता की सोच का दृढ़ आधार* ऊपर से कठोर भीतर से नर्म है पिता *पिता ही शिक्षा पिता ही संस्कार* संयम,मेहनत,चिंतन,अधिकार है पिता घर की रीढ है पिता,सच में साची प्रीत है पिता आस है पिता,विश्वाश है पिता

ऐसा होता है पापा का ना होना

कैसा होता है पापा का न होना जैसे फूल में खुशबू का न होना जैसे सब्ज़ी में नमक का न होना जैसे पवन में गति का न होना जैसे रामायण में चौपाई का न होना जैसे गीता में कान्हा के उपदेश न होना जैसे चर्च में मोमबती न होना जैसे दीये में बाती का न होना जैसे साबुन में झाग का हो खोना जैसें माँ में ममता न होना जैसे बादल में बून्द का न होना जैसे कोयल में कूक का हो खोना जैसे पलँग पर तकिया न होना जैसे पकवान में मिठाई का न होना जैसे कान्हा के पास बांसुरी न होना जैसे लता का नगमा न गाना जैसे सुर में सरगम न होना जैसे मटके में पानी न होना जैसे दिल मे धड़कन का खोना ऐसा होता है पापा का न होना

कैसा होता है पापा का ना होना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)?

कैसा होता है पापा का न होना जैसे फूल में खुशबू का न होना जैसे सब्ज़ी में नमक का न होना जैसे पवन में गति का न होना जैसे रामायण में चौपाई का न होना जैसे गीता में कान्हा के उपदेश न होना जैसे चर्च में मोमबती न होना जैसे दीये में बाती का न होना जैसे साबुन में झाग का हो खोना जैसें माँ में ममता न होना जैसे बादल में बून्द का न होना जैसे कोयल में कूक का हो खोना जैसे पलँग पर तकिया न होना जैसे पकवान में मिठाई का न होना जैसे कान्हा के पास बांसुरी न होना जैसे लता का नगमा न गाना जैसे सुर में सरगम न होना जैसे मटके में पानी न होना जैसे दिल मे धड़कन का खोना ऐसा होता है पापा का न होना

Poem on Father's day(( thought by Sneh premchand)

बेहतरीन से बेहतरीन करने की चाह में जो सारा जीवन बिताता है, पिता ही होती है वो शख्शियत, जो सदा मुस्कान बच्चों के लबों पर लाता है। पिता है तो चिंता फिर किस बात की?? मेरी समझ को तो यही समझ में आता है।। बच्चों को अपने से आगे बढ़ते हुए देख कर जो मुस्कुराता है।। हर 🌞 सन शैडो में जो साथ निभाता है।। ऐसा जग में होता सिर्फ और सिर्फ पिता का नाता है।। *पिता है तो बाजार का हर खिलौना अपना है* *पिता है तो पूरा होता है सपना है*  *पिता है तो जागते और मुस्कुराते रहते हैं अधिकार* *पिता है तो महफूज सा लगता है ये पूरा संसार* *बेशक पिता को करना नहीं आता  इजहार पर जग के इस मेले में, पिता से अधिक कोई कर ही नहीं सकता है प्यार* *आजीवन बच्चों की थाली में सजी रहे रोटी, यही हर पिता की सोच का दृढ़ आधार* ऊपर से कठोर भीतर से नर्म है पिता *पिता ही शिक्षा पिता ही संस्कार* संयम,मेहनत,चिंतन,अधिकार है पिता घर की रीढ है पिता,सच में साची प्रीत है पिता आस है पिता,विश्वाश है पिता सच में सब से खास है पिता बच्चों की हर उपलब्धि के पीछे बेशक पिता के अथक और सतत प्रयास पृ

ऐसा था पापा का ना होना(( दिल के उदगार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*ऐसा था पापा का ना होना*  जैसे तन में श्वास का न होना, जैसे मन मे विश्वास का हो खोना, जैसे दीए में तेल का न होना, जैसे तरूवर का छाँव को हो खोना, जैसे मरुधर में जल का न होना, जैसे जंगल मे राह का हो खोना, जैसे शीत में सूरज का न होना, जैसे तूफां में छत का हो खोना, जैसें मां का बिन ममता के होना, जैसे प्रकृति में हरियाली का खोना, ऐसा था पापा का न होना।।।।।।। जैसे रिश्तों में प्रेम का न होना, जैसे दोस्ती में दोस्त का हो खोना, जैसे पायल में घुँघरु का न होना, जैसे गीत में सरगम का खोना, जैसे सुर में ताल का न होना, जैसे धरा का धीरज को खोना, जैसे गगन का तारों विहीन होना, जैसे तारों का अपनी चमक खोना, जैसे पुस्तक में अक्षर का न होना, जैसे वक्ता का श्रोता को खोना, जैसे भाजी में नमक का न होना, जैसे हिना का लाली को खोना, जैसे इंद्रधनुष का सतरंगी न होना, जैसे आईने में प्रतिबिम्ब का खोना, जैसे आग में गर्मी का न होना, जैसे चुम्बक में आकर्षण का खोना, जैसे नयनों में ज्योति न होना, जैसे पहाड़ में सख्ती का खोना, जैसे मन्दिर में मूरत का न होना, जैसे भगति में श्रद्धा,विश्वास का हो खोना, ऐसा था पाप क