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Showing posts from February, 2021

सबसे सुंदर कृति मां

ज़िन्दगी  का अनुभूतियों से परिचय कराने वाली माँ होती है, हर क्या का जवाब माँ होती है, हर क्रियाकलाप का हिसाब माँ होती है, हर उत्सव,हर उल्लास माँ होती है, हमे हम से ज्यादा जानने वाली मां होती है, शक्ल देख हरारत पहचानने वाली भी मां होती है।। शिक्षा होती है माँ,माँ संस्कार होती है, माँ जीवन की सबसे सुंदर किताब होती है, बस हम पढ़ ही नही पाते उस किताब का हर सुन्दर हर्फ़, माँ खुदा की सर्वोत्तम कृति,माँ सच में लाजवाब होती है।।       स्नेह प्रेमचंद
ज़िन्दगी  का अनुभूतियों से परिचय कराने वाली माँ होती है हर क्या का जवाब माँ होती है हर क्रियाकलाप का हिसाब माँ होती है हर उत्सव,हर उल्लास माँ होती है शिक्षा होती है माँ,माँ संस्कार होती है माँ जीवन की सबसे सुंदर किताब होती है बस हम पढ़ ही नही पाते उस किताब का हर सुन्दर हर्फ़ माँ खुदा की सर्वोत्तम कृति,माँ सच में लाजवाब होती है

बेहतर है

क्यों करते हो गुरेज थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद

सच में दौर बदल जाते हैं( थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

यही है नाता

जय जयकार

नूर ए जिंदगी

बीत गए बरस चार (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

समय की कोख से जन्म लेती हैं घटनाएं कुछ मिलते हैं कुछ बिछड़ते है पर एक दिन अलग हो जाती हैं राहें सबका अपना अपना सफर है सब को पूरा कर के जाना है रिश्तों के ताने बाने में जो उलझा है इंसा ये सब जीवन जीने के बहाने है अपने अपने कर्तव्य जन्मभूमि पर हम को निभाने हैं मोह माया के बंधन हैं बहुत ही गहरे धीरे धीरे ये खुद से छुड़ाने हैं बिछड़ रहें हैं सब बारी बारी कुछ जाने हैं कुछ अनजाने हैं वो जो आज गये हैं हमे छोड़ कर हम बचपन से उनके दीवाने हैं मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को यही श्रद्धांजलि ही हमारे तराने हैं माँ जैसी होती है मौसी है सच्चाई,नही झूठे फ़साने हैं पहले एक फिर दो अब हो गए हैं धीरे धीरे पूरे तीन साल जाने वाले तो चले जाते हैं अपनो के हिया में उठता है बवाल। आज दे रहे श्रधांजलि उन्हें मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को मौसी थी हमारी बड़ी कमाल।। ये क्या देखते देखते ही तीन से हो गए चार साल।। समय तो चलता रहता है अपनी गति से, जिंदगी में सदा ही नहीं मिलता कोई पुरसान ए हाल।। जिंदगी चलती रहती है,किरदार बदल जाते हैं,हो बेहतर न हो मन में कोई मलाल।।

आखिर कब तक भीष्म बना रहेगा ये संसार

आखिर कब तक भीष्म बना रहेगा ये संसार

दिनकर और दीपक

खता नहीं करते

अक्सर सोचते हैं उनके बारे में

जब आपके अपने

दिल तब टूट जाता है( थॉट बाय स्नेह प्रेम चंद)

कठपुतली

हम भाव लिखते गए (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

खामोशी भी करती है कोलाहल

बादल सोच के

मन की कहानी

कब बीत जाते हैं लम्हे

गर्व है भारतीय होने पर

ए मेरे वतन के लोगों

आओ जड़ से ही कर दें

जन्मे जो ऐसे लाल

अभिमान

बिन मां के बचपन कैसा

अपने ही जब देते हैं जख्म( थॉट बाय स्नेह प्रेम चंद)

करुणा

जी चाहता है

आओ जड़ से कर दें

धन्य है मां भारती

अभिमान

बिन पाठक के

अपने ही जब देते हैं जख्म

हम कहते चले गए

जो भी खास है

नहीं मिलते

आज भी आई, कल भी आई

किस किस संज्ञा से

बदल जाए

नूर ए ज़िन्दगी

उनके बारे में

मंथन की

खफा

एक के नाम अनेक