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POEM ON EARTH DAY प्रकृति एक कैनवास,ईश्वर कलाकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

* ऐसी हो सबकी शिक्षा ऐसे हों पल्लवित संस्कार* *प्रकृति एक कैनवास  ईश्वर कलाकार* *अंबर, धरा, दिनकर,चंदा तारे  कितना प्यारा सा परिवार* *पेड़ पौधों से आच्छादित धरा ने  अगणित पुष्पों से किया श्रृंगार* *इठलाती नदियां,तपस्वी से पर्वत नयनाभिराम जिनके दीदार* * ऐसी है यह धरती मां*बाहें फैलाए बच्चों पर ममता लुटाने को तैयार * *प्रकृति एक कैनवास  परमेश्वर कलाकार* * पिता तुल्य नीला अम्बर*  संरक्षण,विश्वास,सुरक्षा  का करवाता दीदार* * युगो युगो से हमें पोषित करती  मां धरा ने,  कभी अपनी थकान का ना करवाया आभास* कभी पतझड़,कभी बसंत,कभी शिशिर,कभी ग्रीष्म  हर मौसम का हुआ इसमें निवास  *नदी, नाले ,पेड़,पौधे,पर्वत,वायु सागर धरती मां के स्थाई परिधान*  *प्रदूषित हो गई संपूर्ण प्रकृति,  हुआ मैला आंचल मां धरा का, चेहरे पर अब लगती है थकान* *बहुत सो लिए,अब तो जाग लें आओ धरा का अस्तित्व बचाएं*  *वन्यजीवन,पर्वत, नदियों का जल संरक्षित कर के,  नवजीवन सा फिर ले आएं* *ओजोन आवरण* को बचाने का करे सब भरपूर प्रयास क्या धरोहर देंगे वरना आगामी पीढ़ियों को हम, *जब सही से ले भी नहीं पाएंगे वे श्वास* *प्लास्टिक,वातानुकूलित यंत्र