Skip to main content

Posts

Showing posts with the label सच में कितना न्यारा था

वो बचपन कितना प्यारा था(( विचार स्नेहनप्रेमचंद द्वारा))

वो बचपन कितना प्यारा था जहाँ लड़ते ,झगड़ते,फिर एक हो जाते वो सच में कितना न्यारा था जब कुछ भी उलझन होती थी तब माँ की होती गोदी थी पिता का सर पर साया था न लगता कोई  पराया था औपचारिकता की बड़ी बड़ी सी चिन ली सबने दीवारें हैं पार भी देखना चाहें अगर हम बेगानी सी मीनारें है तब तेरा मेरा न होता था सब का सब कुछ होता था जहान हमारा सारे का सारा था वो बचपन कितना प्यारा था माँ इंतज़ार करती थी वो सब से बड़ा सहारा था बाबुल के अंगना में चिड़िया का बसेरा बड़ा दुलारा था वो बचपन कितना प्यारा था, नही बोलता था जब कोई अपना, चित्त में हलचल हो जाती थी, खामोशी करने लग जाती रही कोलाहल भीड़ में भी तन्हाई तरनुम बजाती थी, किसी न किसी छोटे से बहाने से मिलन की आवाज़ आ जाती थी, अहम बड़े छोटे होते थे, सहजता लंबी पींग बढ़ाती थी, सबने मिलजुल कर बचपन अपना निखारा था,वो बचपन कितना प्यारा था।। अपनत्व के तरकश से सब प्रेम के तीर चलाते थे, रूठ जाता था गर कोई झट से उसे मनाते थे, नही मानता गर कोई, उसे प्रलोभन से ललचाते थे, लेकिन जीवन की मुख्य धारा में कैसे न कैसे उसे ले आते थे, दुर्भाव के तमस को बड़ी सहजता से है लेता था प्रेम भ

वो बचपन कितना प्यारा था(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वो बचपन कितना प्यारा था!!!!! जहाँ लड़ते ,झगड़ते, फिर एक हो जाते वो सच में कितना न्यारा था।। ना गिले शिकवे,ना कोई शिकायत,  ना कोई रंजिश होती थी।  तान सहजता जहां लंबी सी चादर, बड़े चैन से सोती थी।। मस्ती की बजती थी शहनाई, कोई आंख कभी नहीं रोती थी।। प्यारा सा बागबान,प्यारा सा चमन, हर कली प्रेम महक से पुष्पित होती थी।। उस चमन में बागबान ने, बड़ी मशक्कत से सब कुछ संवारा था।। वो बचपन कितना प्यारा था।। जब कभी कोई उलझन होती थी, तब माँ की होती गोदी थी। पिता का सर पर साया था, न लगता कोई  पराया था। औपचारिकता की बड़ी बड़ी सी  अब तो,चिन ली सबने दीवारें हैं। पार भी देखना चाहें अगर हम,   बेगानी बेगानी सी मीनारें है।। तब *तेरा मेरा*न होता था, सब का सब कुछ होता था। जहान, हमारा सारे का सारा था, वो बचपन कितना प्यारा था।। माँ इंतज़ार करती रहती थी, वो सब से बड़ा सहारा था। बाबुल के अंगना में, चिरैया का बसेरा, बड़ा दुलारा था। वो बचपन कितना प्यारा था। नही बोलता था जब कोई अपना, चित्त में हलचल हो जाती थी। खामोशी करने लग जाती रही कोलाहल, भीड़ में भी, तन्हाई तरनुम बजाती थी।। किसी न किसी छोटे से बहाने से, मिलन