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साज

तूं हीं तूं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

लम्हा लम्हा

कातिब

खिताब

प्रेम की स्याही

अल्फाज

मित्र है इत्र

कहर कोरोना का

जाने कितने ही नकाब ( Thought by Sneh premchand)

किताब ज़िन्दगी की

हर्फ दर हर्फ

हर्फ दर हर्फ thought by sneh premchand

हर्फ दर हर्फ

हर्फ दर हर्फ thought by sneh premchand

हर्फ दर हर्फ

किताब

समझते रहे

हर्फ दर हर्फ thought by sneh premchand

हर्फ दर हर्फ 

Poem on mother by sneh premchand

माँ एक ऐसी किताब है जिसका हर पन्ना आसानी से समझ आ जाता है। माँ ऐसी कविता है, जो सब गा सकते हैं। माँ ऐसी कहानी है, जो रोचक ,ममतापूर्ण सम्पूर्ण और सारगर्भित है।। माँ एक ऐसा पाठ है, जो ज़िन्दगी की  पाठशाला में सबसे पहले पढते हैं, और ताउम्र चलता है। माँ ऐसा साहित्य है, जिसके आदित्य की रोशनी से सारा जग नहाया है। जिसे पूरा संसार पढ़ता है जो हर युग,हर काल मे प्रासंगिक है। यह साहित्य समयातीत है। हर युग हर काल हर स्थान पर प्रासंगिक है।। जैसे सागर की कोई सरहद सीमा नहीं, उसकी गहराई नापने का कोई पैमाना नहीं,ऐसी ही तो मां है।। मां रामायण की वो चौपाई है जिसे जितना पढ़ो,अर्थ और गहरा ही जाता है।। मां ममता का वो प्रतिबिंब है  जो मात्र स्नेह का अक्स ही दिखात   है। ।

दूर कहीं thought by snehpremchand

दूर कहीं जब पश्चिम में अलविदा कह रहे हों आफ़ताब, ढलती साँझ,उगती यामिनी,हों संग तारे लाजवाब, कम कम चाँद लगा हो चमकने,शमा परवाने को याद कर रही हो बेहिसाब, ऐसे में हौले से मेरे जेहन में आकर माँ ममता सी पढ़ाने लगी किताब।।              स्नेहप्रेमचंद