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मात पिता

सच मे मां जैसा कोई और नहीं

Thought on mother सबसे पहली शिक्षक मां by sneh प्रेमचन्द

तूँ तुलसी की मानस है, है तूँ ही तो गीता का ज्ञान। तूँ ईसा की बाइबल है  है तूँ ही तो मां, पाक कुरान।। तू गुरु ग्रंथ साहिब, है नानक का, है तूँ ही तीर्थ,तूँ ही धाम।।। सबसे प्यारा संबोधन मां, सबसे न्यारा उद्बोधन मां, मां करती है हमारा कल्याण।। सब जानते हैं एक ही है वो, सिर्फ और सिर्फ मां उसका नाम।।। मां जीवन की पहली शिक्षक, पहली मित्र,पहली चेतना पहला स्पर्श और पहला ज्ञान।।। आत्म साक्षात्कार,आत्म मंथन,आत्मबोध और आत्म सुधार। सबसे रूबरू कराती है मां, दिलोदिमाग में करुणा, विवेक का करती संचार।। आधार स्तम्भ जीवन का मां, मां के अस्तित्व से ही,हमारे वजूद को मिली पहचान।।। मातृ ऋण से उऋण  नहीं हो सकते कभी, नहीं दे सकता कोई, मां सा बलिदान।। हमारे सुनहरे मुस्तकबिल के लिए, समय समय पर करती सावधान।।। मां से बेहतर तो जान ही नहीं सकता, कोई,कहीं,कभी भी बाल मनोविज्ञान।। कभी नहीं रुकती,कभी नहीं थकती, क्रियाकलापों को नहीं देती कभी विराम।।। तरुवर की छाया है मां,सबसे शीतल साया है मां, मां सबसे अनमोल प्रतिष्ठान।। लय, गति,ताल से सब करती है तूं, आने नहीं देती कोई व्यवधान।।। शबरी

Thought on teachers day by sneh प्रेमचन्द सबसे पहली

सबसे पहली,सबसे अच्छी,सबसे शुभचिंतक,बहुत ही खास शिक्षक होती है माँ। ज़िन्दगी का अनुभूतियों से परिचय कराने वाली,अहसासों को अभिव्यक्ति दिलाने वाली होती है माँ। हर क्यों,कैसे,कब,कहाँ का सहजता से उत्तर देने वाली होती है माँ। ज़िन्दगी की रेल की पटड़ी होती है माँ। संस्कारों की घुट्टी पिलाने वाली,चेहरे पर मुस्कान लाने वाली होती है माँ। माँ से बड़ा शिक्षक प्रेमवचन को तो नज़र भी नही आता,महसूस भी नही होता,आप को?               स्नेह प्रेमचन्द

Poem on Guru purnima.मा सा गुरु by snehpremchand

मां से बढ़ कर तो मुझे कोई  गुरु नजर नहीं आता। गर है कोई गुरु, उस गुरु की गुरु भी होगी उसकी मां ही, ऐसा होता है मां बच्चे का नाता।। घर में घुसते ही गर नजर मां न आए, लागे खो गया कुछ कीमती सा, नहीं कुछ भी फिर चितभाता।। आज गुरु पूर्णिमा के दिन मां फिर ज़िक्र तेरा ही जेहन में है आता।।। वैसे तो तेरा अहसास ए वजूद  किसी दिन  का नहीं है मां मोहताज। तूं तो हर शय में है,सब जानते हैं,  है ये सच्चाई,नहीं कोई   राज़ ।।           दिल की कलम से          स्नेह प्रेमचंद