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Showing posts from August, 2023

भारतीय जीवन बीमा निगम

भा---रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है *सुरक्षा और विशवास* *भरोसे की नाव में,आश्वासन के चप्पू* *सुखद वर्तमान उज्जवल भविष्य की आस* र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से, तभी निगम है अति खास *मां की गोद* सा है निगम हमारा *सर्वे भवन्तु सुखिन* का भाव इसमें बेहिसाब ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है,इसी सोच से हुआ सतत निगम का चहुंमुखी विकास *योगक्षेम वहाम्यंह* लोक कल्याण के वास्तविक अर्थ को चरितार्थ करती महान संस्था सच कितनी खास य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने, अपने अस्तित्व का इसे आभास हर गली, कूचे,गलियारे में बजता है अनहद नाद सा,  जन जन को आता है अति रास *सेवा संग मुस्कान के* होती है यहां,होता है सार्थक परिकल्पना,प्रतिबद्धता और प्रयास जी--वन के साथ भी,जीवन के बाद भी,निराशा में भी आशा का किया है वास हो जाए गर कोई अनहोनी *मैं हूं ना* का करवाता है अहसास व---नचित न रहे कोई भी उत्पादों से, इसके,यथासंभव किया हर प्रयास झोंपड़ी से महलों तक पहुंचे उत्पाद हमारे *संकल्प से सिद्धि तक यही प्रयास* न---भ सी छू ली हैं ऊंचाईयां, आता है धरा के भी रहना पास हर वर्ग है ग्राहक इसका, जै

राखी 2023

अभाव का प्रभाव( स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*अभाव का प्रभाव बताता है कोई जीवन में होता है कितना खास* *जब भीड़ में भी हम होते हैं अकेले,धुआं धुआं सा मन, अनमनी सी आस* *लफ्जों का साथ नहीं देते फिर लहजे,झूठी मुस्कान का ओढ लिबास* *रह रह कर याद आती है जैसे, घर घुसते ही मां को न देख शिशु हो जाता है उदास* *सब मिल कर भी एक की कमी नहीं पूरी कर पाते, जिक्र और जेहन में ही नहीं, स्मृतियों में आजीवन तेरा होगा वास* *नयन सजल,अवरुद्ध कंठ चेतना का जैसे हो गया ह्रास* एक चबका और एक टीस है ऐसे जैसे दिल में धड़कन,तन में श्वास *यूं तो कहने को तो चल रही है जिंदगी मगर तुझ बिन सच कुछ आता ही नहीं रास* *अभाव का प्रभाव बताता है कोई जीवन में होता है कितना खास* प्रकृति में हरियाली सी, पर्वों में दीवाली सी, सावन में कोयल काली सी, दुनिया की भीड़ में निराली सी, जैसे किसी पहुपन में सुवास और परिचय क्या दूं तेरा??? *हानि धरा की,लाभ गगन का* तुझ बिन ऐसा होता है आभास

चक ही दिया इंडिया

सपना बना हो जब हकीकत

संगठन में होती है शक्ति अपार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक और एक होते हैं ग्यारह, संगठन में होती है शक्ति अपार* *संकल्प से सिद्धि के सफर में, सच्चे प्रयास ही सशक्त हथियार* *खुशी दूनी गम आधे* जहां *ऐसा ही तो होता है संयुक्त परिवार* *यहां अहम से ऊपर वयम है जिम्मेदारी संग ही मिलते हैं अधिकार* *मूल में निहित जनकल्याण इसके,  *सार्थक करने आ जाते हैं हर इतवार* *मात्र दीवारें ही नहीं रंगते, रंग देते हैं ये दिल लोगों के बेशुमार* *सब कर सकते हैं कुछ न कुछ ऐसा ऐसे भाव का कर देते संचार* *आप भी आओ,हम भी आएं किस बात का करते हो इंतजार* *नेकी करने में देरी कैसी??? *यहां शिक्षा संग फ्री में हैं संस्कार*

कर्म ही है परिचय पत्र जिनका

ना हम दौड़े आएंगे

For sneh dhawan she left cirawa today  हो बात तुम्हारे जाने की तो आंख सजल तो होनी थी,  मां जैसा साया छिन जाये ये बिटिया तो फिर रोनी थी।  कितना कुछ अब खो जायेगा, दफ्तर सूना हो जायेगा,  न हम दौडे आयेंगे न तेरा बुलावा आयेगा।  कितनी राह बतायी तुमने,जीने की कला सिखायी तुमने,  तुम्हारा नहीं कोई सानी है,तुम्हारी याद तो आनी है।  कितनी खुशियां है दी तुमने और कितने गम यूं बांटे हैं  इसमें कुछ भी झूठ नहीं हम सच सच ही बतलाते हैं।  बेसक तुम हमे भुला दो कभी पर हम तो न भुला अब पायेंगे,  ममता भरे तुम्हारे हाथ सदा ही सिर पर चाहेंगे।

हो बात जो उनके जाने की

For sneh dhawan she left cirawa today  हो बात तुम्हारे जाने की तो आंख सजल तो होनी थी,  मां जैसा साया छिन जाये ये बिटिया तो फिर रोनी थी।  कितना कुछ अब खो जायेगा, दफ्तर सूना हो जायेगा,  न हम दौडे आयेंगे न तेरा बुलावा आयेगा।  कितनी राह बतायी तुमने,जीने की कला सिखायी तुमने,  तुम्हारा नहीं कोई सानी है,तुम्हारी याद तो आनी है।  कितनी खुशियां है दी तुमने और कितने गम यूं बांटे हैं  इसमें कुछ भी झूठ नहीं हम सच सच ही बतलाते हैं।  बेसक तुम हमे भुला दो कभी पर हम तो न भुला अब पायेंगे,  ममता भरे तुम्हारे हाथ सदा ही सिर पर चाहेंगे।

निरस्त नहीं दुरुस्त

*किसी भी नाते को निरस्त नहीं, झट से दुरुस्त करने वाली  सच की ही डिप्लोमेट रही  तूं मां जाई* *संक्षिप्त,मधुर प्यारे से संबोधन,संवाद तेरे, जैसे शादी में हो शहनाई* *जाड़े की गुनगुनी धूप सी तूं, रही आमों पर जैसे अमराई* *तेरा साथ था इतना प्यारा जैसे तन संग होती है परछाई* *ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई, हर मर्ज की बनी दवाई* *दिलों पर राज किया है तूने, सच तूं सागर की गहराई* *उम्र छोटी पर कर्म बड़े* आज फिर तेरी याद आई *दो बरस होने को हैं, जब ली थी तूने जग से विदाई* *लम्हे की खता बनी ना भूली जाने वाली दास्तान* *बहुत छोटा शब्द है तेरे लिए महान*  कितने भी हालात विषम हों *हर रिश्ते में रही तेरे गरमाई* *एक किसी के ना होने से डसने लगती है तन्हाई* हेजली सी थी,मासूम सी थी *नातों में तुझे पसंद थी गहराई* *चिराग ले कर भी खोजो तो नहीं मिलेगी तुझ में कोई एक बुराई* "जैसे भीतर से वैसी ही बाहर से  कभी दिखाई नहीं कोई चतुराई* *जैसी राम जी की मर्जी* *कुछ भी पूछने पर तूने बस यही पंक्ति दोहराई* *एक बात बहुत याद आती है तेरी मां जाई! *कहती थी तूं ये सदा जग में, सबसे आसान है करना पढ़ाई* *चाशनी सी मीठी रही सदा*

संकल्प से सिद्धि तक(( विचार स्नेह प्रेमचंद सदस्य *हमारा प्यार हिसार* समूह))

*संकल्प से सिद्धि तक*  छिपे होते हैं जाने कितने ही *अगणित प्रयास* प्रयास ही तो होते हैं वे  *संजीवनी बूटी* *जो बना देते हैं हमें  अति अति खास* *धरा पर संकल्प लिया, गगन में कर डाला साकार* *चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बना भारत,  हो रही चहुं दिशा में जयजयकार* *प्रतिभा को गर मिल जाएं अवसर  संसाधन और सहयोग* *उपलब्धि खटखटा ही देगी द्वार आपका,सबसे बड़ा है कर्मयोग* *कर्मयोगियों के कर्मों ने सच में रच दिया इतिहास* *बैलगाड़ी से चांद तक के सफर को एक ही नाम देंगे *विकास* *परिकल्पना,प्रतिबद्धता और प्रयास* *इन तीनों से बनता है इंसा अति खास* *चंद्र यान 3 की सफलता से बढ़ा है जाने कितनों का विश्वाश* *असफलता ही ले जाती है सफलता की ओर,बस बना रहे आत्म विश्वास* *धीरज की नाव में चप्पू मेहनत के, मांझी भरोसे का,सफलता फिर आ ही   जाती है रास* *माना हर सफर मंजिल की ओर जाए, ज़रूरी तो नहीं पर मंजिल की ओर जाएगा कोई न कोई सफर ही, बहुत ज़रूरी है *हो गया इस सत्य का आभास*

धरा पर संकल्प गगन में साकार

*धरा पर संकल्प लिया, गगन में किया साकार* *ऐसा है मेरा वतन भारत चांद पर कर डाला चमत्कार* *संकल्प से सिद्धि तक के  सफर में   सही सोच,अथक परिश्रम,संघर्ष,प्रतिभा हैं शुमार* *तिरंगे के रंग में डूबा है वतन सारा, फिज़ा में फैली खुशियां बेशुमार* *मां भारती को गर्व है आज अपनी कोख पर,जैसे मातृ भूमि का ऋण हो दिया उतार* *ऐसा है मेरा वतन भारत, चांद पर कर डाला चमत्कार* *धरा पर संकल्प किया, गगन में किया साकार* *कठिन परिश्रम,अभूतपूर्व उपलब्धि पूरा ही विश्व जैसे एक परिवार* *एक धरा,एक परिवार,एक भविष्य* इस मूलमंत्र को *संकल्प से सिद्धि* तक   है हमने पहुंचाया *विकसित भारत का शंखनाद है गुंजित   चहुं दिशा में,  आज चित उल्लास से भर आया*  *आह्लादित है मन , प्रफुल्लित है तन  बड़ा सपना आज हुआ साकार* *ऐसा है मेरा वतन भारत चांद पर कर डाला चमत्कार* *चांद पर चंद्रयान सच में एक महाभियान* *चंदा मामा दूर नहीं अब मां धरा से, सच में हमारा वतन महान* *मां धरा भी इस बार राखी का मनाएगी त्यौहार मां धरा ने भेजी है राखी चंदा मामा को, मामा भी बंधवाने को तैयार* *चांद के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला  पहला देश है भारत

इसरो

धरा पर संकल्प लिया(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*धरा पर संकल्प लिया, गगन में किया साकार* *ऐसा है मेरा वतन भारत चांद पर कर डाला चमत्कार* रोम रोम हुआ पुलकित हमारा आज विज्ञान ने ज्ञान से किया श्रृंगार *संकल्प से सिद्धि तक के  सफर में   सही सोच,अथक परिश्रम,संघर्ष,प्रतिभा हैं शुमार* *सपने वो होते हैं जो हमे सोने नहीं देते,बस सपनों का हो बड़ा आकार* *आज नहीं तो कल हों जाएंगे पूरे बस माने ना हम जीवन में हार* *तिरंगे के रंग में डूबा है वतन सारा, फिज़ा में फैली खुशियां बेशुमार* *मां भारती को गर्व है आज अपनी कोख पर,जैसे मातृ भूमि का ऋण हो दिया उतार* *ऐसा है मेरा वतन भारत, चांद पर कर डाला चमत्कार* *धरा पर संकल्प किया, गगन में किया साकार* *कठिन परिश्रम,अभूतपूर्व उपलब्धि पूरा ही विश्व जैसे एक परिवार* *एक धरा,एक परिवार,एक भविष्य* इस मूलमंत्र को *संकल्प से सिद्धि* तक   है हमने पहुंचाया *विकसित भारत का शंखनाद है गुंजित   चहुं दिशा में,  आज चित उल्लास से भर आया*  *आह्लादित है मन , प्रफुल्लित है तन  बड़ा सपना आज हुआ साकार* *ऐसा है मेरा वतन भारत चांद पर कर डाला चमत्कार* *चांद पर चंद्रयान सच में एक महाभियान* *चंदा मामा दूर नहीं अब मां धरा से

कच्चे धागे पक्का बंधन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*कच्चे धागे पर पक्का बंधन ऐसा राखी का पावन त्योहार* *रक्षा बंधन के पावन पर्व का, प्रेम ही होता है आधार* *कभी इकरार,कभी तकरार* *बस आए ना दिलों में कोई दरार* *खट्टा,मीठा प्यारा सा नाता न पनपे चित में कोई विकार* *दूर नजर से हो बहना पर दिल से दूर नहीं होती* *शायद ही कोई सांझ हो ऐसी जब याद नहीं दिल में होती* *मांअक्स नजर आता है बहन में, दिल से जुड़े हैं दिल के तार* *रक्षा बंधन के पावन पर्व का प्रेम ही होता है आधार* *समय संग जीवन में कई उतार चढ़ाव भी आते हैं* *कभी ये रिश्ते सुस्ता जाते हैं, कभी खुल कर मुस्कुराते हैं* *संवाद खत्म न हो बस इस नाते में, फिर संबंध नहीं होता कभी ज़ार ज़ार* *रक्षा बंधन के पावन पर्व का प्रेम ही होता है आधार* *नए रिश्तों के नए भंवर में उलझ उलझ सी जाती है बहना* *पर भाई ना भूले अपने फर्ज को होती है वो तो सच्चा गहना* *जज ना करना कभी इस नाते को वरना जीत कर भी जाओगे हार* *हालात सभी के जुदा जुदा हैं प्रेम है चित में मगर बेशुमार* *कच्चे धागे पर पक्का बंधन ऐसा राखी का पावन त्योहार* *जीवन के सफर में सबसे लंबा नाता होता है बहन और भाई का* *कितना अच्छा हो*  कभी फोन स

क्या लाई h

पूछन लागी मोसे सखियां,बोल सखी री,राखी पर तूँ क्या पीहर से लाई है, आज बता दे बेबाक सहेली,क्यों कहने से हिच किचाई है?? जो लाई हूँ वो इस तन की आंखों से नही दिखेगा, कच्चे धागे पर पक्के बंधन के पर्व का पुष्प इस हिवड़े में ताउम्र खिलेगा, मात पिता ने  जिस प्रेम अंकुर को लगा कर  जग से लेली थी विदाई, उसे सींच कर स्नेह जल और प्रेम खाद  से,आज कितनी ही कली हैं पुष्प बन आई।। मैं अपने झीने झोले में मज़बूत से बन्धन के पल चुरा कर लाई हूँ, मैं मस्तक पर विश्वास की रोली,अपनत्व के चावल खिला कर आई हूं, मैं मीठे से कर के शगुन सबके जीवन मे मिठास भर आईं हूँ, मैं माँ के अधरों की मुस्कान भाभी बहनों के लबों पर देख कर आई हूँ, यही लेने गई थी मैं, ये झोले भर भर लाई हूँ, मैं लंबी उम्र और खुशहाल से जीवन की सबको दुआ दे आई हूँ, हर बार की तरह इस राखी पर भी,मैं इन सब से मालामाल हो आई हूँ, मात पिता की सौंधी सी महक,दिल मे बसा कर लाई हूँ, भाई बहनों में गई थी देखने अक्स मात पिता का,यादों के आईने से वक़्त की धूल हटा कर आई हूं, ऐसे तोहफों को कैसे दिखलाऊँ,ऐसी कोई ऐनक नही बन पाई है, तूँ पढ़ना जानती हो गर मेरे दिल की पाती, तो पढ़ ले,म

पूछ न लागी जब मोसे सखियां

पूछन लागी मोसे सखियां,बोल सखी री,राखी पर तूँ क्या पीहर से लाई है, आज बता दे बेबाक सहेली,क्यों कहने से हिच किचाई है?? जो लाई हूँ वो इस तन की आंखों से नही दिखेगा, कच्चे धागे पर पक्के बंधन के पर्व का पुष्प इस हिवड़े में ताउम्र खिलेगा, मात पिता ने  जिस प्रेम अंकुर को लगा कर  जग से लेली थी विदाई, उसे सींच कर स्नेह जल और प्रेम खाद  से,आज कितनी ही कली हैं पुष्प बन आई।। मैं अपने झीने झोले में मज़बूत से बन्धन के पल चुरा कर लाई हूँ, मैं मस्तक पर विश्वास की रोली,अपनत्व के चावल खिला कर आई हूं, मैं मीठे से कर के शगुन सबके जीवन मे मिठास भर आईं हूँ, मैं माँ के अधरों की मुस्कान भाभी बहनों के लबों पर देख कर आई हूँ, यही लेने गई थी मैं, ये झोले भर भर लाई हूँ, मैं लंबी उम्र और खुशहाल से जीवन की सबको दुआ दे आई हूँ, हर बार की तरह इस राखी पर भी,मैं इन सब से मालामाल हो आई हूँ, मात पिता की सौंधी सी महक,दिल मे बसा कर लाई हूँ, भाई बहनों में गई थी देखने अक्स मात पिता का,यादों के आईने से वक़्त की धूल हटा कर आई हूं, ऐसे तोहफों को कैसे दिखलाऊँ,ऐसी कोई ऐनक नही बन पाई है, तूँ पढ़ना जानती हो गर मेरे दिल की पाती, तो पढ़ ले,म

चल मन वृंदावन की ओर

हसरतभरी निगाहों ने जब देखा माँ की ओर सच मे माँ लगती थी जैसे हो कोई खिली सी भोर।। सपने देखेगी अपनी आँखों से हमारे लिये, उन्हें पूरा करेगी अपनी मेहनत से हमारे लिए, बनाया होगा जब माँ को खुद ने देख कर अपनी ही रचना,हो गया होगा भाव विभोर।। चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है, कृष्ण नाम से भोर।। माँ यशोदा  ही देख कान्हा की लीलाएँ कहती थी प्रेम से नन्द किशोर।।। मैं नही खायो माखन मईया सच नहीं मैं हूँ माखनचोर। माँ बच्चों की ऐसी ही कहानियां सुन द्रवित हो जाते हैं हिवड़े कठोर।।

देखा जब मां की ओर

हसरतभरी निगाहों ने जब देखा माँ की ओर सच मे माँ लगती थी जैसे हो कोई खिली सी भोर।। सपने देखेगी अपनी आँखों से हमारे लिये, उन्हें पूरा करेगी अपनी मेहनत से हमारे लिए, बनाया होगा जब माँ को खुद ने देख कर अपनी ही रचना,हो गया होगा भाव विभोर।। चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है, कृष्ण नाम से भोर।। माँ यशोदा  ही देख कान्हा की लीलाएँ कहती थी प्रेम से नन्द किशोर।।। मैं नही खायो माखन मईया सच नहीं मैं हूँ माखनचोर। माँ बच्चों की ऐसी ही कहानियां सुन द्रवित हो जाते हैं हिवड़े कठोर।।

मैं और मेरी परछाई

जीवन की सबसे मधुर शहनाई मैं और मेरी परछाई

पश्चिम में दूर कहीं

पश्चिम में दूर कहीं जब लालिमा आदित्य की सिंधु का आलिंगन  कर लेती है। ज़मी आसमा के मधुर मिलन पर ,मानो प्रकृति भी दुआएं देती है।  ऐसा नयनाभिराम दृश्य मन को भीतर से मोह लेता है। जाने कितने  अनकहे संदेसे,ये आदित्य हमारे साहित्य को दे देता है।।

प्रेम वृक्ष

प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,जैसे माता सावित्री सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।

एक व्यक्तित्व नहीं

एक व्यक्तित्व ही नहीं,  एक समूचा युग थे कृष्ण, एक मनोविश्लेषक, एक मनोवैज्ञानिक, धर्मज्ञ और राजनेता। तीन स्पष्ट उद्देश्य थे उनके,  सन्त लोगों का भला, बुराइयों के नाश, धर्म की स्थापना, सच मायनो में थे वे एक विजेता।।

श्रद्धांजलि(( स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

फिर आ गई वो हरियाली तीज

ताला

हर वृद्धाश्रम पर लग जाये ताला,    मिले हर माँ बाप को घर मे ही आदर सत्कार। दौलत की तराज़ू में न तोला जाए उनकी ममता और प्रेम को, वो करते है औलाद को तहेदिल से प्यार। उनके दीये की बाती को एक नियत समय पर बुझ जाना है। पर जब तक रहें वो इसजग में,उनके जीने की इच्छा  को हमे नही बुझाना है।

मां तो मां ही होती है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माँ वो उलझे रहते हैं  अपनी ही दुनिया में,       माँ को एक वस्तु बनाते हैं। आजीवन माँ करती है बच्चों का,      बच्चे चन्द दिनों में ही  घबरा जाते हैं।। *माँ का होना ही होता है,     एक सबसे सुखद  मीठा सा अहसास* *एक दिन ऐसा भी आता है,    माँ नही रहती जब हमारे पास* जब नही रहती माँ इस जग में,   तब क्यों वे झूठे आंसू बहाते हैं???? क्यों करते हैं जग दिखावा क्या सच्ची संतुष्टि पाते हैं??? जीते जी तो  समय और प्यार नही देते उसको,   तीये की बैठक में बैठ जग को जाने क्या दिखाते हैं??? *ना करते हैं आत्म मंथन, न आत्म बोध का दीया जलाते हैं*; *अधिकार तो सारे चाहिए उनको, जिम्मेदारियों से नजरें चुराते हैं* *वसीयत पर रहती हैं नजरें उनकी, बंटवारे के लिए दौड़े आते हैं* दर्द बांटना नहीं सीखते लेकिन, ये कैसे खून के नाते हैं??? आजीवन करती है माँ बच्चों का    बच्चे चन्द दिनों में ही घबरा जाते है। *एक मां कर देती है सारे बच्चों का, सारे बच्चे मिल कर भी एक मां का नहीं कर पाते हैं* *मां दूसरे कमरे में भी नहीं छोड़ती बच्चों को, बच्चे मां को मां के हाल पर छोड़े जाते हैं* आजीवन करती है मां बच्चों का, बच्चे

यही दोस्ती है

प्रश्न हैं हम तो जवाब है मां

प्रश्न हैं हम,तो जवाब है माँ,प्यास हैं हम तो तृप्ति है माँ,समस्या हैं हम,तो समाधान है माँ,विधि का सबसे सुंदर विधान है माँ,संकोच हैं हम तो सहजता है माँ,धूप हैं हम तो ठंडी छाँव है माँ,पलायन हैं हम तो ज़िम्मेदारी है माँ,माँ खुदा का भेजा हुआ ऐसा फरिश्ता है जो सब को सहजता से मिल तो जाता है,पर सबको उस फ़रिश्ते की कद्र उसके इस जहां से रुक्सत होने के बाद पता चलती है

अनजाना सा

धार है नदिया की

राजा

जिंदगी

कुछ कहना है

चलो ना

मुसाफिर

lifeline

अनजाना सा

हिंदी भावों का सुंदर परिधान

श्रद्धा और तर्क

श्रद्धा औऱ तर्क मैं श्रृद्धा हूँ अंधविश्वास नही, हम दोनों में फर्क है बहुत भारी। अब तुम ही समझो,जानो क्या फर्क है हमारा लगा दो अपनी शक्ति सारी।। काश मुझ को जानते तुम,फिर इतने नही करते सवाल। मेरा सच्चा परिचय पाकर,थम जाते तुम्हारे सारे बवाल। मैं हूँ एक ऐसा उजाला,जो मिटा देता है सारा अँधेरा। मन की किवाड़ खोल देती हूं मैं, आता है फिर सुंदर सवेरा।। सुन श्रद्धा की बातें तर्क ने,फिर से अपना तर्क लगाया। पर क्या है "श्रद्धा',क्या कहना चाहती है श्रद्धा, आजीवन वो समझ न पाया। राह दोनों की अलग अलग थी, रास्ता दोनो ने अपना अपना अपनाया। नहीं समझ सकते हम दोनों एक दूजे को, बेशक श्रद्धा ने तर्क को हो कितना समझाया।।

चल अकेला

गलत बात का समर्थन भी गलत

गलत बात का समर्थन करना भी गलती करने जैसे गुनाह के समान होता है।दुर्योधन की गलती धृतराष्ट्र की गलती से बढ़ कर नही है।चीर हरण के समय यदि धृतराष्ट्र मुंह खोल लेते,तो इतिहास कलंकित न हुआ होता।यही विडम्बना है समाज मे,जब कोई एक गलती करता है तो कई बुरे लोग उसका साथ देते है,गलती वहीं रुकने की जगह पहले पाप फिर महापाप और अंत मे विनाशलीला या महाभारत का तांडव करती है।

मत सोचना

*मत सोचना वो कुछ लेने आयी हैं, वो तो अपना हिस्सा भी कर देती है नाम तुम्हारे*  *बचपन के कुछ पल चुराने आई हैं वो अपने बाबुल के द्वारे* हो अभी भी उनकी ज़िंदगी में कुछ खास तुम,तुम्हें ये बताने आई हैं, वस्त्र ,आभूषण की उनके मन में नही होती कभी कोई अभिलाषा,इस पावन पर्व से समझा जाती हैं ,वे प्रेम की परिभाषा,रखे ध्यान माँ बाप का हर भाई,यही हर बहन का प्रेम उपहार,वो तो उलझी है रिश्तों के नए भंवर में,पर हर भाई तो अपनी ज़िम्मेदारी कर सकता है स्वीकार

मां याद आ जाती है

आज भी(( स्मृतियां स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*आज भी जब आते हैं सपने, वो घर पुराना ही सपनो में आता है* *जहां ज़िन्दगी का परिचय हुआ था अनुभूतियों से, जहां बचपन सहज रूप में गुनगुनाता है* *जहाँ माँ से खिलता आंगन था, जहाँ बाबुल की सत्ता होती थी* *जहां रहते थे हम सहजता से, कोई चित चिंता नहीं होती थी* *एक वो भी ज़माना था कितना प्यारा जब लेमन और पापड़ की भी कीमत होती थी* *वो मोटा मरुंडा,वो हलवाई के समोसे,वो सूखे धनिया की चटनी,वो पतीसा हर शै सच में  नायाब सी होती थी* *वो तीज पर मां के पापड़ स्वाली गुलगुले जैसे कोई नेहमत सी होती थी* *वो बाजरे की खिचड़ी,वो लहुसन की चटनी,वो सरसों का साग,वो जाड़े में चूल्हे की आग,वो कढ़ावनी का दूध बादामी सा,वो लस्सी वो आलू गोभी,वो भाड़ के चने,वो हौले सब जैसे कोई अनमोल सी चीज़ें होती थी* जब पार्क में जाना भी उत्सव से कम न होता था। आइसक्रीम मिल जाती तो वो शुभ महूर्त होता था। जहाँ न  कोई चित चिता थी, हम बड़े चाव से रहते थे। लड़ते भी थे,झगड़ते भी थे, पर दिल की सब एक दूजे से कहते थे। सरल,सहज ,स्वभाविक सा बचपन एक कमरे में ही कितने लोग हम रहते थे। वो किराए की साइकिल,वो गुलशन नंदा के नावल,वो फिल्मी कलियां सब कितनी मुश्किल

समझो आजादी आ गई(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*जब मलिन मनों से ईर्ष्या,द्वेष,लोभ,अहंकार के सारे धुंध कुहासे हट जाएं,समझो आजादी आ गई* *जब ज्ञान की अलख कुटिया से महलों तक हर द्वार लगे जलने,समझो आजादी आ गई* *जब शिक्षा के भाल पर संस्कार का तिलक सोहने लगे,समझो आजादी आ गई* *जब हैसियत और हसरतें एक ही मोड़ पर मिलें,समझो आजादी आ गई* *जब किसी भी नारी को घर से बाहर जाते हुए कोई धड़का सा न लगे,जब सब निर्भय हों सब सुखी हों,समझो आजादी आ गई* *जब प्रेम से पहले सम्मान का स्थान आए,समझो आजादी आ गई* *जब बेटा बेटी को एक नजर और एक ही नजरिए से देखा जाने लगे,समझो आजादी आ गई* *जब स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति आ जाए,समझो आजादी  आ गई* *जब सही समय पर सही समझ का विकास हो जाए,मन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त न हो,अंधी प्रतिस्पर्धा का बिगुल बजना बंद हो जाए समझो आजादी आ गई* *जब संकल्प सिद्धि की पगडंडी पर निर्बाध गति से दौड़ने लगे,समझो आजादी आ गई* *जब प्रतिभा को पहचान कर उसे प्रोत्साहन मिले,हर हुनर को पहचान मिले,कोई भी प्रतिभा किसी अभाव के प्रभाव में विलीन न हो,आर्थिक अभाव में हुनर ज़मीदोज न हों।। *जब हम जिंदगी के आर्किटेक्चर खुद बन सकें,औरों के निर्णय हम पर

सबसे सुरक्षित बीमा

*माता पिता का साया सबसे सुरक्षित बीमा है* *बस मधुर वाणी और सम्मान के प्रीमियम भरते रहो* *हज़ारों गलती माफ करने का ग्रेस पीरियड भी दे देते हैं मात पिता* *इनका प्रेम कभी लैप्स नहीं होता,गर हो भी गया तो एक मुलाकात से ही रिवाइव  हो जाता है* *इनके आगे सरेंडर कर दो,कभी किसी ऋण की दरकार नहीं होगी* *किसी भी अल्टरेशन की मात पिता कोई फीस नहीं लेते* *एसबी,मैच्योरिटी और डेथ क्लेम हर रूप में सदा देते ही देते हैं* *आप शादी के बाद भले ही नामांकन इनका हटा देते हो, पर ये अपने दिल और जेब से आपका नाम कभी नहीं हटाते* *मासिक,त्रैमासिक,छमाही या वार्षिक किसी भी समय मिल लो इनसे, जीवन में आनंद आ जाएगा* *जीवन सुरक्षा* का पर्याय हैं ये *जीवन स्नेह* से भर देते हैं मात पिता हमारा बचपन जो *कोमल जीवन* है , इनके साए तले महफूज रहता है।। *जीवन सरल*भी बनाना इनके बाएं हाथ का खेल है।। *जीवन लाभ*चाहिए तो इनकी शरण में रहना *जीवन मधुर *भी इनसे है *जीवन में मंगल*भी इनसे है।। *जीवन अनमोल* है गर परवरिश इनके साए तले हो *जीवन तरंग*से सरोबार रहता है संग इनके *जीवन समृद्धि*से भर जाएगा,मन से सम्मान और स्नेह तो दो *जीवन मे

आजादी की पावन बेला पर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*आजादी की पावन बेला पर आओ मिलकर शीश झुकाएं*  *श्रद्धांजलि दें उन शहीदों को  हम जो लौट के घर नहीं आए*  *यूं ही नहीं मिली हमें आजादी  आओ इतिहास के पन्ने खोलें* जज्बा,जोशऔर जुनून हर वीर  की रग रग में था बोले* *आओ करें नमन उन  जांबाजों को, नयनों को आंसुओं से धो लें*  सहेजे अनमोल आजादी,रहें प्रेम से, सांप्रदायिकता का जहर अब और ना घोलें*  *15 अगस्त सन 47 को मिली थी देश को आजादी*  *मेहनत आखिर रंग लाई पर जाने कितनों ने अपनी जान गवा दी* *हुआ बंटवारा, बने मुल्क दो, मजहब के नाम पर बुराई ने हिंसा को हवा दी** *उजड़ा सुहाग जाने कितनी माओं का, ना जाने कितने नैना रोए*  मांओं ने खोए लाल तो बहनों ने अपने भाई खोए*   *एक बड़ा भारी मोल था आजादी का आओ सब को अवगत करवाएं* दें श्रद्धांजलि उन शहीदों को हम,  *जो लौट के घर नहीं आए*  * भारत माता के वीर सपूत थे जांबाज वे सही कहलाए*  *आजादी की पावन बेला पर, आओ मिलकर शीश झुकाए* * इस आजादी का मोल बहुत था दंश बंटवारे का झेल कर, मोल चुकाया*  *जर्रे जर्रे में धधकी क्रांति की ज्वाला ,गांधी ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया*  *किए आंदोलन और अनशन उन्होंने भारत को आजाद करव

मित्र रूप में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मित्र रूप में कान्हा की है  संग सुदामा के, बड़ी ही प्यारी ,सबसे न्यारी,अद्भुत कहानी। ऊँच नीच न भेद न जाना अपने सखा को तुरंत पहचाना। कहा द्वारपालों को खोलो किवाड़ था पक्का उनका दोस्ताना।।। आवभगत की ऐसी सुदामा की युग आने वाले भी भूल न पाएंगे। जब भी होगी मित्रता की चर्चा गोविंद सुदामा की कहानी गुनगुनाएंगे।। बिन कहे ही मित्र के हृदय की गोविंद जान गए थे बात।।।। कितना अपनत्व,कितना प्रेम था उस मिलन में भूले भी न भुलाई जाएगी वो मुलाकात। युग आएंगे,युग जाएंगे पर सुदामा कान्हा की दोस्ती भूल न पाएंगे।। प्रेमवचन का तो यही मानना है,आप को क्या लगता है????

मित्र रूप में

मित्र रूप में कान्हा की है संग सुदामा के, बड़ी ही प्यारी ,सबसे न्यारी,अद्भुत कहानी। ऊँच नीच न भेद न जाना अपने सखा को तुरंत पहचाना। कहा द्वारपालों को खोलो किवाड़ था पक्का उनका दोस्ताना।।। आवभगत की ऐसी सुदामा की युग आने वाले भी भूल न पाएंगे। जब भी होगी मित्रता की चर्चा गोविंद सुदामा की कहानी गुनगुनाएंगे।। बिन कहे ही मित्र के हृदय की गोविंद जान गए थे बात।।।। कितना अपनत्व,कितना प्रेम था उस मिलन में भूले भी न भुलाई जाएगी वो मुलाकात। युग आएंगे,युग जाएंगे पर सुदामा कान्हा की दोस्ती भूल न पाएंगे।। प्रेमवचन का तो यही मानना है,आप को क्या लगता है????

*चेहरे पर नूर,मन में क्रांति*(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*चेहरे पर नूर,मन मे क्रांति, सीने पर गोली,हाथों में थामे आज़ादी की मशाल* *हंसते हंसते जान गंवा दी, ऐसे थे मेरे भारत का लाल* और अपरिच्य क्या दूं उनका????. *अदभुत सोच,वजूद कमाल* *कभी उऋण नही हो पाएंगे हम उनके कर्मों से, कैसी अद्भुत कर दी कायम उन्होंने मिसाल* *आने वाली पीढ़ियां भी याद रखेंगी सही मायने में थे भारत मां के *नमक हलाल* *मौत जहां पर जन्नत हो यह बात वतन में है मेरे* *इंकलाब की सुलगती हैं चिंगारी* लिए आजादी संग ही फेरे* *आजादी ही रही पहली और आखरी माशुका जिनकी* *ऐसे हैं मां भारती के लाल* *अपने खून की स्याही से लिख दिया आज़ादी का अमर इतिहास* समय बदलेगा,पीढ़ी बदलेंगी, पर वो रहेंगे सब के दिलों के पास* *मर कर भी अमर हैं वे वीर बहादुर, पूरे विश्व इतिहास में हैं वे छाए* *दें श्रद्धांजलि उन वीरों को हम, जो लौट के घर नही आए** व्यक्ति नहीं विचार थे वे जला दी थी बच्चे बच्चे के दिल में आजादी की मशाल जाने कितनी ही अगणित कहानियां होंगी आजादी की, कैसा होगा उनके दिल का हाल?? *माना वक्त भुला देता है सब कुछ पर भगत सिंह को भूलना है एक बहुत बड़ी भारी सी भूल* *क्रांतिकारियों के ख