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आधी जागी आधी सोई

आधी जागी आधी सोई((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)(

आधी जागी, आधी सोई थकी दोपहरी जैसी माँ। कुछ न कुछ हर पल वो करती, सब कुछ करने जैसी माँ। ममता के मटके को,  ममता के मनको से, हर पल भरती जैसी माँ। चिमटा,बर्तन,झाड़ू,लत्ते धोती, कभी नही थी थकती, कभी नहीं रुकती प्यारी मां।। हर तीज, व्रत,उत्सव को पूरे उल्लास से बनाती प्यारी मां। हर कर्तव्य कर्म को सहज भाव से करती जाती मां।। कर्म के भाल पर तिलक सफलता का निस दिन लगाती अदभुत मां। कभी न झिड़कती,कभी न बिफरती धीरज का गहरा सा सागर मां।। ख्वाबों को हकीकत में बदलती कर्मठ सी मां। जीवन के इस मरुधर में, सबसे शीतल सौम्य मां। उपलब्धि में भी,नाकामी में भी, साथ सा हर पल देती मां। शक्ल देख हरारत पहचानने वाली, जग में सबसे अलग सी मां।। हमे हम से बेहतर जानने वाली, जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली सबसे पहली शिक्षक होती मां।। हर क्यों,क्या,कब,कैसे का तत्क्ष्ण उत्तर बन जाने वाली मां।। धुआं धुआं सा मन होने पर भी, हमारे सामने मुस्कुराने वाली मां।। प्यासा प्यासा सा हो जब अंतर्मन, सावन भादों बन जाने वाली मां।। हूम हूम करे जब भी मन हमारा, मीठी सी लोरी सुनाने वाली मां।। उचाट सा हो जाए जब दिलोदिमाग हमारा,जिजीविषा से