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नजर

नजर

परिवर्तन( स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*बहु बेटा*जब बनते हैं *सास ससुर* फिर नजर नहीं,  उनका नजरिया ही पूरा बदल जाता है।। ये रिश्ता बदलते ही  इंसा इतना कैसे बदल जाता है।। मेरी छोटी सी समझ को ये मुद्दा बड़ा सा समझ नहीं आता है।  *रखते हैं उम्मीद जो अपने बेटे बहु से* क्या खुद *बेटा बहु* बन कर कभी मात पिता की नजरों में खरे उतर वे पाए थे??? झट से उत्तर मिल जाएगा, गर आत्ममंथन कर वे अतीत के गलियारों में दस्तक दे पाए थे।। *इतिहास दोहराया करता है खुद को* क्यों इंसा को समझ नहीं आता है??? *वो बुरा है वो कटु भाषी है* क्यों खुद को इंसा, ईश्वर समझ सा जाता है।।

नजर नहीं