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सेट नहीं अपसेट

शांति और खुशी

अकेले। thought by snehpremchand

शायद भीतर से बहुत अकेले हैं हम भीड़ में भी लगती है तन्हाई ख़ामोशो करने लगती है कोलाहल क्यों नही जलती सर्वत्र प्रेम शहनाई।।            स्नेहप्रेमचंद