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जलियांवाला बाग(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ऐ मेटे वतन के लोगों, चलो थोड़ा टटोलें 1919,13 अप्रैल का इतिहास जलियांवाला बाग में जो अंधाधुंध गोलीबारी की थी जनरल डायर ने,बिछा दी थी अनेकों लाश क्रूरता ने नँगा तांडव किया था उस दिन, हुई थी मानवता कलंकित और शर्मसार कुछ भूने गए गोली के आगे,  कुएं में भी कूदे बेशुमार। आओ नमन करें और दें श्रद्धाञ्जलि उन वीरों को,हुए जो दमन नीति का शिकार यूं हीं नहीं मिली हमे आजादी कितने ही शहीद हुए परिवार क्रांति की ऐसी ज्वाला धधकी लील गया ये भीषण नर संहार सो गई थी मानवता, जाग रही थी हिंसा कैसा था ये अत्याचार???? सोच सोच भी रूह कांप जाती है आहत हो जाती हैं भावनाएं, चोटिल हो जाते हैं विचार 13 अप्रैल है ना भुलाई जाने वाली तारीख, हैं वे सब नमन और वंदन के हकदार शहीद हो गए जो वतन की खातिर दिया वतन पर तन मन वार बार बार मेरे जेहन में एक ही आता है विचार क्यों सो जाती है करुणा और क्यों जागती रहती है क्रूरता और अत्याचार कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का, वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार फिर ऐसे कर्म कोई कैसे कर सकता है सच में उससे बड़ा कोई क्या होगा गुनाहगार???? जो जीवन हम दे नहीं सकते उसे लेने के भी