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रिश्ते

सागर से रिश्ते

Poem on mother by स्नेह प्रेमचन्द

माँ एक ऐसी गागर है जिसमे समाया ममता का सागर है। माँ एक ऐसी बांसुरी है जिससे सदा प्रेमधुन बजती है। माँ एक ऐसा साज है जिसकी सिर्फ और सिर्फ ममता आवाज़ है। माँ ममता का वो ईंधन है जो ताउम्र जलता है। माँ एक सुखद आभास है,आशा है,विश्वास है।। हम एक शब्द हैं तो मां पूरी की पूरी भाषा है,इससे बेहतर तो हो ही नहीं सकती मां की परिभाषा है।। माँ वो तरनुम है जो अनुराग भरे दिल से ही निकलती है। माँ करुणा का पर्याय है,सबसे अच्छी राय है,चाहे कितना हो ले परेशान, मुख से कभी नही निकलती हाय है। माँ वो मटका है,जिसको कुम्हार ने केवल स्नेह की माटी से बना दिया,जो औलाद के जल से सदा सौंधी सौंधी ममता भरी महकती रहती है। माँ जग से चली जाती है,पर दिल से कभी नही जाती है।। माँ को बना कर खुदा आज तक अपनी रचना पर गौरव महसूस करते हैं। माँ तपते रेगिस्तान में शीतल फुहार है। माँ जीत में है तो माँ हार में भी संग है। माँ हौसला है,आशा है,शिक्षा है,संस्कार है,प्यार है,प्रेरणा है। क्या नही है माँ?????????

Thought on mother

माँ ममता का ऐसा अनंत सागर है,जो कभी नही सूखता,औऱ दूसरी बात इस सागर का जल खारा नही,अति मीठा है।सबने अनुभव कर रखा है ।।

कतरा कतरा

उम्मीद

उम्मीद का सागर उस समय सूख जाता है,जब कोई मझदार में छोड़ जाता है।