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अतीत की यादों से Thought by Sneh premchand

इस फोटो को देख देख हुए बड़े हम, जुड़े हुए हैं इससे जाने कितने ही अहसास। तन से बेशक चले जाते हैं कुछ अपने, पर जेहन में हो जाते हैं वो अमर, बन कर कुछ खास।। वो कवरनेस पर मां द्वारा,इसका बरसों बरस सजाना। आज फिर से याद आ गया वो गुज़रा बचपन का ज़माना।। आज भी याद आता है वो मां का देख मामा को, फूलों की तरह खिल जाना, हमारा  अपर्णा घर से देख मामा को, मां को पहले से बताना।।  वो मां का बड़े प्रेम से चूल्हे पर रोटी और आलू गोभी बनाना।। हम भी चहक जाते थे पंछी से, कितना सहज,चिंता मुक्त सा था वो ज़माना।। पापा संग मामा का,हाला से भरा जाम से जाम टकराना। जाने कितने ही किस्से कहानियों को माहौल की सौगात बनाना।। वो मां का भात लेना, वो मामा का मां के सिर पर चुनरी ओढ़ाना।। भाव में मां की आंखों का नम हो जाना।। अब मां भी नहीं, पापा भी नहीं,मामा भी नहीं, पर अतीत के झोले से निकलती हैं जब यादें पुरानी, याद आ जाता है आलम सुहाना।। कहीं नहीं जाते अपने, ताउम्र जेहन में डाले  रहते  हैं डेरा। जब भी दोगे दस्तक दिल की चौखट पर, होगा उदित एक नया सवेरा।।           दिल की कलम से  स्नेह प्रेमचंद

अतीत की यादों से (thought by Sneh premchand)

एक एक करके पूरे बरस हुए तेरह, आपको हमसे जुदा हुए।। बचपन की स्मृतियों में अंकित हो ऐसे, देख देख तुम्हे बड़े हुए।। एक उत्सव सा होता था आपका हमारे घर आना, चहक सी जाती थी मां,लगता था छोटा भाई उसे अनमोल खजाना।। आज भी याद आता है मां का चूल्हे पर फट से आलू गोभी और रोटी बनाना।। कितना प्यारा होता है भाई बहन का मधुर तराना।।            स्नेह प्रेमचंद